scriptअच्छे दिन! | Good day! | Patrika News
ओपिनियन

अच्छे दिन!

बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार के बाद पार्टी नेतृत्व पर सवालिया निशान खड़े करने वाले

Nov 23, 2015 / 11:13 pm

मुकेश शर्मा

bjp

bjp

बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार के बाद पार्टी नेतृत्व पर सवालिया निशान खड़े करने वाले पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने उम्मीद जताई है कि मोदी सरकार अच्छे दिन लाएगी। दूसरी तरफ मोदी के नजदीक समझे जाने वाले बाबा रामदेव भाजपा को अनुलोम-विलोम करने की सलाह दे रहे हैं। यानी आडवाणी और रामदेव जो कह रहे हैं वह उनका अपना नजरिया है लेकिन दोनों की एक खासियत समान है। दोनों मोदी सरकार पर कभी गरम तो कभी नरम नजर आते हैं। दोनों की मजबूरियों को देश समझता भी है लेकिन सवाल ये कि देश की मजबूरी कौन और कब समझेगा?

आडवाणी भाजपा के संस्थापकों में शुमार होते हैं लिहाजा दूसरे नेताओं की तरह उनको तो अच्छे दिनों की उम्मीद होनी ही चाहिए। लेकिन दिल्ली में एक बार और गांधीनगर में दूसरी बात का मतलब भी देश समझना चाहता है। देश यह भी जानना चाहता है कि अच्छे दिन कैसे और कब आएंगे? भाजपा के अनेक नेताओं को अब भी अच्छे दिन महसूस हो रहे हैं लेकिन क्या भाजपा को सत्ता में लाने वाला आम आदमी भी अच्छे दिन महसूस कर रहा है? हर राजनीतिक दल सत्ता में आने से पहले बड़े-बड़े वादे करता है। यह बात अलग है कि सत्ता में आने के बाद उसे सिर्फ अपनी और अपनों की चिंता ही रह जाती है। शायद यही कारण है कि देश की अधिकांश सरकारों को मतदाता दुबारा सत्ता नहीं सौंपता। उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक देश के ऐसे राजनेता हैं जिनसे दूसरे राजनेता बहुत कुछ सीख सकते हैं।


 पिछले 14 सालों से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे पटनायक की पिछले साल ही उड़ीसा की जनता ने चौथी बार ताजपोशी की और वे अभी चार साल और इस पद पर रहेंगे। यानी 19 साल तक लगातार राज। खास बात ये कि अपने पिता बीजू पटनायक की मौत से पहले वे राजनीति में आए ही नहीं थे। पचास साल की उम्र में राजनीति में प्रवेश करने वाले नवीन पटनायक 15 साल से मुख्यमंत्री पद संभाल रहे हैं तो कोई तो विशेषता होगी। और तब जबकि वे उडि़या भाषा तक नहीं जानते। दूसरे राजनेताओं की तरह प्रचार-प्रसार और दिखावे की राजनीति से दूर पटनायक सिर्फ काम पर ध्यान देते हैं।


 उखाड़-पछाड़ की राजनीति से कोसों दूर रहने वाले पटनायक के राजनीतिक विरोधियों की संख्या भी नगण्य है। यानी काम अपने आप बोलता है। अच्छे दिन ढोल बजाने से नहीं आते और न अखबार-टीवी चैनलों पर विज्ञापनों से अच्छे दिनों का अहसास होता है। अच्छे दिन महसूस करने की चीज होती है। आडवाणी अथवा भाजपा के दूसरे नेताओं को अच्छे दिनों की उम्मीद है तो उसको लाने के लिए काम करना पड़ेगा। इसके लिए न 56 इंच की छाती दिखाने की जरूरत है और न किसी के डीएनए टेस्ट की। अनुलोम-विलोम और कपाल भाती से भी कुछ होने वाला नहीं। चुनावी वादों को हकीकत में बदलना है तो छिछली राजनीति के मोह को त्यागना होगा। देश की जनता भी यही चाहती है।

Home / Prime / Opinion / अच्छे दिन!

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो