scriptकितने खाते? | How many accounts? | Patrika News
ओपिनियन

कितने खाते?

जरा वेतनभोगियों से आगे की सोचिए।
आपने तो अच्छे दिनों का वादा करके इनकमटैक्स की छूट पर भी ठेंगा दिखा दिया

Apr 19, 2015 / 10:10 pm

शंकर शर्मा

Income tax return

Income tax return

मान गए उस्ताद! अपने वकील साब को। क्या बात है! मजे बांध दिए! वाह वाह! इनमें और हममें यही समानता है। इनके सिर पर भी उतने ही बाल बचे हैं जितने हमारे सिर पर। ये भी चुनाव हार चुके हैं और हमने भी आज तक कोई चुनाव नहीं जीता। फर्क सिर्फ इतना है कि इन्होंने चुनाव लड़ा और हमने नहीं लड़ा। एक समानता और है इनकी भी राशि “मेष” है और हमारी भी। मेष राशि वाले दूसरों से ज्यादा खुद को प्रेम करने वाले होते हैं। ये भी अपने वित्तमंत्री होने पर मुग्ध हैं और हम कलमघसीटू होने पर। लीजिए। भेद खुल ही गया।

जी हां। हम अपने वित्तमंत्री जी की बात कर रहे हैं। वाह क्या पासा फेंका है। इस साल जो अपनी इनकमटैक्स रिटर्न दाखिल करनी थी उसमें अपने बैंक खाते का विवरण भी देना अनिवार्य किया जा रहा था। शुक्र है जेटली जी का। वे इसमें संशोधन के लिए मान गए। उन्होंने हमारे जैसे फोकटियों के बैंक खाते की डिटेल्स ही मांगी।

कल पूछ लेे कि तीन सौ पैंसठ दिन क्या खाया है, कितना पिया है। कहां-कहां गए। रातें कहां बिताई तो भाई साहब हम तो गए बारह के भाव। क्योंकि हमारी याददाश्त इतनी कमजोर पड़ चुकी है कि यह भी याद नहीं रहता कि सुबह किस चीज की सब्जी खाई थी। कसम से कमीज के बटन तो ऊपर-नीचे करते ही हैं, कई बार तो पतलून की जिप तक चढ़ाना भूल जाते हैं। लेकिन सरकार को सारा हिसाब-किताब देना होगा। आप हमारी बातों से यह न समझना कि हमारी कोई काली कमाई होती है और हमारे पास कोई दर्जन भर चेक बुकें हैं। जी नहीं। नंगा क्या धोएगा और क्या निचोड़ेगा? जो कमाते हैं वह फटाफट उड़ जाता है लेकिन वकील धनमंत्री का भी बस केवलल वेतनभोगियों पर ही चलता है। सबसे पहले तो काले धनधारी नेताओं और पूंजीपतियों पर हाथ डालो जी।

इससे भी पहले जरा उस विभाग की सफाई करो जहां हमारी कमाई का हिसाब- किताब देखा जाता है। वहां आपको एक से एक मगरमच्छ मिलेंगे जिनका काम ही दूसरों के काले पैसे को नियमों में लपेट कर सफेद करना है। पिछले दिनों ही पकड़ में आए एक आयुक्त साब के पास इतने फॉर्म हाउस निकले हैं कि उनमें हमारे जैसे हजारों ईमानदार “गधे” मजे से चर सकते हैं। हाालांकि मंत्री का भी बस नौकरीपेशा, वेतनभोगी, छोटे खुदरा व्यापारी, ईमानदार उद्यमियों पर ही चलता है। जितना कमाते नहीं उससे ज्यादा माथापच्ची तो सरकार को अपना हिसाब-किताब बताने में हो जाती है। वकील साब आपके पास वक्त है तो जरा वेतनभोगियों से आगे की सोचिए।

आपने तो अच्छे दिनों का वादा करके इनकमटैक्स की छूट देने पर भी ठेंगा दिखा दिया। बुरा न माने आज आपके अच्छे दिन हैं तो चार साल बाद “बुरे दिन” भी आ सकते हैं। पर आपका क्या जाएगा। आप तो काला कोट पहन कर अदालत में खड़े हो जाएंगे और देश की नहीं तो क्रिकेट की राजनीति करने लगेंगे! सच है ना।

राही

Home / Prime / Opinion / कितने खाते?

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो