सौ प्याज, सौ जूते
Published: Jul 21, 2017 10:22:00 pm
खूंखार अपराधी के एनकाउंटर पर भीषण हंगामा हुआ। चहेतों और घरवालों ने
सीबीआई जांच की मांग की। सरकार ने बीस दिन टाला। आगजनी हुई। गोलियां चलीं।
एक और मरा। और इतना सब कुछ करने के बाद सत्ता सीबीआई जांच को राजी हो गई।
व्यंग्य राही की कलम से
कथा पुरानी है। एक देहाती ने एक गलती की। गलती की सजा सरे आम सौ जूते खाने की थी। चूंकि देहाती था इसलिए राजा ने सजा में विकल्प रखा कि या तो सौ जूते खाओ या सौ प्याज। देहाती ने जूते की बजाय प्याज खाना उचित समझा। लेकिन 20-25 प्याज खाते-खाते बेहाल हो गया। आंख-नाक से पानी आने लगा। बोला- प्याज नहीं खाये जाते, जूते खा लूंगा। लेकिन तीस जूतों ने हालत खराब कर दी। वह प्याज खाने को तैयार हुआ। लेकिन फिर वही हाल। उसने कहा- ठीक है जूते मार लो।
इस तरह देहाती ने सौ प्याज भी खाए और सौ जूते भी। खूंखार अपराधी के एनकाउंटर पर भीषण हंगामा हुआ। चहेतों और घरवालों ने सीबीआई जांच की मांग की। सरकार ने बीस दिन टाला। आगजनी हुई। गोलियां चलीं। एक और मरा। और इतना सब कुछ करने के बाद सत्ता सीबीआई जांच को राजी हो गई। यानी सौ प्याज खाने पड़े। लेकिन जूते किस पर पड़े।
जूते तो जनता को खाने पड़े। रेल बंद हुई। बसें फूंकी। रास्ते जाम हुए। गांव में कफ्र्यू लगा। तीन हफ्ते लाश सड़ी। एक अपराधी का महिमामंडन हुआ और इस महिमामंडन को देखकर कौन जाने किस बेरोजगार युवा के मन में उस दुर्दान्त के जैसा बनने की बात भी दिमाग में आई हो। अरे कोई बताए हमें कि जिस आदमी ने कभी कोई धंधा नहीं किया।
व्यापार नहीं किया। नौकरी नहीं की। उसके पास करोड़ों की जायदाद आई कहां से? हमें पता है कि इस असहज सवाल का जवाब न जातपांत के लोग देंगे न समाज। अपना समाज तो भगोड़ों का समाज बनता जा रहा है। किसी भी सवाल से ऐसे मुंह चुरा कर भागता है जैसे समाज ने किसी की जेब काट ली हो। इस देश में सबसे बुरा हाल उन विवेकशील लोगों का है जो सच कहते हैं तो समाज उन्हें कुएं में धकेल देता है और चुप रहते हैं तो खुद की आत्मा कचोटती है।