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उम्मीद बाकी या फिरा पानी!

Published: Oct 07, 2015 10:27:00 pm

विदेशों में कालेधन के बारे में अलग-अलग
अनुमान रहे हैं, कुछ लोगों के मुताबिक यह जीडीपी के 10 फीसदी के

Black money

Black money

विदेशों में कालेधन के बारे में अलग-अलग अनुमान रहे हैं, कुछ लोगों के मुताबिक यह जीडीपी के 10 फीसदी के बराबर है तो कुछ के मुताबिक यह 100 फीसदी तक यानी 2 खरब डॉलर से कुछ कम है।


सीबीआई इसे 500 अरब डॉलर तो अमरीका की ग्लोबल फाइनेंसियल इंटेग्रिटी इसे 440 अरब डॉलर बताती है। जहां तक भाजपा के चुनावी वादे की बात है तो उसके अनुसार विदेशों में पड़ा कालाधन अगर बांट दिया जाए तो हर नागरिक के हिस्से 15 लाख रूपए आ सकते थे लेकिन अब तक हुई कालेधन की घोषणा के आधार पर तो यह ऊंट के मुंह में जीरा ही हैै।


पिछले साल लोकसभा चुनाव मुख्य तौर पर भ्रष्टाचार और विकास के मुद्दों पर लड़ा गया। कोयला, 2-जी स्पैक्ट्रम, कॉमन वैल्थ गेम्स समेत कई घोटालों का “कैग” और अन्य एजेंसियों के जरिए खुलासा होने के बाद देश की जनता ने नई सरकार के गठन के लिए वोट डाला।


कालेधन के बारे में कई गैर सरकारी अनुमान भी आए। इससे पहले वर्ष 2009 के चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने एस. गुरूमूर्ति के नेतृत्व में एक टॉस्क फोर्स भी बनाई थी जिसने कालेधन के विषय में एक रिपोर्ट भी तैयार की। कहीं न कहीं उस समय की सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व पर भी शक की सुई घूमी।

विदेशों में कालेधन के बारे में अलग-अलग अनुमान हैं, कुछ लोग कहते हैं कि यह जीडीपी के 10 फीसदी के बराबर है तो कुछ लोग उसे जीडीपी के 100 फीसदी तक भी बताते हैं, यानी 2 खरब डॉलर से थोड़ा सा कम। सीबीआई इसे 500 अरब डॉलर कहती है, तो अमरीका की ग्लोबल फाइनेंसियल इंटेग्रिटी इसे 440 अरब डॉलर बताती है।


जहां तक भारतीय जनता पार्टी के चुनावी वादे की बात है उसके अनुसार विदेशों में पड़ा कालाधन ही इतना है कि अगर उसे बांट दिया जाए तो हर नागरिक के हिस्से 15 लाख रूपए आएंगे।

वादा नहीं हो सका पूरा

2014 के चुनावों के दौरान भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी का यह वादा कि सत्ता में आने के 100 दिन के भीतर कालाधन वापिस लाया जाएगा पूरा नहीं हो पाया। सरकार में इच्छा शक्ति की कमी से ज्यादा कालेधन के मुद्दे की जटिलता बड़ा कारण रही।


देर में ही सही, सरकार ने एक कानून पारित जरूर किया। हालांकि कुछ लोगों का यह भी कहना था कि नया कानून बनाने की जरूरत नहीं थी, क्योंकि देश में कालेधन के बारे में पहले से पर्याप्त कानून हैं और उन्हें केवल लागू करने की जरूरत है। लेकिन यह भी सही है कि जो नया कानून बनाया गया उसमें जुर्माने और जेल समेत बहुत सी सख्त धाराएं जोड़ी गई।


काले धन की वापसी

भारतीयों द्वारा विदेशों में पड़े कालेधन को भारत में लाने के तरीकों में एक तरीका शेयर बाजार में पैसा लगाने वाले विदेशी संस्थागत निवेशकों के माध्यम से कालाधन लाए जाने का है। इस तरीके में पार्टिसिपेटरी नोट्स के माध्यम से पैसा लाया जाता है।


इस माध्यम से पैसे के स्त्रोत के बारे में जानकारी नहीं होती। पिछले कुछ समय से यह मुद्दा खासा गरमाया हुआ है कि इस तरीके से न केवल कालाधन रखने वाले लोग बिना टैक्स दिए शेयर बाजार में पैसा लगा सकते हैं, बल्कि उग्रवादी संगठन भी इस माध्यम से भारत के शेयर बाजार में पैसा लगाकर लाभ कमा रहे हैं।

अलग देश-अलग कानून


अलग-अलग मुल्कों में टैक्स के अलग-अलग कानून होने का भी कालेधन वाले लोग फायदा उठाते हैं और “टैक्स हैवन” मुल्कों के जरिए देश में कालाधन लाने में सफ ल हो जाते हैं।


भारत सरकार ने पहले से ही विभिन्न मुल्कों के साथ दोहरे कर आवंचन (डीटीएटी) संधियां कर रखी हैं, जिसके कारण इन लोगों को देश में पैसा ट्रांसफर करने में न तो कोई अड़चन आती है और न तो कोई टैक्स देना पड़ता है। गौरतलब है कि एक छोटे से मुल्क मॉरीशस जिसकी जीडीपी बहुत ही कम है, से भारत में आने वाले निवेश का 40 प्रतिशत आता है।


देश में जहां गरीबी के उन्मूलन और विकास के लिए धन का अभाव है, अमीर और भ्रष्टाचारी लोगों द्वारा विदेशों में कालाधन रखने और उसे गलत तरीके से भारत में लाने में किसी भी प्रकार की सुविधा देना देशहित में नहीं है। इस बाबत सख्ती करने, कानूनों और विदेशों से संधियों में बदलाव निहायत ही जरूरी है, ताकि भविष्य में भ्रष्टाचारी लोग कालाधन कमाने और उसे विदेशों में ले जाने की हिम्मत न कर पाएं।

नए कानून में मौका


सरकार ने कहा था कि 30 सितंबर 2015 तक विदेशों में रखे कालेधन को घोषित कर बड़े जुर्माने और जेल से बचा जा सकता है। निर्धारित समय सीमा में कालेधन को घोषित करने पर 30 प्रतिशत कर और 30 प्रतिशत जुर्माना यानी 60 प्रतिशत देकर पैसा देश में लाने का प्रावधान था। हालांकि केन्द्रीय वित्तमंत्री अरूण जेटली ने यह कहा था कि कालेधन का कानून लागू हो चुका है। इसके मुताबिक अब सरकार को छूट है कि वह निर्धारित समय सीमा में विदेश में जमा कालाधन घोषित नहीं करने वालों के खिलाफ जांच करवाकर उनके नाम सार्वजनिक कर सकती है।

चिंता यह भी है


यह भी चिंता व्यक्त की जा रही है कि कानून इतना सख्त है कि छोटे स्तर पर अफसरशाही लोगों को परेशान कर सकते हैं। ऎसा न हो इसके लिए सरकार इस कानून के लागू करने के बारे में कुछ नियम भी बना रही है। नए मानकों के अनुसार इस कानून के बारे में निर्णय लेने का अधिकार केवल संयुक्त कमिश्नर स्तर के अधिकारी को ही होगा।

संयुक्त कमिश्नरों के स्तर पर बड़ी संख्या में भर्ती नहीं हुई है, इसलिए इस कानून को लागू करना भी एक चुनौती होगा। किसी सख्त कानून के अभाव में जिन धनाढ्य लोगों ने बड़ी मात्रा में कालाधन विदेशों में भेज दिया इनमें औद्योगिक घरानों समेत प्रभावशाली लोग भी हैं। जिनका खुलासा करने में मुश्किल आ सकती है।

ये करने होंगे सुधारं


सोचना यह होगा कि भविष्य में लोग कालाधन कमाने और उसे विदेशों में रखने से बाज आए। नए तरीके खोजने होंगे, ताकि कॉरपोरेट के लोगों द्वारा विदेशों में रखा कालाधन वापिस आ सके। यही नहीं विदेशों से दोहरे कर आवंचन की संधियों का जो दुरूपयोग कॉरपोरेट घरानों द्वारा किया जा रहा है, उसपर भी लगाम लगाना जरूरी है। चूंकि मॉरीशस में नाममात्र का टैक्स है, इसलिए भारत में उन पर टैक्स लगाया जाना चाहिए। इसके लिए मॉरीशस समेत कई अन्य मुल्कों से संधि को बदला जाना जरूरी है।


देश में जहां गरीबी के उन्मूलन और विकास के लिए धन का अभाव है, वहीं अमीर और भ्रष्टाचारी लोगों द्वारा विदेशों में कालाधन रखने और उसे गलत तरीके से भारत में लाने में किसी भी प्रकार की सुविधा देना देशहित में नहीं है। इस बाबत सख्ती करने, कानूनों और विदेशों से संधियों में बदलाव निहायत ही जरूरी है, ताकि भविष्य में भ्रष्टाचारी लोग कालाधन कमाने और उसे विदेशों में ले जाने की हिम्मत न कर पाएं।

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