व्यंग्य राही की कलम से
उनकी उम्र तीन कम नब्बे है। कल सांझ फोन आया- आ जाओ। मिल लो। व्यस्तता के बहाने न बनाना। समय न होने की बात न कहना। एक मच्छर तुम्हारी जिन्दगी के पांच दिन हड़प सकता है। तो एक शाम हमारे नाम करो। उनका आग्रह इतना तीव्र था कि हम इनकार न कर सके। पहुंचते ही बोले- तुमने कभी सोचा कि यह देश कैसे सुधर सकता है। उनका मूल प्रश्न सुन हम हड़बड़ा गए। हम बोले- आप नंदलाल हैं। आपकी लीला आप ही जाने। आप ही बताओ। उन्होंने पूछा- इस देश की सबसे बड़ी समस्या क्या है? हम तड़ाक से बोले-भ्रष्टाचार। यह मिटेगा कैसे? हमने बाउन्सर फेंका।
उन्होंने डरपोक खिलाड़ी की तरह ‘डक’ नहीं किया वरन् उसे ‘पुल’ करते हुए कहा- गरीबी। जब गरीबी मिटेगी तब भ्रष्टाचार खत्म होगा। कितना वेतन देते हो एक ‘सिपाही’ को। दिन भर पेलते हो और थोड़ी तनखा देकर बहलाते हो। गरीबी आदमी को अमानुष बनाती है। तुम्हारे नेता किस ऐशोआराम में जीते हैं। सीमा पर लडऩे वाले सिपाही को सिर्फ अट्ठारह हजार मिलते हैं और संसद में नींद निकालने वालों को ढाई लाख।
क्या तुमने कभी सुना कि किसी नेता का बेटा सीमा पर शहीद हुआ? इस देश में नेता का बेटा नेता और उद्योगपति का बेटा उद्योगपति बनता है। क्यों नहीं तय कर दिया जाए कि चुनाव वे ही लड़ सकेंगे जो पांच वर्ष सेना में रह कर आए हों। विदेशों में तो सैन्य सेवा में रहना जरूरी होता है। क्यों नहीं सरकारी कर्मचारियों की औलादों को सरकारी स्कूलों में पढऩा अनिवार्य कर दिया जाए? क्यों नहीं तय किया जाए कि टैक्स चोरी करने वाले के पूरे परिवार को जेल होगी।
सत्य तो ये है कि हम सब चोर हैं, कोई छोटा चोर, कोई बड़ा चोर। दिल्ली में एक लड़की को एक सिरफिरा पचास बार चाकू घोंपता रहा और लोग देखते रहे। ऐसे कापुरुषों के समाज में बदलाव की उम्मीद रखना बेमानी है। हम आंख फाड़े उस सत्तासी साल के नौजवान को देखते रह गए।