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“राजन” का बूस्टर डोज

तमाम विवाद, संवाद और दबावों के बाद आखिर आरबीआई
गवर्नर रघुराम राजन ने रेपो और रिवर्स रेपो दर में

Sep 29, 2015 / 10:52 pm

मुकेश शर्मा

RBI Governor Raghuram Rajan

RBI Governor Raghuram Rajan

तमाम विवाद, संवाद और दबावों के बाद आखिर आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने रेपो और रिवर्स रेपो दर में आधा फीसदी कम कर दी। उद्योग जगत से लेकर आम उपभोक्ता इस कटौती का लंबे समय से इंतजार कर रहा था।


उम्मीद की जा रही है यह ब्याज दर कटौती वैश्विक मंदी से जूझती भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बूस्टर डोज का काम करेगी। एक बार अर्थव्यवस्था का पहिया तेजी से घूमेगा तो फिर उसकी गति रूकने का नाम नहीं लेगी। क्या सचमुच ऎसा हो पाएगा। इसी पर पढिए आज के स्पॉटलाइट में जानकारों की राय…

जमीन पर असर दिखने में अभी लगेगा समय

आरबीआई ने रेपो दर में जो आधा फीसदी कटौती की है उसका तात्कालिक असर तो यह होगा कि पूरे उद्योग और उपभोक्ता जगत में एक “फील गुड” का माहौल बनेगा। जमीनी स्तर पर तो इसका असर 3 से छह महीने में ही दिखना शुरू होगा।


यह असर भी तभी दिखेगा जब रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दर में की गई इस कटौती को बैंक उपभोक्ता तक पहुंचाते हैं। बैंकों को भी इसी अनुपात में ब्याज दर में कटौती करना होगी।


तब इसका परिणाम कॉरपोरेट से लेकर बैंक, बिक्रेता और उपभोक्ता के हाथ में बचत के रूप में दिखेगा। इस बचत का दूरगामी असर निवेश से लेकर, कंपनियों की बढ़े हुए मुनाफे तथा अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में देखने को मिलेगा।

बैंक ही न रख लें फायदा

ब्याज दर में इस कटौती का असर दिखने में समय इसलिए लगेगा क्योंकि पहले तो बैंकों को यह निर्णय लेना होगा कि वे इस ब्याज दर कटौती का सारा लाभ खुद ही रख लेते हैँ अथवा उसे उपभोक्ता तक पहुंचाते हैं।


बैंक अगर उपभोक्ता तक फायदा पहुंचाते भी हैं तो किस हद तक पहुंचाते हैं? रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन को यह शिकायत रही है कि बैंक ब्याज दर में कटौती को उपभोक्ता तक नहीं पहुंचाते हैं। उनकी इस शिकायत को देखते हुए ओर त्योहारी मौसम के मद्देनजर पिछले एक माह में कुछ बैंकों ने आंशिक रूप से ब्याज दर कटौती की भी है।


अब रिजर्व बैंक की नजर इस पर भी होगी कि बैंक इस ब्याज दर कटौती को उपभोक्ता तक कितना और कब तक पहंुचाते हैं। (पिछली बार उपभोक्ता तक ब्याज दर कटौती का लाभ न पहुंचाने के पीछे कई बैंकों का तर्क था कि उनके ऊपर बहुत मात्रा में “बैड लोन” है, इसलिए वे उपभोक्ता को सस्ता लोन देने की स्थिति में नहीं ेहैं) इसका एक संकेतक बैंकों की उधारी बढ़ने और उपभोक्ता सामान की खरीद में भी दिखता है।


साल के अंत तक इसके आंकड़े रिजर्व बैंक के सामने आ जाएंगे।
बैंकों द्वारा ब्याज दर में कटौती के दो परिणाम होंगे। पहला तो यह कि कारोबारियों के ऊपर वर्तमान में जो बैंक लोन हैं वे कुछ हद तक सस्ते हो जाएंगे। दूसरा नये लोन सस्ते हो जाएंगे।


पुराने लोन सस्ते होने का असर यह होगा कि कारोबारियों की ब्याज अदायगी कम हो जाएगी और उनकी बचत बढ़ जाएगी तथा लागत कम हो जाएगी। लागत कम होने से वे अपने उत्पाद का दाम भी कम करने के लिए प्रेरित होगे।


त्योहारी सीजन को देखते हुए उसकी संभावना पहले से कहीं अधिक है। जिससे उपभोक्ता के हाथ में भी कम दाम में अधिक उत्पाद पहुंचेगा। इस तरह से सबके हाथ में पहले से कहीं अधिक पैसा होगा। अधिक बचत और निवेश होगा। इस लाभ और बचत को वे पुन: निवेश कर सकते हैँ। यह पैसा कई तरह से खर्च होगा।


लोग मकान खरीदेंगे, कार खरीदेंगे, स्कूटर या फ्रिज, टीवी, मोबाइल आदि खरीदेंगे। ज्वैलरी और सोने में भी निवेश करेंगे। इस तरह से बढ़े पैमाने पर बाजार में मांग का सृजन होगा।

तेजी से घूमेगा पहिया


नये लोन सस्ते होने का असर यह होगा कि घर से लेकर कार तक के लिए लोन की मांग बढ़ेगी। उद्यमी अधिक संख्या में नये प्रोजेक्ट के लिए लोन लेगे। उसके लिए उन्हें श्रम से लेकर कच्चा सामान तक सब कुछ चाहिए होगा। उदाहरण के लिए अगर रियल स्टेट में मांग और निवेश बढ़ता है तो इसी के साथ सीमेट और स्टील की मांग भी बढ़ेगी। इस तरह से समूची अर्थव्यवस्था का पहिया तेजी से घूमेगा।


जिससे कंपनियों की बैलेसशीट भी सुधरेगी और इस बढ़े मुनाफे का असर शेयर बाजार में उनकी स्थिति पर दिखेगा। उनके शेयरों में निवेशक की रूचि बढ़ेगी। इस तरह से शेयर बाजार में भी उछाल आएगा।

रेपो रेट में कटौती का एक असर यह भी होगा कि बैंकों की सावधि जमा (एफडी) पर ब्याज दर भी कम हो जाएगी। इसलिए अब एफडी निवेश का उतना अच्छा विकल्प नहीं रह जाएगा। इसलिए लोग निवेश के दूसरे उपायों की ओर मुड़ेंगे। इसका परिणाम होगा कि रियल स्टेट, सोने से लेकर म्यूचुअल फंड और शेयर बाजार में निवेश बढ़ेगा। यहां से अच्छे रिटर्न की उम्मीद रहेगी।


साथ ही, सरकारी बांड पर मिलने वाले ब्याज दर की मात्रा भी कम हो जाएगी। इसलिए यह भी संभावना रहेगी कि विदेशी संस्थागत निवेशक इसमें से अपना पैसा निकालें।


लेकिन बाजार की आज की चाल देखकर लगता नहीं है कि विदेशी संस्थागत निवेशकों ने बांड बाजार से पैसा निकाला है। इसका एक कारण यह है कि अभी अमरीकी फेडरल बैंक ने अपनी ब्याज दर नहीं बढ़ाई है। इसलिए फिलहाल एफआईआई ने अभी अमरीका की ओर रूख नहीं किया है। लेकिन यह संभावना हमेशा बनी रहेगा।


फिलहाल, रिजर्व बैंक की वर्तमान रेपो दर कटौती उम्मीद से अधिक है। दीवाली के पहले किसी और कटौती की आगे कोई संभावना नहीं है। अब आरबीआई और सरकार की नजर इसके परिणामों पर होगी। इसलिए इस कटौती पर काफी कुछ दाव पर लगा हुआ है।

अगर रियल स्टेट में मांग और निवेश बढ़ता है तो इसी के साथ सीमेट और स्टील की मांग भी बढ़ेगी। इस तरह से समूची अर्थव्यवस्था का पहिया तेजी से घूमेगा। कंपनियों की बैलेसशीट भी सुधरेगी और इस बढ़े मुनाफे का असर शेयर बाजार में उनकी स्थिति पर दिखेगा।

उनके शेयरों में निवेशक की रूचि बढ़ेगी। इस तरह से शेयर बाजार में भी उछाल आएगा। रेपो रेट में कटौती का एक असर यह भी होगा कि बैंकों की सावधि जमा (एफडी) पर ब्याज दर भी कम हो जाएगी।

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