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बेवजह विवाद

Published: Sep 02, 2015 09:49:00 pm

इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि आजादी के बाद देश ने
जितनी तरक्की की, उतनी मुस्लिम समुदाय नहीं कर पाया। इसके पीछे अशिक्षा और सामाजिक
कुरीतियों समेत कई कारण हैं

Hamid Ansari

Hamid Ansari

इस देश में धर्म और जाति के नाम पर आए दिन विवाद फैलाने वाले नेता पहले ही क्या कम हैं जो संवैधानिक पदों पर विराजमान लोगों को इसमें उतरना पड़ा। उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने एक सम्मेलन में मुस्लिमों के साथ हो रहे भेदभाव और अन्याय को दूर करने का मुद्दा उठाकर नई बहस का आगाज कर दिया। माना कि देश में विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, इसका मतलब यह नहीं निकाला जाना चाहिए कि उच्च संवैधानिक पदों पर बैठे लोग भी सामान्य नेताओं की तरह सार्वजनिक रूप से अपनी बात रखने लग जाएं।

अंसारी ने ऎसी नीतियां बनाने पर भी जोर दिया जिससे मुसलमानों का सशक्तिकरण हो सके। साम्प्रदायिक और जातीय विवादों को लेकर देश समय-समय पर उद्वेलित होता है। जनता जानती है कि अक्सर ऎसे मुद्दे राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए ही उठाए जाते हैं। हर राजनीतिक दल में एकाध नेता ऎसे मिल ही जाते हैं जो अनावश्यक मुद्दों को तूल देकर माहौल बिगाड़ने की ताक में लगे रहते हैं लेकिन अहम सवाल ये कि क्या उप राष्ट्रपति को ऎसे मुद्दों पर सार्वजनिक बयान देने चाहिए? राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के साथ अनेक संवैधानिक पद ऎसे हैं जो गरिमामयी तो हैं ही आम जनता उनके प्रति सम्मान भाव भी रखती हैं।

इन पदों पर बैठे लोगों को तो ऎसे मुद्दों से बचना ही चाहिए। और फिर अंसारी तो भारतीय विदेश सेवा के वरिष्ठ अधिकारी भी रह चुके हैं। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष के रूप में काम करने का अवसर भी उन्हें मिल चुका है। मुस्लिम समाज के उत्थान के लिए उस समय निश्चय ही सुधार के प्रयास किए होंगे, सरकार को सुझाव भी दिए होंगे। उप राष्ट्रपति पद पर रहते हुए भी वे इस बारे में आवश्यक सलाह सरकार को दे सकते हैं।

उनकी छवि भी उदारवादी और सुलझे व्यक्ति के तौर पर होती आई है। ऎसे में उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे जो भी बोलें, सोच-समझकर बोलें ताकि अनावश्यक विवाद को टाजा जा सके। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि आजादी के बाद से देश ने जितनी तरक्की की, उतनी मुस्लिम समुदाय नहीं कर पाया।

इसके पीछे अशिक्षा और सामाजिक कुरीतियों समेत अनेक कारण हैं। सभी सरकारों और राजनीतिक दलों को मिल-जुलकर ऎसे प्रयास करने होंगे जिससे ये समुदाय भी दूसरों की तरह तरक्की कर सके। अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए चलाई जा रही योजनाओं को और गति देने की भी आवश्यकता है लेकिन ऎसे बयानों से बचा जाए जो बेवजह विवाद पैदा होने से प्रगति की रफ्तार को धीमी करने में मददगार बनें।
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