क्या कोई शुभ मुहूर्त राष्ट्रगान से भी बड़ा हो सकता
है या फिर उसे बड़ा होना चाहिए? कोई भी स्वाभिमानी व्यक्ति राष्ट्रगान को ही
सर्वोपरि स्थान देगा। लेकिन शनिवार को चेन्नई में जयललिता के शपथ ग्रहण समारोह में
जिस तरह राष्ट्रगान को संक्षिप्त किया गया, वह नेताओं की बेशर्मी का निकृष्ट उदाहरण
ही माना जाएगा।
उन नेताओं की जो राष्ट्रभक्ति के गीत गाते नहीं थकते। देश के लिए
सर्वस्व न्यौछावर करने की कसमें खाते नहीं रूकते। माना कि भारत एक धार्मिक
मान्यताओं वाला देश है। यहां हर शुभ काम मुहूर्त के हिसाब से ही किया जाता है।
जयललिता ने भी मुहूर्त सोच-समझकर और पंडितों की राय से ही निकलवाया होगा। जयललिता
और उनको मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण कराने वाले प्रशासनिक महकमे को भी इस मुहूर्त
का समय पता होगा।
तो राष्ट्रगान को एक मिनट पहले क्यों नहीं बजाया ताकि उसे बीच में
ही रोकने की नौबत तो नहीं आती। यह देश भले धर्म-कर्म से चलता हो लेकिन उसमें
राष्ट्रगान के अपमान की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। राष्ट्रगान को छोटा किया जाना महज
समाचार पत्रों या चैनलों की सुर्खियां बनकर एकाध दिन में समाप्त हो जाने वाला
विष्ाय नहीं हो सकता। पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनने जा रही नेता यदि राष्ट्रगान का
अपमान कर सकती है तो आम आदमी से इसके सम्मान की अपेक्षा कैसे की जाए?
राष्ट्रीय
गान हो, गीत हो, पशु हो या पक्षी, सबका सम्मान करना हम सबका कर्तव्य बनता है।
जयललिता ने इससे पहले जब चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली होंगी, तब भी शुभ
मुहूर्त में ही ली होगी। फिर उनको समय से पहले क्यों गद्दी छोड़नी पड़ी। शुभ
मुहूर्त का मतलब तो यही माना जाना चाहिए था कि जयललिता के पांच साल के कार्यकाल में
कोई विघ्न-बाधा आती ही नहीं। धर्म-कर्म में आस्था रखना अच्छी बात है लेकिन कोई भी
धर्म राष्ट्रगान के अपमान की इजाजत तो शायद ही देता हो। राष्ट्रगान को बजाने के
बारे में आचार संहिता स्पष्ट है।
राष्ट्रगान की अवधि 52 सेकण्ड की है और इसे हर हाल
में इतनी ही अवधि में पूरा किया जाना चाहिए। ऎसे समारोह में राष्ट्रगान के अपमान की
कल्पना ही नहीं की जा सकती जहां राज्यपाल, मुख्यमंत्री और तमाम आला अफसर मौजूद रहे
हों। अनेक मौकों पर राष्ट्रगान का अपमान करने वालों को इस देश की अदालतें सजा सुना
चुकी हैं। चेन्नई में जो हुआ वह अक्षम्य अपराध है, लिहाजा कानून को अपने हिसाब से
काम करना चाहिए और इस लापरवाही के लिए जो भी दोष्ाी हो उसे सजा अवश्य मिलनी चाहिए।
दोष्ाी कितना भी बड़ा व्यक्ति क्यों ना हो, उसे अहसास होना चाहिए कि उसका अपराध ऎसा
नहीं जिसे माफ किया जा सके।