दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार अपने उस सर्कुलर
को लेकर विवादों में घिर गई है, जिसमें उसने अधिकारियों और मंत्रियों की छवि खराब
करने वाले समाचारों पर मानहानि का मुकद्मा चलाने की बात कही है। आश्चर्य का विषय यह
है कि भारतीय दंड संहिता की मानहानि संबंधी जिन धाराओं का केजरीवाल सत्ता के बाहर
रहते हुए विरोध करते आ रहे थे अब वे उसी का सहारा लेकर मीडिया को चुप कराना चाहते
हैं। क्या है यह मानहानि का मुद्दा और केजरीवाल सरकार द्वारा जारी किए गए इस
सर्कुलर का क्यों हो रहा है इतना विरोध, इसी पर पढिए आज के स्पॉटलाइट में जानकारों
की राय…
आलोक मेहता, वरिष्ठ पत्रकार
अरविंद केजरीवाल समाचार पत्रों के
माध्यम से सत्ता की सीढियां चढ़े हैं। ऎसे में जब वो सत्ता में आ गए हैं तो उनका
मीडिया के प्रति इस प्रकार का रवैया दुर्भाग्यपूर्ण है। 2007 में जब वे सूचना
अधिकार कार्यकर्ता हुआ करते थे, तब उन्होंने सूचना के अधिकार पर एक पुस्तिका
प्रकाशित की थी। इस पुस्तिका में उन्होंने यह लिखा है कि, ” नागरिकों ने जिन
प्रतिनिधियों को अपनी पूरी शक्ति सौंप दी है, वे अपने को राजा मान बैठें, तो क्या
होगा।” इसी पुस्तिका में केजरीवाल ने यह भी लिखा है कि सत्ता में आने के बाद ये
जनप्रतिनिधि इस तरह के नियम-कायदे बनाते हैं कि “विभिन्न तरीकों से इनकी हैसियत
बढ़ती जाती है और जनता इनके सामने बौनी होती जाती है।” आज सत्ता में आने के बाद
दिल्ली में केजरीवाल सरकार ठीक यही कर रही है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल राजा की
तरह व्यवहार कर रहे हैं। सत्ता में आने के बाद मीडिया के प्रति उनका जो रवैया है वह
अलोकतांत्रिक ही कहा जाएगा।
जब अरविंद केजरीवाल लोकपाल के लिए आंदोलन कर रहे
थे तब उन्होंने कॉरपोरेट से लेकर नेताओं पर भरपूर आरोप लगाए। तब केजरीवाल कहा करते
थे कि मानहानि को अपराध बताने वाली धारा को खत्म कर देना चाहिए। एक मामले में
सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल के खिलाफ मानहानि के अंतर्गत जिला अदालत की
कार्रवाई पर रोक भी लगाई है और मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इसे सत्ता का
नशा ही कहा जाएगा कि जबकि अब अरविंद केजरीवाल खुद सत्ता में आ गए हैं तब वे इस
मानहानि के कानून के माध्यम से मीडिया का मंुह बंद करना चाहते हैं। इस संबंध में
दिल्ली सरकार ने जो सर्कुलर जारी किया है वो आपातकाल के दिनों की याद दिला देता है।
आपालकाल से बदतर
सर्कुलर में कहा गया है कि, अगर दिल्ली सरकार से जुड़े किसी
अधिकारी को लगता है कि किसी प्रकाशित या प्रसारित सामग्री से उसकी या मंत्री की छवि
खराब हुई है, तो उस मामले में अधिकारी सरकार से मानहानि के अंतर्गत कार्रवाई के लिए
शिकायत दर्ज करा सकता है। इस तरह सर्कुलर में 1860 के आईपीसी की धारा 499 और 500 के
अंतर्गत कार्रवाई की बात कही गई है, जिसमें गलत तथ्य या मिथ्या आरोप लगाने या
आलोचना की बात नहीं आती है। सर्कुलर में कहा गया है कि अगर किसी अधिकारी को लगता है
कि किसी समाचार या प्रसारित सामग्री से मुख्यमंत्री, मंत्री या अधिकारी की छवि खराब
हुई है तो वह संबंधित पक्ष पर मानहानि का प्रकरण दर्ज करवाए। ध्यान देने की बात यह
है कि जब आईपीसी की धारा 500 के अंतर्गत कार्रवाई होती है, तो सीधे समन और
गिरफ्तारी होती है।
इस तरह केजरीवाल सरकार अब मीडिया को जेल का डर दिखाकर धमकाना
चाहती है। सरकार का यह रवैया कितना खतरनाक है इसका अंदाजा इससे लग सकता है कि अब
ब्रॉडकॉस्ट मीडिया की मौजूदगी में किसी व्यक्ति को सरकार के खिलाफ कुछ बोलने पर भी
उसे जेल भेजा जा सकता है। मान लीजिए कि किसी ने टीवी पर यह कहा कि यह कैसी सरकार है
कि नल में पानी ही नहीं आ रहा है अथवा बिजली ही नहीं आ रही।
आखिर सरकार सो रही है
क्या? बस, इसी बात पर सरकार के कारिंदे चाहें तो यह तर्क दे सकते हैं कि इससे हमारी
छवि खराब हुई है और जरूरी कार्रवाई कर सकते हैं। इसी तरह सरकार चाहे तो किसी ऎसे
पत्रकार के खिलाफ भी कार्रवाई कर सकती है, जो उनकी बात नहीं मान रहा हो। इस तरह से
देखें तो दिल्ली सरकार का यह सर्कुलर आपातकाल के दिनों से भी अधिक खतरनाक है।
आपातकाल में तो छपने के पूर्व कोई शब्द या न्यूज रोकी जाती थी, पर अब तो सरकार
सीधे-सीधे जेल भेजने की धमकी दे रही है।
मीडिया की मानहानि
सिर्फ यही नहीं
मीडिया के प्रति केजरीवाल का जो रवैया रहा है, जैसे बयान दिए हैं वो आम जनता के मन
में मीडिया की छवि खराब करता है। केजरीवाल ने कहा है मीडिया ने दिल्ली सरकार को
खत्म करने की “सुपारी” ले रखी है। इस तरह के बयानो से मीडिया की छवि खराब हुई है।
हो सकता है मीडिया में कुछ लोग बेईमान हों, पर 95 प्रतिशत लोग ईमानदार हैं। पर एक
राज्य के मुख्यमंत्री की तरफ से ऎसे बयान तो पूरे मीडिया पर ही सवाल उठाते हैं?
इसलिए होना तो यह चाहिए कि मीडिया संगठन अरविंद केजरीवाल पर मानहानि का मुकदमा दर्ज
करें।
सिर्फ यही नहीं, आज दिल्ली में जगह-जगह बड़े-बड़े होर्डिंग लगे हैं कि पहले
रिश्वत दे दो, फिर उस पर मुकदमा करो। यह पहली बार है कि किसी राज्य का मुख्यमंत्री
जनता को रिश्वत देने के लिए उकसा रहा है। इस तरह की बातों से पूरी दिल्ली की जनता
की छवि खराब होती है। अजब स्थिति यह है कि, अरविंद केजरीवाल की राय में नेता,
कॉरपोरेट और मीडिया सब भ्रष्ट हैं, एक सिर्फ वही ईमानदार हैं। बल्कि केजरीवाल के मन
में न्यायालय के प्रति सम्मान है, इसमें भी संदेह है।
कोर्ट की भी
अवमानना
उदाहरण के लिए अब जबकि सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली सरकार के उपरोक्त सर्कुलर
पर अस्थाई रोक लगा चुका है, इसके 24 घंटे गुजर जाने के बाद भी अब तक दिल्ली सरकार
की ओर से न तो इस सर्कुलर पर कोई रोक लगाई गई है और न ही माफी मांगी गई है।
यह अपने
आप में चिंताजनक है। इससे भी चिंताजनक यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने अभी दो दिन पहले
फैसला दिया था कि पीएम, प्रेसीडेंट तथा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के अलावा
किसी भी सरकारी विज्ञापन में किसी अन्य मंत्री या मुख्यमंत्री की तरस्वीर नहीं हो
सकती, पर 15 मई को ही एक चैनल पर दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री एक विज्ञापन में यह
कहते दिखे हैं कि हमने दिल्ली से भ्रष्टाचार को खत्म कर दिया है।
इसलिए इस पर भी
अरविंद केजरीवाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की एक अवमानना का मुकद्मा दर्ज होना चाहिए!
होना तो यह चाहिए था कि अंग्रेजों के जमाने में बनीं ऎसी मानहानि संबंधी धाराओं को
खत्म किया जाता, जिसमें अभिव्यक्ति को अपराध की श्रेणी में रखकर कार्रवाई की जाती
है। उल्टे दिल्ली सरकार इन्हें मजबूती प्रदान कर रही है।
यह है सर्कुलर
में
दिल्ली राज्य सूचना व प्रचार विभाग ने सर्कुलर में कहा था, यदि दिल्ली सरकार
से संबंधित किसी अधिकारी को लगता है कि किसी प्रसारित और प्रकाशित सामग्री से सरकार
की और स्वयं उसकी प्रतिष्ठा को हानि पहुंची है तो इससे संबंधित शिकायत उसे गृह
विभाग के प्रधान सचिव को करनी चाहिए। प्रधान सचिव इस मामले की जांच करेंगे और
निदेशक अभियोजन को राय जानने के लिए भेेजेंगे कि क्या इस मामले में भारतीय दंड
संहिता की धारा 499/500 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है? निदेशक अभियोजन की
स्वीकृति के बाद मामला विधि विभाग के पास भेजा जाना चाहिए और सरकार की मंजूरी के
बाद मामला दायर किया जाना चाहिए।
प्रतिष्ठा बचाने के प्रयास में पिटी
भद्द
राजेश रपरिया, वरिष्ठ पत्रकार
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल
सत्ता के चरित्र को बदलने के लिए राजनीति मे आए थे। पिछली 49 दिन की सरकार के बाद
उन्हें फिर से दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुए तीन महीने ही हुए हैं और अजब स्थिति यह
बनी है कि वे सत्ता का चरित्र तो नहीं बदल पाए पर सत्ता ने उन्हें जरूर बदल दिया
है।
सत्ताधारी दल की मीडिया से अदावत होना कोई नई बात नहीं है इसलिए मीडिया से
केजरीवाल का खफा होना भी कोई अजूबी घटना नही ंहै। सत्ताधारी दल अघोषित रूप से
मीडिया पर अंकुश लगाने की कोशिश करते रहे हैं लेकिन केजरीवाल ने यह काम सीधे तौर पर
करने की कोशिश की। उनके मीडिया को धमकाने वाले मानहानि के सर्कुलर से मुलायम सिंह
की याद आ जाती है। मुलायम सिंह ने भी उत्तर प्रदेश के दो बड़े अखबारों को धूल चटाने
के लिए “हल्ला बोल” जंग छेड़ी थी। लेकिन, उन दोनों अखबारों का तो कुछ नहीं हुआ पर
इस मुहिम के बाद मुलायम सिंह जरूर सत्ता से पैदल हो गए थे।
सिर चढ़कर बोला
अहंकार
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केजरीवाल सरकार के सर्कुलर पर रोक लगाने
से उनकी भद्द हो गई है। सवाल यह है कि केजरीवाल मीडिया से इतना क्यों डरे हए हैं?
वे इस बात को अच्छी तरह से जानते और समझते हैं कि उनकी छवि बनाने और उनकी पार्टी को
इतना विशाल बहुमत दिलवाने में मीडिया की निर्णायक भूमिका रही है। शायद, केजरीवाल को
गलतफहमी यह हो गई है कि मीडिया का अस्तित्व उनकी वजह से है इसीलिए उनका अहंकार सिर
चढ़कर बोलने लगा है। एक ऑडियो टेप में योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के लिए जिस
अभद्र भाषा का इस्तेमाल केजरीवाल ने किया, वह उनके इस अंहकार का ही प्रकटीकरण है।
केजरीवाल की दिक्कत यह है कि मीडिया अब उन्हें उनके ही मापदंडों और मानकों पर
ही उन्हें तौल रही है। आरोप लगा-लगा कर केजरीवाल मुख्यमंत्री की सीट पर पहुंचे हैं।
लेकिन, अब उनके साथियों और मंत्रियों पर आरोप लगाये जाते हैं तो उन्हें प्रमाण
चाहिए! जितेंद्र सिंह तोमर की फर्जी डिग्री के मामले से आप पार्टी और केजरीवाल का
दोहरा चरित्र अब उजागर हो गया है। यह और भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि अपनी प्रतिष्ठा और
छवि को बचाने के लिए केजरीवाल ने मानहानि वाले जिस सर्कुलर को औजार बनाया, अब यही
औजार अब उनकी प्रतिष्ठा को खाक में मिला रहा है।
पुराना प्रभाव
गायब
केजरीवाल के बौखलाहट भरे कदमों का ही परिणाम है कि अल्पमत की 49 दिनों की
केजरीवाल सरकार का जो खौफ दिल्ली में पुलिस व प्रशासन पर था, वह 70 में से 67
विधानसभा सीट जीतने के बाद भी अब दिल्ली राज में देखने को नहीं मिलता है। जहां तक
मीडिया का प्रश्न है तो इस पेशे में बिकाऊ लोग पहले भी थे और आज भी हैं लेकिन इस
आधार पर पूरे मीडिया को ही बिकाऊ मानना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना है। केजरीवाल
ऎसी ही भूल कर बैठे हैं। देखना दिलचस्प होगा कि वे भूल सुधार के लिए क्या कदम उठाते
हैं?