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क्या उचित है साहित्य के नाम पर ऐसा विवाद?

Published: Jul 14, 2017 10:14:00 pm

कवि कुमार विश्वास ने  डॉ. हरिवंश राय बच्चन की कविता को अपने ही सोशल
मीडिया कार्यक्रम ‘तर्पण’ में पढ़ा और इसकी वीडियो क्लिपिंग यू ट्यूब पर
प्रसारित कर दी। अभिनेता अमिताभ बच्चन को यह नागवार गुजरा और उन्होंने अपने
पिता की कविता के कॉपी राइट के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए, कुमार विश्वास
को नोटिस भेज दिया

Amitabh Bachchan

Amitabh Bachchan

कवि कुमार विश्वास ने डॉ. हरिवंश राय बच्चन की कविता को अपने ही सोशल मीडिया कार्यक्रम ‘तर्पण’ में पढ़ा और इसकी वीडियो क्लिपिंग यू ट्यूब पर प्रसारित कर दी। अभिनेता अमिताभ बच्चन को यह नागवार गुजरा और उन्होंने अपने पिता की कविता के कॉपी राइट के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए, कुमार विश्वास को नोटिस भेज दिया। क्या साहित्य में इस किस्म का विवाद उचित है? क्या अमिताभ का कुमार विश्वास को नोटिस भेजना आवश्यक था? इसी मुद्दे पर आज
बड़ी बहस

कविता का व्यावसायिक उपयोग गलत है लेकिन…(डॉ. राहत इंदौरी)

पिछले दिनों हम लोगों ने मीडिया के माध्यम से जाना कि आज के लोकप्रिय कवि कुमार विश्वास ने एक कार्यक्रम में डॉ. हरिवंश राय बच्चन की कविता पढ़ी। इस काव्यपाठ को बाद में उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से अन्य लोगों तक भी पहुंचाया। इस काव्यपाठ पर उन्हें निस्संदेह काफी तारीफें भी मिली होंगी लेकिन इसके साथ ही उन्हें सदी के महानायक कहे जाने वाले फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन से एक नोटिस भी मिला।

इस नोटिस में अमिताभ बच्चन ने अपने पिता की कविता के कॉपीराइट का उल्लंघन करने की बात कही है। हालांकि इसके आगे के घटनाक्रम में कुमार विश्वास ने माफी भी मांग ली है। फिर भी मेरा मानना है कि डॉ. हरिवंश राय बच्चन की कविता के काव्यपाठ की घटना को इतना तूल देने की आवश्यकता नहीं है। हमें समझना चाहिए कि एक कवि केवल एक परिवार का नहीं होता। उसकी एक-एक पंक्ति जो समाज के लिए लिखी जाती है, समाज को समर्पित होती है।

यह किसी भी कवि के लिए सम्मान की बात होती है कि उसकी कविता की किसी पंक्ति को कभी किसी बहस, किसी निबंध या लेख या कहीं पर किसी भाषण में उद्धृत किया जाता है। अकसर लोग ऐसा करते भी हैं। कवि सम्मेलनों या मुशायरों में तो ऐसा होता ही रहता है कि किसी वरिष्ठ कवि को सम्मान देते हुए, संदर्भ विशेष में उनकी कविता या शायरी को पढ़ दिया जाता है। कुमार विश्वास भी कवि सम्मेलनों का संचालन करते रहे हैं और कई बार वे भी ऐसा करते रहते हैं। केवल वे ही नहीं, अन्य कई मंच संचालक और कवि या शायर भी ऐसा करते रहे हैं।

यदि डॉ.हरिवंश राय बच्चन की कविता या पंक्ति को कहीं पढ़ा जाता है तो यह उनका जन-जन का कवि होना और उनका मरणोपरांत भी कद ऊंचा होना ही दर्शाता है। मेरा मानना है कि कुमार विश्वास ने डॉ. हरिवंश राय बच्चन को सम्मान देने के इरादे से उनकी कविता पढ़ी होगी लेकिन उनकी ओर से यदि इस काव्यपाठ के जरिए व्यावसायिक इस्तेमाल हुआ है तो यह निश्चित तौर पर गलत हुआ है। ऐसा नहीं किया जाना चाहिए।

दूसरी बात यह है कि ऐसा लगता है, अमिताभ बच्चन भी इस बात को शायद ज्यादा ही गंभीरता से ले रहे हैं या फिर उन्हें जिस तरह का परामर्श दिया गया होगा, उसे ही उन्होंने उसे पूर्ण मानकर अपनी ओर से नोटिस दिलवा दिया। मुझे लगता है कि इस विवाद को जन्म देने और इसे आगे बढ़ाने से डॉ. हरिवंश राय बच्चन और उनके साहित्य के सम्मान के लिए ठीक नहीं है। डॉ. साहब और उनके साहित्य को लेकर इस तरह का विवाद खड़ा होना उनकी साहित्यिक प्रतिभा के साथ अन्याय करना ही कहा जाएगा। किसी भी साहित्यकार के लिए मरणोपरांत इस तरह के निरर्थक विवाद शोभा नहीं देते।

नोटिस देकर छोटे हो गए ‘बच्चन’ के अमिताभ (मुनव्वर राना )
साहित्य कोई मकान या दुकान नहीं है जिस पर किसी बेटे का अधिकार हुआ करता है और वह किसी अन्य से उसे बांटने में एतराज जता सकता है। यह ऐसी संपदा होती है जिस पर किसी व्यक्ति विशेष का अधिकार नहीं होता। साहित्य समाज की संपत्ति होती है। यदि साहित्य में किसी की कोई पंक्ति या कविता किसी को अच्छी लगती है तो वह खुद ब खुद याद हो जाती है वरना तो कितने ही मास्टर आए हैं और पंक्तियां याद करने को कहते रहे पर वे याद नहीं हो सकीं।

दरअसल, डॉ. हरिवंश राय बच्चन ऐसे ही कवि और व्यक्तित्व थे जिन्होंने ऐसा लिखा जो आम श्रोता या पाठक के दिल में सीधा उतर जाया करता है। एक बार किसी साक्षात्कार में अभिनेता अमिताभ बच्चन ने कहा था, मुझे और मेरी अभिनय कला को हो सकता है कि कुछ वर्षों तक लोग याद रखेंगे लेकिन मेरे पिता की कला को लोग शताब्दियों तक याद रखेंगे। लेकिन, उन्होंने कुमार विश्वास को कानूनी नोटिस देकर शायद अपने पिता के नाम को अपने नाम की तरह कुछ ही वर्षों में भुला देने की कोशिश की है। अपने इस काम से वे मेरी नजरों में छोटे हो गए हैं।

यह हरिवंश राय बच्चन के लिए सम्मान की बात है कि उन्हें आज भी लोग याद करते हैं और उनकी कविताओं को उदाहरण के तौर पर रखकर सुनाया जाता है। कुमार विश्वास ने भी ऐसा ही किया होगा। मुझे नहीं लगता कि कुमार विश्वास ने डॉ.हरिवंश राय बच्चन की कविता का पाठ किसी व्यावसायिक इरादे से किया था। जहां तक मुझे मालूम है अमिताभ बच्चन इलाहाबाद से ताल्लुक रखते हैं।

उनके पिता, फिराक साहब और निराला जी जैसे कवियों की कर्मभूमि रहा है इलाहाबाद। उम्मीद करते हैं कि इलाहाबाद से ताल्लुक होने के कारण वहां की तहजीब और साहित्यिक समझ उनमें होनी चाहिए। लेकिन, अपने इस काम के छोटेपन से उन्होंने बहुत ही निराश किया है। कॉपी राइट उल्लंघन और काव्य का व्यावसायिक इस्तेमाल जैसा कोई विवाद मुझे तो कुमार विश्वास के काम में कहीं से भी नजर नहीं आता।

अमिताभ यह सोचें कि उनके पिता के सामने ऐसा वाकया हुआ होता तो क्या वे ऐसा करते? उनका नजरिया तो कभी व्यावसायिक नहीं रहा यदि वे व्यावसायिक नजरिये से काम कर रहे होते तो उनके संबंध तो सीधे नेहरू खानदान से थे। संबंधों का लाभ उठाकर वे बहुत लंबी-चौड़ी संपत्ति बना गए होते। वे छोटे दिल के भी नहीं थे। उनके साथ किए गए पत्र व्यवहार का भी लोगों ने व्यावसायिक इस्तेमाल किया और उनके जीवन काल में ही उसे प्रकाशित करवा डाला। उन्होंने कभी कुछ नहीं कहा। मुझे बहुत ही दुख है कि अमिताभ ने अपने पिता के साहित्यिक आदर्शों को डुबोने का काम किया।

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