इन्हें तो जिंदा पकड़ने में थी हमारी सफलता
प्रो. भरत कर्नाड सेटर फॉर पॉलिसी रिसर्च, नई दिल्ली
आतंकी हमले का मौका जो भी हो, बड़ा सवाल यह है कि हम उससे कैसे निपटते हैं? हमारी केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की प्राथमिकताएं क्या हैं? हम अपनी प्राथमिकताओं में स्पष्ट हैं अथवा नहीं? हम कड़े कदम उठाने में कितने सक्षम हैं? जब तक इन सवालों के दृढ़ और सकारात्मक जवाब हमें नहीं मिल जाते, तब तक भारत को इस प्रकार के आतंकी हमलों से नहीं बचाया जा सकता। गुरूदासपुर के आतंकी हमले की पृष्ठभूमि देखें तो इससे तो यही लगता है कि इसके लिए खुद पंजाब की वर्तमान सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं।
अकाली सरकार भी जिम्मेदार
पंजाब की वर्तमान अकाली सरकार वोटों की खातिर स्पष्ट रूप से खालिस्तानी आतंकवादियों के साथ खड़ा दिख रही है। जेल में बंद खालिस्तानियों से मुकद्मे वापस ले रही है। यही आतंकवादी सीमा पार कर पाकिस्तान स्थित “खालिस्तान सेल” में प्रशिक्षण लेते हैं और फिर पाकिस्तान उन्हें वापस हमारी जमीन पर भेज देता है आतंक फैलाने के लिए। ये हमारी कमी है कि हम ऎसी आतंकी वारदातों से निपटते समय यह प्रयास नहीं करते कि ऎसे आतंकवादियों को जिंदा पकड़ा जाए।
जिंदा पकड़ने से ही यह पता लगेगा कि ये आतंकी कौन थे, कहां से आए थे और किसलिए आए थे? पूछताछ करने के बाद एक उचित प्रक्रिया अपनाकर इन दहशतगर्दो को जरूर मारा जा सकता है, पर प्राथमिकता तो इनको जिंदा पकड़ना ही होना चाहिए। लंबे समय तक गुरूदासपुर में घुसे ये आतंकी दीनानगर थाने में घुसे रहे।
इसके बावजूद इनको जिंदा पकड़ने या घेरने की कोशिश नहीं की गई। इस तरह हमने अपने हाथों से उन बहुमूल्य सूचनाओं के स्रोत को खत्म कर दिया जो कि हमें इस आतंकी हमले के बारे में मिल सकती थी। यह हमारी बहुत बड़ी रणनीतिक भूल है। मुंबई के आतंकी हमले में भी सबसे मूल्यवान सुराग हमेें कसाब के जिंदा पकड़े जाने से ही लगे। इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि आखिर क्यों पंजाब पुलिस यह चाहती थी कि इस आतंकी हमले से उसे ही निपटने दिया जाए।
इसकी भी जांच होना चाहिए कि आखिर किस आधार पंजाब पुलिस के आईजी, काउंटर इंटेलीजेंस यह बयान दे रहे हैं कि यह आतंकी जैश-ए-मुहम्मद अथवा लश्करे तैयबा के हैं? ये लोग यही चाहते थे कि आतंकवादी जिंदा न पकड़े जाएं। अब दोषारोपण का खेल चलता रहेगा। पंजाब सरकार कहेगी कि ये इंटेलीजेंस की विफलता है। केंद्र सरकार कहेगी कि राज्य सरकार ने आतंकियों से निपटने में चुस्ती नहीं दिखाई। सब लोग अपनी-अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकेंगे।
खत्म करो धारा 370
यह तो सच है कि ये सारे आतंकी एलओसी से ही आते हैं। सीमा पर तो बहुत तगड़ी सुरक्षा है। बैरिकेडिंग है, इसलिए वहां से घुसना बहुत कठिन है। सबसे आसान है एलओसी से घुसना। इससे निपटने का सबसे अच्छा उपाय तो यही है कि धारा 370 को खत्म कर सीमा पर ऎसी बसाहट की जाए जो कि ऎसे घुसपैठियों से निपट सके। उदाहरण के लिए सीमा पर सेना से सेवानिवृत्त (जो कि काफी कम उम्र में रिटायर्ड हो जाते हैं) लोगों को बसा दिया जाए।
आखिर कश्मीर भारत का हिस्सा है कि नहीं? फिर ऎसी क्या बाध्यता है कि कश्मीर में जाकर दूसरे भारतीय नहीं बस सकते? पर ऎसा करने में सरकार सक्षम नहीं है। आखिर पाकिस्तान तो अधिकृत कश्मीर में जो मन आता है, वो करता है। उस पर तो कोई सवाल नहीं उठाता। फिर भारत क्यों अपने हाथों अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा है? आखिर भारत की क्या मजबूरी है कि कश्मीर को मुस्लिम बहुल ही रखा जाए। पर इस प्रक्रिया में धारा 370 बाधा बनी हुई है। इसलिए जब तक इन मुद्दों से स्पष्टता से और सख्ती से नहीं निपटेंगे, तब तक भारत इस प्रकार के आतंकी वारदातों से नहीं बच सकता।
शरीफ नहीं, सेना से बात करें
मारूफ रजा रक्षा-रणनीति विशेषज्ञ
इस हमले का जो पैटर्न है, उससे जाहिर है कि ये आतंककारी पाकिस्तान से आए हैं। यही तरीका वे जम्मू-कश्मीर के इलाकों में करते आए हैं। इस वक्त जम्मू के इलाकों में ज्यादा सुरक्षा हो गई है तो उन्होंने ऎसा इलाका ढूंढा है, जहां वे आराम से हमला कर सकें। गुरदासपुर जिला पाकिस्तानी सीमा के करीब है। 1946-47 में जब विभाजन का जिक्र चल रहा था तो पाकिस्तान ने इस पर अपना दावा किया था। पाकिस्तान पंजाब में अशांति फैलाकर दो मकसद हासिल करना चाहता है। पहला, कश्मीर में लड़ रहे आतंककारियों को वह दिखाना चाहता है कि पाकिस्तान से उनका साथ दिया जा रहा है। दूसरा, पंजाब में हमला कर वे जम्मू-कश्मीर से ध्यान भटकाना चाहता है। 1984-85 में भी उसने ऎसा ही किया था।
अब हमारी बात। पंजाब के मुख्यमंत्री ने कहा है कि केंद्र को भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। पर इस बहाने सभी मुख्यमंत्रियों को सोचना होगा कि जब एनसीटीसी का मुद्दा गर्माया था तो भारत सरकार ने कहा था कि केंद्र की भूमिका बढ़ाने दें पर कई राज्यों ने विरोध किया था। हम जिनको आतंककारी कहते हैं कई राज्य उन्हें वोटबैंक समझते हैं। नेता अपना राज कायम रखना चाहते हैं और दिल्ली की दखल नहीं चाहते ताकि उनकी अहमियत कम न हो जाए।
एक अहम बात यह है कि जब भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने भारत से मुलाकात और बातचीत का हाथ बढ़ाया है तो उनके प्रयासों को विफल करने के लिए सेना, कट्टरपंथी, आतंककारियों ने पुरजोर कोशिश करते हैं। पाकिस्तानी सेना और आईएसआई व कट्टरपंथियों का अस्तित्व ही भारत की खिलाफत पर टिका है। ऎसे में वे शांति कभी स्थापित होने नहीं देंगे। पाकिस्तान से शांति के लिए जब भी बातचीत करनी हो तो भारत सरकार को उनकी सेना को भी वार्ता टेबल पर लाना चाहिए। भारत की ओर से एक टाइमलाइन और लक्ष्य निर्धारित किए जाएं। इन्हें हासिल करने के बाद ही अगली वार्ता की जाए।
सुरक्षा एजेंसियों की चूक
प्रो. आलोक बंसल रक्षा विशेषज्ञ
पंजाब के गुरूदासपुर में हुए आतंकी हमले की घटना के मामले में हम सीधे तौर पर अभी कुछ नहीं कह सकते कि यह हमारी खुफिया एजेंसियों की विफलता है क्योंकि भारत-पाक सीमा पंजाब की ओर भी काफी बड़ी है। फिर यह बात भी सही है कि खुफिया एजेंसियों ने सूचना तो दी थी किसी आतंकी घटना की लेकिन घटना कहां पर होगी और किस समय होगी, यह सूचना देना बहुत ही कठिन होता है।
कुछ खामियां जरूर हैं
हमारी सीमा पर अर्धसैनिक बल तैनात होते हैं जिनकी कमान उनके अधिकारियों की बजाय पुलिस के हाथ में होती है। पुलिस और सेना के काम में काफी अंतर होता है। अर्ध सैनिक बलों में सीधे नियुक्ति पाने वालों के अवसरों में कमी आने से उनमें तनाव बढ़ता है और इसका खमियाजा हमें जब-तब भुगतना पड़ता है। लेकिन, इस आपसी खींच-तान के कारण कुछ कमी रह गई हो, ऎसा अभी कहा नहीं जा सकता। अलबत्ता इतना ही कहा जा सकता है कि संसाधनों की कमी को दूर करने और कामकाज के तौर-तराकों में बदलाव की आवश्यकता है।
अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद है
इसे याकूब मेमन को फांसी की सजा से जोड़कर देखना बहुत ही गलत होगा। यह जिस किस्म की आतंकी घटना है उसे देखते हुए ऎसे लगता है कि अलकायदा या फिर इस्लामिक स्टेट के आतंकियों के बीच प्रतिद्वंद्विता का दुष्परिणाम है। यद्यपि पाकिस्तान के सुरक्षा चक्र में ऎसे तत्व मजबूत हैं जो भारत में आतंक को हवा देते रहे हैं। यह हमला जिसमें मारूति कार छीनकर भागना और कटरा की ओर जाने वाली बस पर फायरिंग करना, इससे ऎसा लगता है कि दो आतंकी संगठन अपने असर को दिखाने की प्रतिद्वंद्विता में लगे हैं।
कहीं नहीं दिखाई दे रही कठोर नीति
प्रो. उमा सिंह जेएनयू, नई दिल्ली
गुरदासपुर में हुए आतंकी हमले में पाकिस्तान का हाथ हो सकता है। पाकिस्तान का रवैया भारत के खिलाफ शुरू से ही आक्रामक रहा है। पिछले कुछ दिनों से सीमा पार से ऎसी बयानबाजियों ने जोर पकड़ा है जो भारत के खिलाफ जहर उगल रही हैं। चाहे वो पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का बयान हो कि “हम भारत के खिलाफ परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकते हैं” या चीफ जनरल का बयान कि “कश्मीर पाकिस्तान का अंग है और हम इसको लेकर रहेंगे”।
इन बयानबाजियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। गुरदासपुर की घटना को इन बयानबाजियों से भी जोड़ा जा सकता है कि कहीं पाकिस्तान ने एक बार फिर आतंककारियों की सहायता से भारत को जवाब देने की कोशिश की हो। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि भारत ने 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया, हो सकता है यह पाकिस्तान की प्रतिक्रिया हो। तीसरा कारण, याकूब मेमन की फांसी का मामला भी हो सकता है। इन आशंकाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। यह दुखद है कि उफा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और नवाज शरीफ की मुलाकात के बाद हालात सुधरने की बजाय बिगड़ ही रहे हैं।
नहीं दी चेतावनी
हां, इस घटना से यह साबित होता है कि यह पूर्ण रूप से इंटेलिजेंस की नाकामी है। गृह मंत्री का कहना है कि हमने 24 जुलाई को पंजाब को बता दिया था कि राज्य में कोई बड़ी आतंकी घटना हो सकती है। पर समझने वाली बात यह है कि यदि वे पहले ही बता चुके थे तो यह घटना घटी ही क्यों? वहीं भाजपा के किसी भी सदस्य ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री की तरफ से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। यही लगता है कि गृहमंत्री ने पंजाब सरकार को चेतावनी दी ही नहीं थी। इसलिए इसे खुफिया विभाग की नाकामी माना जा सकता है। भारत की पाकिस्तान नीति ही सवालों के घेरे में आ जाती है खासकर क्रॉस बॉर्डर टेरेरिज्म के संदर्भ में।
वार्ता और फिर हमला
एक तरफ तो हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज कहती हैं कि आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकती तो दूसरी ओर उफा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बड़े ही उत्साह भाव से शरीफ से मुलाकात करते हैं। ऎसे तो भारत की पाकिस्तान नीति पर प्रश्न चि±न अंकित होंगे ही कि आप कहते कुछ हैं और करते कुछ। अब जल्द ही नई दिल्ली में भारत-पाक के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की आतंकवाद पर वार्ता होने वाली है। भला यह कैसी नीति है? हम हमेशा उनसे बात करते हैं और वे हम पर हमला।