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असमंजस का कोहरा

Published: Mar 30, 2015 11:25:00 pm

कांग्रेस में सबसे लम्बे समय तक अध्यक्ष रहने का रिकार्ड बनाने
वाली सोनिया गांधी को आगे आकर पार्टी पर छाए असमंजस

soniya gandhi

soniya gandhi

लोकसभा और विधानसभा चुनावों में लगातार हारने के बावजूद कांग्रेस सुधरना क्यों नहीं चाहती? हार के कारणों की ईमानदारी से समीक्षा करके फिर जनता का विश्वास जीतने की बजाय कांग्रेस अब भी असमंजस में डूबी नजर आ रही है। कांग्रेस के संगठनात्मक चुनाव का कार्यक्रम घोषित करने के चार दिन बाद ही राहुल गांधी के मई में अध्यक्ष पद संभालने की खबरें कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ आमजन को भी चौंकाती है।

कांग्रेस के संगठनात्मक कार्यक्रम के तहत अध्यक्ष का चुनाव जब सितम्बर के अंत में होना तय हो चुका है तो फिर मई में राहुल के अध्यक्ष बनने का औचित्य क्या है? और अगर राहुल वाकई मई में ही पार्टी अध्यक्ष बन गए तो क्या संगठनात्मक चुनाव की जग-हंसाई नहीं मानी जाएगी? देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल ने चुनाव जीते भी हैं और हारे भी। पार्टी को अनेक बार संकट के दौर से भी गुजरना पड़ा है।

पार्टी ने बगावत भी देखी है और विभाजन भी। लेकिन ऎसे असमंजस के दौर से पार्टी शायद ही कभी गुजरी हो? संसद का बजट सत्र चल रहा हो और पार्टी के सबसे तारनहार नेता का कहीं अता-पता नहीं। वे कहां पर हैं और कब वापस लौटेंगे, किसी को नहीं पता। “अच्छे दिन” लाने का वादा करने वाली केन्द्र सरकार का एक साल पूरा होने वाला है लेकिन प्रमुख विपक्षी पार्टी अध्यक्ष पद की खींचतान में ही उलझी नजर आ रही है।

यह हालात न पार्टी के लिए अच्छे माने जा सकते हैं और न ही लोकतंत्र के लिए। पार्टी ने जब राहुल को अध्यक्ष बनाने का फैसला कर ही लिया है तो सितम्बर तक का इंतजार किसलिए? आगामी एक साल में बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल जैसे बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव होने को हैं। पार्टी के लिए ये समय हार के गम से उबरकर चुनावी तैयारियों में जुटने का है।

हतोत्साहित कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने का है। केन्द्र सरकार की जन विरोधी नीतियों को जनता के बीच लाने का और बिखरे विपक्ष को एकजुट करने का समय है। कांग्रेस में सबसे लम्बे समय तक अध्यक्ष रहने का रिकार्ड बनाने वाली सोनिया गांधी को आगे आकर पार्टी पर छाए असमंजस के कोहरे को दूर करना चाहिए। पार्टी के लाखों कार्यकर्ता आज भी राहुल के मुकाबले सोनिया पर भरोसा करते हैं।

सोनिया ने उस समय कांग्रेस का नेतृत्व संभाला था जब सीताराम केसरी की अगुवाई वाली कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही थी। राजनीति का अनुभव नहीं होने के बावजूद सोनिया ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जान भी फूंकी और संगठन को पटरी पर भी लेकर आई। आज फिर उसी जज्बे की जरूरत है। इसलिए नहीं कि चार साल बाद केन्द्र की सत्ता पर फिर कब्जा करना है। जज्बा इसलिए ताकि प्रचण्ड बहुमत से केन्द्र में बैठी सरकार पर अंकुश लगा सके।


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