चीखते-चीखते गला बैठ गया पर सरकारी बंगलों में जमे हुए अवैध लोग नहीं निकले। पता नहीं क्रांति हमारे जनम में होगी या नहीं?
व्यंग्य राही की कलम से
विश्व भर में हुई महान् क्रांतियों का अध्ययन करने वाले यही कहेंगे कि परिवर्तन एक रात में नहीं होते। रूस की बोल्शेविक क्रांति और यूरोप की फ्रांस क्रांति का आधार बीसियों वर्ष का असंतोष था जो धीरे-धीरे जनता के दिलों में व्यवस्था से घृणा के रूप में जम गया था और वो जमा हुआ गुस्सा लावे के रूप में निकलता तो बड़े-बड़े तख्त गिराये गए और चमकदार ताज उछाल दिए गए। लेकिन कुछ ऐसी क्रांतियां हैं जो पल भर में हो जाती हैं। एक किस्सा सुनिए।
देश के जाने-माने उद्योगपति वर्ष में एक बार अपने आला अफसरों और मातहतों से मिलते थे। ऐसी ही एक सभा में जब उन्होंने अपने कर्मचारियों से उनकी तकलीफ पूछी तो छोटे कर्मचारियों ने कहा कि उनके शौचालय बेहद गंदे, बदबूदार और चॉक हैं। यह बातें वे कई बार बड़े अधिकारियों से कह चुके हैं।
उद्योगपति ने बड़े अफसरों से पूछा कि मजदूरों के बाथरूम कितने दिन में ठीक हो सकते हैं। जिम्मेदार अफसर ने कहा- पन्द्रह दिन लगेंगे। उद्योगपति ने हंस के कहा- मैं पन्द्रह मिनट में ठीक करवा दूंगा। इतना कह कर उन्होंने एक कारपेन्टर को बुलाया और बोले अधिकारियों के बाथरूम की तख्ती मजदूरों के बाथरूम पर और मजदूरों के बाथरूम का बोर्ड अधिकारियों के बाथरूम पर लगा दो।
इतना करते ही मजदूरों को साफ, चमकते बाथरूम मिल गए। इसे हम तुरंत क्रांति कहते हैं। अपने देश में ऐसी तुरंत क्रांति एक झटके में हो सकती है जैसे सरकारी विद्यालयों की हालत खराब होना। अगर सरकार एक सर्कुलर जारी कर दे आज से चपरासी से लेकर चीफ सैकेट्री तक के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे और जिनके नहीं पढ़ेंगे उन्हें नौकरी से अलग कर दिया जाएगा तो अपने गले की कसम छह महीने में स्कूल ना सुधर जाए तो आपकी जूती हमारा सिर। न्याय का चीखते-चीखते गला बैठ गया पर सरकारी बंगलों में जमे हुए अवैध लोग नहीं निकले। पता नहीं क्रांति हमारे जनम में होगी या नहीं?