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सरकारी पढ़ाई

Published: May 24, 2015 10:05:00 pm

हर कर्मचारी चाहे चपरासी हो या कलक्टर या मिनिस्टर,
पटवारी हो या हैडमास्टर, सबके बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढ़ेंगे

Government studies

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अकबर इलाहाबादी का शेर है- हम उन सारी किताबों को काबिले जब्ती समझते हैं, जिन्हें पढ़-पढ़ के बेटे बाप को खब्ती समझते हैं। कसम नेशनल सरकारी स्कूल की, हमारा बस चले तो हम सारे सरकारी स्कूलों को बंद कर दें।

ताला क्यों न लगा दें उन पर। रिजल्ट साफ-साफ सच्चाई कह रहे हैं। अब आप हमें पब्लिक स्कूलों का दलाल मत समझ लेना। सरस्वती की कसम। हम तो खुद सरकारी स्कूल में पढ़े हैं और सरकारी मास्टरों की बदौलत ही हमने चार-चार डिग्रियां ली हैं। अगर उस वक्त सरकारी स्कूल न होते तो बापू के मरने के बाद हम किसी मंडी में पल्लेदारी कर रहे होते। क्योंकि तब और अब भी सरकारी स्कूलों में भूंगड़ों में पढ़ाई होती है।

फीस न के बराबर लेकिन मास्टर की तनखा! हमारे जमाने में मास्साब का वेतन बहुत कम होता था लेकिन वे पढ़ाने में जी-जान लड़ा देते थे। हमें अपने टीचर मातादीन जी याद हैं जो पढ़ाते भी थे और संगीत भी सिखाते थे। उन्हीं की बदौलत हम नजीर अकबराबादी का “आदमीनामा” और “बंजारानामा” गा लेते हैं।

आज के अध्यापकों का वेतनमान सुनोगे तो गश आ जाएगा। तनखा पूरी, पढ़ाई ठेंगा। बेचारी सरकार रोती रहती है कि अरे इतना माल कमाते हो कुछ तो बच्चों का ख्याल करो। लेकिन मास्टर जी को गांव में अपनी चक्की और भैंस संभालने से फुरसत हो तब। कोई हमें बताए तो सही कि राजधानी के नामी स्कूल जिनमें हजारों बच्चे पढ़ते थे और जिनके पढ़े-लिखे छात्र आज कई क्षेत्रों में अपने ज्ञान का डंका पीट रहे हैं वे किसकी बदौलत बंद हुए।

उन निकम्मे अध्यापकों की वजह से जो पढ़ाते धेले का नहीं पर राजनीति खूब कर लेते थे। कोई पूछे तो सही उनसे कि हुजूर आपकी औलादें इन स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ती? इसलिए कि वे हकीकत जानते हैं। सरकारी स्कूल में तो गरीब-गुरबों का बेटा ही पढ़ेगा। पढ़ेगा तो पढ़ेगा वरना फावड़ा-हथौड़ा है ना उसके लिए।

सरकार ने मास्टरजी का आधा घंटा समय क्या बढ़ा दिया बेचारों की जान ही निकल गई। अरे निजी विद्यालयों में जाकर देखो जहां के बच्चे टॉप कर रहे हैं। वहां गुरू का वेतन कितना है? सरकारी स्कूल के अध्यापक की तनखा से दस गुणा कम। लेकिन पढ़ाई का स्तर दस गुणा बेहतर। क्यों जी सरकारी स्कूलों में जो पैसा लगता है वह फोकट में मिलता है क्या ? ये आम जनता से एकत्र टैक्स का पैसा है।

सरकार उपाय खोजती है कि सरकारी स्कूलों की दशा कैसे ठीक करे। हम बताते हैं चुटकियों में इलाज। सरकार कानून बना दे कि हर सरकारी कर्मचारी चाहे वो चपरासी हो या कलक्टर या मिनिस्टर, पटवारी हो या हैडमास्टर सबके बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढ़ेंगे। अगर उसका बच्चा कहीं और पढ़ता पाया गया तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाएगा। कसम से दो साल में कायापलट न हो जाए तो आपकी जूती हमारा सिर। लेकिन ऎसी इच्छाशक्ति किसमें है? हरामखोरी का अलग ही आनंद है।

राही
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