लोगों को जोड़ने का माध्यम बनने वाला खेल ही अगर तोड़ने
का काम करने लगे तो क्या माना जाए? उसमें अगर एक अखबार की भूमिका भी हो तो मामला और
गंभीर हो जाता है। सप्ताह भर पहले बांग्लादेश ने एक दिवसीय क्रिकेट में पहली बार
भारत को मात देकर सीरीज जीती।
जीत पर टीम को खुशियां मनाने का हक था। विश्व में
दूसरे नंबर की भारतीय टीम को अपनी धरती पर 2-1 से मात देना बांग्लादेश की
अविस्मरणीय उपलब्घि मानी जा सकती है। इस जीत को भुनाने के लिए बांग्लादेश के प्रमुख
अखबार “प्रोथोम ओलो” में छपा एक विज्ञापन सारी मर्यादाएं लांघ गया। जिसमें
बांग्लादेशी गेंदबाज मुस्तफिजुर रहमान को उस्तरा लिए हुए दिखाया है और नीचे सात
भारतीय बल्लेबाजों के आधे सिर मुंडे दिखाए गए हैं। स्टेशनरी के इस विज्ञापन में
दर्शाया गया है कि कैसे एक गेंदबाज ने पूरी भारतीय टीम को नाकों चने चबवा दिए।
यह
सही है कि तीन मैचों में मुस्तफिजुर ने 13 विकेट लेकर भारतीय टीम की कमर तोड़ने में
उल्लेखनीय भूमिका निभाई लेकिन इसको इस तरह प्रचारित करना उचित नहीं माना जा सकता।
खेल में हार-जीत सिक्के के दो पहलू हैं। अखबार में विज्ञापन देने वाली कंपनी को पता
होना चाहिए कि बांग्लादेश की टीम भारत के साथ अब तक 32 मैच खेल चुकी है जिसमें से
26 में उसे हार का मुंह देखना पड़ा। 15 सालों में बांग्लादेश टैस्ट मैचों में आठ
बार भारत के सामने उतरा है और उसमें से 6 में उसे पराजित होना पड़ा तथा दो मैच
बराबरी पर छूटे।
पहली बार सीरीज जीतने की खुशी को इस तरह दर्शाने से उसकी टीम महान
नहीं बन जाएगी। इतने सालों से टीम हार रही है तो क्या तब भी ऎसे विज्ञापन छपे?
क्रिकेट हो या फुटबाल, हॉकी अथवा बास्केटबॉल, मैच के दौरान अनेक बार प्रशंसकों को
भिड़ते देखा गया है। हारने पर स्टेडियम में तोड़-फोड़ और आगजनी भी होती है लेकिन
जीत के बाद ऎसा विज्ञापन शायद यह पहली बार होगा। समाचार पत्रों में छपने वाले
विज्ञापनों पर नजर रखने वाली एजेंसी को ऎसे भड़काऊ विज्ञापन देने वाली कंपनी और
समाचार पत्र के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।
बांग्लादेश टीम ने बेहतर प्रदर्शन कर
भारत को शिकस्त दी, इसके लिए वह बधाई की हकदार है। हार के बाद भारतीय टीम को आलोचना
का शिकार होना पड़ा। यानी हार-जीत खेल का स्थायी अंग है और उसे उसी रूप में लिए
जाने की जरूरत है। हर खेल प्रेमी को ऎसे हथकंडों से बचना चाहिए जो खेल भावना को ठेस
पहुंचाए।