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भविष्य से खिलवाड़

पिछले दिनों एक के बाद कई ऎसे प्रकरण सामने आए हैं जिससे देश में परीक्षा प्रणाली पर गहरे सवाल उठे

Mar 31, 2015 / 01:52 am

शंकर शर्मा

पिछले दिनों एक के बाद कई ऎसे प्रकरण सामने आए हैं जिससे देश में परीक्षा प्रणाली पर गहरे सवाल उठे हैं। ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा रद्द किए जाने का है। इसके पहले बिहार में बोर्ड परीक्षाओं में भारी नकल की तस्वीरें सामने आई थीं। इसके भी पहले मध्यप्रदेश में व्यापम घोटाला चर्चा में रह चुका है। धांधलियों को लेकर राजस्थान लोक सेवा आयोग भी पिछले दिनों लगातार चर्चा में रहा है। राज्यों में होने वाली अन्य परीक्षाओ पर भी कई बार सवाल उठते रहे हैं। अगर यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब लोगों को इन परीक्षाओं से भरोसा ही उठ जाएगा। आखिर क्या है इस समस्या का कारण और क्या है हल, इसी पर पढिए आज के स्पॉटलाइट में जानकारों की राय…


आकलन के पुराने ढर्रे को बदलना होगा
शरद चंद्र बेहार पूर्व मुख्य सचिव, मध्यप्रदेश
इस बार उत्तर प्रदेश में लोक सेवा आयोग परीक्षा का पर्चा लीक हो गया है। हमारे भारत में कौन सी परीक्षाएं हैं, जिनके पर्चे लीक नहीं हुए होंगे ? कहीं ना कहीं किसी ना किसी परीक्षा को लेकर इस तरह की घटनाएं सामने आती ही रहती हैं। इन गड़बडियों की अपनी तरह से जांच होती हैं और कानून के मुताबिक अपराधियों को सजा भी मिलती है। आमतौर पर पर्चा लीक होने के मामले में सबसे कमजोर कड़ी प्रिंटिंग प्रेस होती है, जहां पर पेपर की छपाई होती है। पूर्व के प्रकरणों से तो यही साबित होता है।

पुराना है परीक्षा का तरीका
हमारे देश में किसी भी क्षेत्र की दक्षता का आकलन करने का तरीका बहुत ही पुराना है। इस तरीके में जो कुछ आपने स्कूल या कॉलेज के स्तर पर पढ़ाई की है, उसे कितनी अच्छी तरह से उसे कागज पर उतारा जाता है, इसी आधार पर दक्षता की जांच की जाती है। इस जांच में परीक्षा कराने वाली संस्था ईमानदारी के साथ परीक्षा को आयोजित करने की तैयारी करती है। बहुत ही सावधानी और गोपनीयता के साथ प्रश्नपत्र तैयार किये जाते हैं। फिर विश्वसनीय प्रेस में इसकी छपाई होती है।

परीक्षा कक्ष में पेपर के वितरण तक पूरी गोपनीयता बरती जाती है। दुर्भाग्य से कुछ परीक्षार्थी और उनके रिश्तेदार इस जुगत में लग जाते हैं कि इस गोपनीयता को कैसे भंग किया जाए। ऎसा लगता है कि प्रश्नपत्र की गोपनीयता को भंग करने का संघर्ष हो रहा है। फिर भी कुछ गलत हो जाता है तो जांच की जाती है कि कहां गड़बड़ है और फिर उस गड़बड़ को ठीक करने के इंतजाम हो जाते हैं। यह पुरानी व्यवस्था को बनाए रखने का तरीका है। भले ही यह तरीका अल्पावधि है लेकिन यही तरीका काम में लिया जाता है।

बदलना होगा इस ढर्रे को
बेहद दुख की बात है कि हम लिखित परीक्षा के आधार पर किसी की दक्षता की जांच कर रहे हैं। यह तरीका बहुत पुराना हो गया है, इसमें खामियां उजागर हो रही हैं। इस मामले में दुर्भाग्य से हम कुछ समझने और सीखने को तैयार नहीं है। हम अब भी उसी परंपरा से चिपके हुए हैं। हमें विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग पदों के लिए अलग दक्षता वाले लोगों की आवश्यकता होती है। हमें उस क्षेत्र की दक्षता का मूल्यांकन करना होगा। अलग-अलग मनोवैज्ञानिक परीक्षा तैयार कर सकते हैं।

उस आधार पर व्यक्ति की तार्किकता, उसकी देश और जनता के लिए काम करने की सोच की जांच की जा सकती है। हमारे देश की फौज में भी लिखित और शारीरिक परीक्षा के अलावा इस तरह की परीक्षा के जरिये भी दक्षता का आकलन किया जाता है। अब तीन घंटे की लिखित परीक्षा के जरिये दक्षता का मूल्यांकन करने की प्रणाली को छोड़कर आगे बढ़ना होगा। यह प्रणाली अवैज्ञानिक है। इसे जल्द से जल्द बदलने की जरूरत है। नई तरीके में गोपनीयता भंग होने की कोई समस्या ही नहीं रहेगी।


मसला प्रबंधन का नहीं
प्रो. अनीता रामपाल, दिल्ली विवि
मेरे लिए किसी विद्यार्थी का नकल करके 99 नंबर ले आना और रट कर 99 नंबर ले आना दोनों समान रूप से चिंता की बात हैं। दोनों ही परीक्षा प्रणाली पर सवाल उठाते हैं कि आखिर हम परीक्षा के माध्यम से मापते क्या हैं? वह कैसी परीक्षा होगी जिसमें सिर्फ एक कागज के टुकड़े के माध्यम से विद्यार्थी पास हो सकता है। पर दुख की बात यह है कि हम नकल पर सवाल उठाते हैं, पेपर लीक होने को समस्या बताते हैं और इस तरह से इसे प्राय: शिक्षा से ज्यादा कानून-व्यवस्था का मुद्दा बना दिया जाता है। पर हमारी परीक्षा और मूल्यांकन प्रणाली पर कोई सवाल नहीं उठाया जाता?

अगर हम आरंभ से ही परीक्षाओं को “ओपन बुक प्रणाली” पर आयोजित करें तो प्रतिस्पर्घी परीक्षाओं तक आते-आते विद्यार्थी मानसिक रूप से नकल करके पास करने की मानसिकता में होगा ही नहीं। पर “ओपन बुक” परीक्षा आयोजित करने पर यह जरूर होगा कि प्रश्न पत्र बनाना चुनौती पूर्ण हो जाएगा, जो कि अभी नहीं है। बहु विकल्पीय प्रश्न पत्र भी ऎसे बनाये जा सकते हैं, जिनमें विद्यार्थी की सूचनाओं और जानकारी से ज्यादा उसकी समझ और ज्ञान की परीक्षा हो। पर हमारे देश में ऎसा प्राय: नहीं होता।

फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि प्रतिस्पर्घी परीक्षाओं में पेपर लीक होने जैसी समस्याओं से पूरी तरह से मुक्ति मिल जाएगी। इसका कारण है कि भारत में इन परीक्षाओं में परीक्षार्थी का दांव पर बहुत कुछ लगा होता है। परीक्षार्थियों की संख्या बहुत ज्यादा होती है, इसलिए ऎसे तत्वों को पेपर लीक करना तो लॉटरी खुलने जैसे सौदा नजर आता है।


राजनीतिक दखल है कारण
महेश शर्मा, संपादक, कैरियर 360
यह समस्या आसानी से नियंत्रित हो सकती है। बस इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए। यह सोचने की बात है कि पेपर आउट होने जैसी समस्याएं आईआईटी-जेईई तथा कैट के परीक्षा में क्यों नहीं होतीं? संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में भी यह समस्या बहुत ही कम देखी गई है। आईआईटी-जेईई की परीक्षा में 10 लाख से अधिक लोग लिखित परीक्षा देते हैं और 1 लाख छात्र ऑनलाइन परीक्षा देते हैं। फिर भी कभी पेपर लीक होने की समस्या नहीं देखी गई।

इसलिए राज्यों में अगर इस तरह की घटनाएं हो रही हैं तो जाहिर है कि सिस्टम में कहीं न कहीं कोई “लूप-होल्स” तो छोड़ा गया है। वहां पर राजनीतिक या बाहरी दखल ज्यादा है। इसलिए अगर हर पेपर लीक पर या बिहार में नकल जैसी घटनाओं पर किसी की जिम्मेदारी तय हो, तो फिर इस तरह की घटनाओं पर नियंत्रण पाया जा सकता है। अभी होता यह है कि किसी नियम-कानून के उल्लंघन पर कोई दंड नहीं है। जैसे ट्रेफिक में जब एक आदमी बेधड़क होकर रेड लाइट क्रॉस करता है तो फिर सभी रेड लाइट क्रॉस करना शुरू कर देते हैं। क्योंकि किसी को दंड को डर ही नहीं है। ऎसा ही परीक्षा और मूल्यांकन में हो रहा है।


इस तरह के बढ़ते प्रकरणों का एक पहलू यह भी है कि हमारी प्रणाली में परीक्षा जैसे अहम मुद्दे को भी गंभीरता से नहीं लिया जाता, जबकि एक विद्यार्थी या परीक्षार्थी के लिए यह जीवन-मरण का प्रश्न होता है। पर जब वह देखता है कि कई लोग बिना किसी मेहनत के ही गलत माध्यमों से परीक्षा पास कर रहे हैं तो फिर परीक्षार्थी का सिस्टम पर ही भरोसा उठ जाता है।


एक तरह से यह मानसिक संतुलन बिगड़ने जैसी स्थिति होती है। इसलिए इतना तो हमें करना ही होगा कि इस तरह के प्रकरणों पर किसी न किसी को दंड मिले। शुरूआत राजनीतिक स्तर से करनी होगी। अगर पेपर लीक पर शिक्षा मंत्री को लगे कि उसको इस्तीफा देना होगा, तो फिर वह पूरे सिस्टम पर चुस्त निगरानी रखने को बाध्य होगा। पर अभी तो उसे पता है कि उसकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, इसलिए वह इस तरह की घटनाओं की ज्यादा परवाह ही नहीं करता।


उचित गंभीरता नहीं
प्रो. जनत शाह निदेशक, आईआईएम उदयपुर
पेपर लीक होने जैसा मुद्दा अत्यंत गंभीर विषय है। यह छात्रों के भविष्य के साथ खेलने के समान है। हमारे विद्यार्थी ही हमारा भविष्य हैं। इसलिए यह विषय हमारी शिक्षा प्रणाली की सर्वोच्च प्राथमिकता में होना चाहिए। सिर्फ प्रतिस्पर्घी परीक्षा प्रणाली ही नहीं, स्कूल स्तरीय या विवि स्तरीय ग्रेडिंग प्रणाली भी छात्र में भरोसा जगाने वाली होनी चाहिए।

मूल्यांकन प्रणाली ऎसी हो जिससे छात्र अपने को भी जांच-परख सकें। इसके लिए हमें सख्त जवाबदेही भी तय करनी चाहिए। जो भी गलती के लिए जिम्मेदार हो उसे दंड तो मिलना ही चाहिए। तभी इस तरह की निरंतर बढ़ती घटनाओं पर काबू पाया जा सकता है। विकसित देशों की तुलना में हमारे यहां इस तरह की घटनाएं इसलिए ज्यादा होती हैं क्योंकि हमारे देश में परीक्षार्थियों की संख्या बहुत ज्यादा होती है। दूसरा है, परीक्षार्थियों का दांव पर बहुत कुछ लगा होता है।

तीसरा पहलू है कि जो भी शिक्षा व्यवस्था का प्रबंध देखने वाले हैं वे उसको समुचित गंभीरता से नहीं लेते। यह भी है कि यह हमारे समाज में भ्रष्टाचार की समस्या का ही एक पहलू है। इसका हल यही है कि जवाबदेही तय हो, अधिक संतुलन प्रक्रियाएं अपनाई जाएं और अधिक अवसर पैदा कर मांग और पूर्ति का अंतर को कम किया जाए।

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