लेकिन काश! जवानी में तो सुनहरी फे्रम वाला काला चश्मा खरीदने की औकात ही नहीं बनी और जब हैसियत हुई तो जवानी और आंखें दोनों ने साथ छोड़ दिया। चश्मा तो लगाना ही पड़ता है क्योंकि न लगाने पर एक दिन हम भैंस को काली बकरी समझ कर उससे जा टकराए।
आज काला चश्मा इसलिए याद आया कि अपने ट्रेवलर पीएम की अगवानी करने आए युवा कलक्टर ने काला चश्मा लगा कर उनका स्वागत कर दिया। जरा पड़ताल करें कि लोग काला चश्मा क्यों लगाते हैं। आम तौर पर यह धारणा है कि धूप से बचने के लिए काला चश्मा लगाते हैं लेकिन यह बात आंशिक सही है। अपने प्रधानमंत्रियों में काला चश्मा कौन-कौन लगाता था? हमने कभी पंडित नेहरू और शास्त्री जी की काला चश्मा लगाए एक भी फोटू नहीं देखी।
अलबत्ता इंदिरा गांधी काला चश्मा जरूर लगाती थीं। कहते हैं आदमी का चेहरा झूठ बोल सकता है पर आंखें कभी झूठ नहीं बोलती क्योंकि आंखों से वे भाव झलक ही जाते हैं जो आपके दिल में हैं।
इंदिरा गांधी जब नेताओं से मिलती थीं तो आंखों पर काला चश्मा लगा लेती थीं। उन्होंने तो संजय गांधी की मृत्यु पर भी काला चश्मा लगा रखा था क्योंकि उस संकट की घड़ी में वे गमगीन नहीं दिखना चाहती थीं। राजीव गांधी भी अक्सर काला चश्मा लगा लेते थे।
अटल जी की भी एकाध फोटू काला चश्मा लगाए मिल जाएगी और घुमक्कड़ प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी ने हाल की चीन यात्रा में काला चश्मा लगाया हुआ था।
अब कोई काला चश्मा लगाए या गुलाबी हमें क्या लेना-देना लेकिन नेतागण जनता की आंखों पर वादों का हरा चश्मा इसलिए लगा देते हैं कि जिससे उन्हें सूखा भी हरा ही नजर आए। बेचारे कलक्टर ने काला चश्मा क्या लगा लिया उनकी तो पेशी हो गई। हमें याद है कि बरसों पहले पुरानी इमारतों की सार संभाल करने वाले एक आला अधिकारी होली के दो दिन पहले चंग बजा कर अपने मातहतों के साथ नाच लिए थे तो पूरे अमले में बवंडर मच गया।
मंत्री से लेकर सचिव तक सब की भृकुटियां तन गई थी। उस वक्त भी हमने लिखा था “नाच्यो बहुत गोपाल”। अगर गोपाल अपनी सखियों और गऊओं के साथ नाच लिया तो कौन-सी प्रलय आ गई? हमारा मित्र माधो रात में काला चश्मा लगाए लोगों को देख एक दोहा गुनगुनाता है- “चश्मा लगाने वालों से पूछो, रात में चश्मा क्यों लगाते हैं, क्या इस तरह वे दिन में किए अपने कर्मो को छिपाते हैं?” अब अफसर-नेताओं की वे जाने लेकिन सुनहरी फ्रेम का काला चश्मा लगा इतराने की हसरत अब भी हमारे दिल में है। एक दिन इसे निकालकर मानेंगे ये हमारी जिद है। – राही