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दोस्त या दुश्मन!

Published: Jun 28, 2015 10:21:00 pm

पड़ोसी देशों से
सम्बंध सुधारने की पहल में कोई बुराई नहीं लेकिन सतर्क रहने की जरूरत है। चीन पर
आंख मूंदकर भरोसा करने की कीमत हम चुका चुके हैं

China

China

चीन जब “मुंह में राम, बगल में छुरी” वाली कहावत छोड़ने को तैयार ही नहीं तब क्या हमें उसके साथ दोस्ती की पींग बढ़ाने से पहले सौ बार सोचना नहीं चाहिए? पड़ोसी देशों से सम्बंध बढ़ाने का कोई विरोध नहीं करेगा लेकिन बार-बार धोखा खाने के बावजूद जरूरत से ज्यादा दिखावे से तो बचा जा सकता है। पिछले साल चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत आए तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शहर अहमदाबाद भी गए।

प्रोटोकॉल तोड़कर साबरमती नदी के तट पर झूला झूलते-झूलते बतियाए भी। दिल्ली गए तो भी शानदार स्वागत हुआ उनका। लगा दोनों देशों के बीच रिश्तों पर जमी बर्फ पिघल रही है। दोनों मिलकर नई ताकत बनकर उभर सकते हैं। व्यापार भी बढ़ा सकते हैं और सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी।

इस साल मई में भारतीय प्रधानमंत्री चीन गए तो भी स्वागत-सत्कार का वैसा ही दौर चला। तोहफों के आदान-प्रदान और चंद समझौतों से लगा कि दोनों नई शुरूआत की तरफ बढ़ रहे हैं लेकिन ऎसी कोशिशों को चीन शायद हमारी कमजोरी मान रहा है। चीनी राष्ट्रपति की सितम्बर 2014 में भारत यात्रा से सप्ताह भर पहले लद्दाख में चीनी सैनिकों का सीमा में घुस आना, सैनिकों को बंधक बना लेना चीन की नीयत दर्शाने के लिए पर्याप्त है। दो देश जब पुरानी बातों को भुलाकर नया अध्याय लिखने की दिशा में कदम बढ़ाते हैं तो सेनाएं एक-दूसरे की सीमा में नहीं घुसती हैं। सड़कें नहीं बनाती। चीन वो सब कर रहा है जो पहले भी करता आया है।

जो खबरें अब आ रही हैं वह तो और भी चौंकाने वाली हैं। भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा के एक सप्ताह बाद ही भारतीय सीमा में सेंध लगाकर चीन कराची तक पनडुब्बी पहुंचाने में कामयाब रहा। यानी दोस्ती तो भारत के साथ लेकिन बढ़ावा पाकिस्तान को। एक तरफ भारत के सैन्य अधिकारी चीन की एक-एक पल की हरकतों पर नजर रखने का दावा करते हैं, दूसरी तरफ चीन आंखों में धूल झोंककर हमारी जल सीमा के रास्ते पाकिस्तान की मदद कर रहा है।

पड़ोसी देशों से सम्बंध सुधारने की पहल में बुराई नहीं लेकिन सतर्क रहने की जरूरत है। चीन पर आंख मूंदकर भरोसा करने की कीमत हम चुका चुके हैं। भविष्य में ऎसी चूक नहीं हो। उसकी करतूतों पर नजर भी रखें और उसे सावचेत भी करते रहें। ऎसा ना हो वो हमारी खामोशी को कमजोरी समझ बैठे। दोस्ती की राह पर चलने की पहल स्वागत योग्य मानी जा सकती है लेकिन आंख मूंदकर भरोसा करना ठीक नहीं।


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