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ओपिनियन

देश की चिंता

सुबह चाय पीकर बैठ जाओ, नाश्ता भी टीवी के सामने आ जाए। बीच में ब्रेक हो तो फटाफट
नहा-धोकर फिर जम जाओ

Mar 25, 2015 / 12:14 am

शंकर शर्मा

बेमौसम बरसात हुई। तड़ातड़ ओले पड़े। किसानों की फसलें बरबाद हो गई। कई सदमे में आ गए और कुछ चल दिए। लेकिन यह देश की चिंता नहीं है। छोटी-छोटी बच्चियों के साथ ज्यादती हो रही है। उन्हें मारा जा रहा है। अपराधी फरार हैं लेकिन यह देश की चिंता नहीं है। एटीएम लूटे जा रहे हैं। शातिर लोग उन्हें उखाड़ कर सड़कों पर छोड़ रहे हैं। गैस कटर से नोट निकाल रहे हैं लेकिन यह देश की चिंता नहीं है। लगातार धार्मिक कट्टरता बढ़ रही है।

कट्टरतावादी उन्माद फैला रहे हैं लेकिन यह देश की चिंताओं में शामिल नहीं है। चिंता यह है कि भारत सेमीफाइनल जीतेगा या नहीं। चारों तरफ बस यही चिंता है। नौकरी वाले चिंता कर रहे हैं कि उस दिन छुट्टी नहीं है तो फिर मैच कैसे देखेंगे?जो ठाली हैं वे चिंता में हैं कि अचानक कोई काम न आ जाए।

पढ़ने वाले सोच रहे हैं कि उस दिन क्या बहाना बनाया जाए कि स्कूल-कॉलेज न जाना पड़े। और हमारे जैसे निठल्लों पर यह मुहावरा लागू होता है- काजी जी उदास क्यों शहर के अंदेशे में। सचमुच बड़ी चिंता की बात है। आस्ट्रेलियाई टीम ने घास वाली पिच की मांग की है। यह सुन कर हमें पसीने आ रहे हैं।

पिच भारतीय बल्लेबाजों के अनुकूल नहीं। अपने खिलाड़ी तो सपाट पिचों पर अच्छा खेलते हैं। इसीलिए हमारे सूरमाओं को घर का शेर कहा जाता है। अपने शेर आस्ट्रेलिया और इंग्लैण्ड की पिचों पर फटाफट ढेर होते रहे हैं। निठल्लों के इस खेल को हमने राष्ट्रीय खेल मान लिया है। हालांकि राष्ट्रीय खेल हॉकी है लेकिन अब उसे पूछता कौन है।

एक गेंद के पीछे बाईस खिलाड़ी हाथ में डंडे लेकर “खटते” रहते हैं। शाही खेल तो क्रिकेट है। सारे दिन चलता है। सुबह चाय पीकर बैठ जाओ, नाश्ता भी टीवी के सामने। बीच में ब्ा्रेक हो तो फटाफट नहा-धोकर फिर जम जाओ। लंच भी टीवी के सामने बिस्तर पर। जब मन चाहे टांगे पसार लो।

दफ्तर से बॉस का फोन आए तो पत्नी से कहलवा दो- सर! ये तो सुबह से छींक रहे हैं। डरती हूं कहीं फ्लू न हो। यह सुनते ही बॉस भी तुरंत फोन बंद कर देता है। और देश जीत जाए तो मजे से क्लब जाकर दो “लार्ज” लगा लो। जब तक क्रिकेट वल्र्ड कप चले राष्ट्रीय अवकाश घोçष्ात कर देना चाहिए। बहरहाल अब तो चार दिन ही बचे हैं। जब क्रिकेट का यह अन्तरराष्ट्रीय तमाशा खत्म हो जाएगा तब दिन कैसे सूने-सूने लगेंंगे। वाह रे फिरंगियों। सवा सौ करोड़ की आबादी वाले देश को क्या अनोखा गिफ्ट देकर गए हो। हर साल अरबों “वर्किग ऑवर्स” खराब हो जाते हैं। तुम्हारा सत्यानाश हो।

राही



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