जंग से दंग
Published: May 22, 2015 10:46:00 pm
ऎसे में बेवकूफ बनी दिल्ली की जनता। वह तो सीधे-सीधे भुगत
रही है और हमारे जैसे दिल्ली से दूर रह रहे चैनलों की वजह से
अजी दिल्ली में क्या, हमें तो चारों तरफ जंग ही जंग नजर आती है। लेकिन दिल्ली के दृश्य मजेदार हैं। सुबह केजरीवाल किसी बाबू का ट्रांस्फर करते हैं। वह अरदास लेकर डिप्टी गवर्नर के पास पहुंचता है। साहब उसे तुरंत निरस्त कर देते हैं। केजरीवाल गुस्से से दफ्तर के ताला जड़ देते हैं, जंग साहब ताला तुड़वा देते हैं। कसम डेमोके्रसी की।
ऎसा ऊंधा राज हमने नहीं देखा। केजी कह रहे हैं मेरे सड़सठ आदमी जीते हैं। अरे जीते हैं तो क्या तुम्हें देश का बादशाह बना दें। उधर जंग कह रहे हैं कि उनके बिना पत्ता भी नहीं हिलेगा। इस “जंग” का मजा मोदी सरकार ले रही है। उसके मंत्री जनता को मानो चिढ़ा-चिढ़ा कर कह रहे हैं- लो कहा था न हमने। बंदर के हाथ में तलवार मत दो। अब सारी फुलवारी उजाड़ रहा है।
केजरीवाल के हाल भी अजीब हैं। समझ ही नहीं पा रहे कि क्या करूं? उनका हाल पहली बार ससुराल आए जंवाई का जैसा हो रहा है जिसके सासू जी ने इतने सारे पकवान बना कर थाली में परोस दिए कि बेचारा समझ ही नहीं पाया कि क्या खाए क्या छोड़े। केजी को कौन समझाए कि राजकाज चाबुक लेकर नौकरशाही के घोड़े पर सवार होने से ही नहीं चलता। अफसरशाही बेलगाम घोड़ा होती है इसे साधने के लिए सर्कस के कलाकार जैसी नटगिरी चाहिए।
ज्यादा ट्रांस्फर का चाबुक चलाओगे तो घोड़ा पीठ से गिरा देगा। हमें समझ नहीं आता कि शीला बहन जी पन्द्रह साल कैसे शासन चला गई। वह तो यूं ही बदनाम हुई।डिप्टी साहब उनके जमाने में भी हुआ करते थे पर ऎसी जंग कभी न सुनी, न देखी । इधर जंग साहब को भी सोचना पड़ेगा। माना कि साहब आपकी पीठ पर मोदी जी का हाथ है पर ऎसा भी क्या कि बेचारा मुख्यमंत्री छोटे-मोटे तबादलों के लिए भी आपकी तरफ ताकता फिरे। अपने देश के कायदे-कानून न द्विअर्थी हंै जिसकी जैसी मर्जी वैसे उनकी व्याख्या कर सकता है।
यह बात टीवी चैनल्स पर सुघड़ विशेष्ाज्ञों की जुबानी जंग में देखने को मिलती है। कांग्रेस के गंगादासा उस नियम को अपनी तरह समझाते हैं तो भाजपा के जमुनादास अपनी तरह। बीच में “आप ” के करमचन्द्र अपनी हांकते रहते हैं। कानून न हुआ मानो अंधों का हाथी हो गया। ऎसे में बेवकूफ बनी दिल्ली की जनता। वह तो सीधे-सीधे भुगत रही है और हमारे जैसे दिल्ली से दूर रहने वाले समाचार माध्यमों की वजह से।
हम तो कहते हैं कि इस जंग का निपटारा जल्दी हो जाए ताकि कम से कम बेकसूर जनता को तो जरा राहत मिले। अभी तो वहां कुछ होता जाता ही नजर नहीं आ रहा। वैसे लगता यही है कि अपने एके-67 मुख्यमंत्री तो बन गए लेकिन उनका पुराना आंदोलनकारी मिजाज अभी तक नहीं बदला है।
ऎसे नौसिखिए कामकाज चलाने की बजाय राज की नाक में तिनका करने में अधिक सफल रहते हैं। जब तक सियासत की नाक में तिनका न हो वो मदहोश हो जाती है। बहरहाल आप तो इस निहत्थी जंग के मजे लेते रहिए।
राही