वाह रे भारतीय राजनीति। एक झटके में लालू को कचरेदान से निकालकर सिंहासन पर बैठा दिया। लालू ही क्यों, लालू के पूरे खानदान का कायाकल्प कर डाला। दोनों लालू पुत्र बिहार के भाग्य विधाताओं में शामिल हो गए। एक पुत्र तो स्वतंत्र भारत के राजनीतिक इतिहास में सबसे कम उम्र का उपमुख्यमंत्री होगा। नीतीश शपथ ग्रहण समारोह का नजारा भी अद्भुत था। अचानक लगा जैसे लालू का जीर्णोद्धार हो गया।
महाईमानदार अरविंद केजरीवाल और महाबेईमान लालू प्रसाद यादव एक-दूजे की गलबहियां करते नजर आए। क्या बात है। इस दृश्य की तो किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी, कम से कम मोदी और शाह की जोड़ी के लिए यह दृश्य हृदय विदारक होंगे। अपने देश की राजनीति कहां जा रही है। इसका जवाब देना किसी प्रकांड राजनीतिक पंडित के लिए भी मुश्किल हो चला है। अपने यहां एक शब्द बड़ा प्रचलित है भाई-भतीजावाद। लगता है अब भाई-भतीजावाद अब पुत्र-पुत्री-पत्नी खानदानवाद में बदल गया है।
बिहार की छोड़ो, उत्तरप्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान किसी भी प्रदेश को देख लो। हर जगह परिवारवाद नजर आ जाएगा। जो इल्जाम नेहरू-गांधी खानदान पर लगाया जाता था। वह अब आम हो चुका है और मजे की बात यह कि अब जनता को भी इससे कोई ऐतराज नहीं है। वह तो खानदान को जीता कर मुहर और लगा देती है। अब इसके लिए किसे जिम्मेदार बताया जाए। इस देश के लाखों युवक अपनी किस्मत को ही कोसते होंगे।
आज अगर आप किसी बड़े आदमी के पुत्र हैं तो आपको सफ ल होने से कोई नहीं रोक सकता। आप किसी बड़े नेता के बेटे हैं तो देर-सवेर आप विधायक, सांसद और मंत्री बन ही जाओगे। इस मामले में सबसे ज्यादा दुखी लेखक है क्योंकि उसके बेटे सबसे पहले उसको गालियां निकालते हैं कि क्या ‘शानदार धंधा’ चुना है। व्यापार में तो एक दिन दुकान के गल्ले पर बैठने का मौका मिल ही जाएगा लेकिन साहित्य में बाप कुछ नहीं कर सकता।
अगर बेटे में भेजा नहीं है तो लाख कोशिशों के बाद बेचारा रचनाकार बाप उसे लेखक नहीं बना सकता। हां, जुगाड़ करके कई बापों ने अपने कूड़मगज बेटों को विश्वविद्यालयों में घुसा दिया। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जो वंशवाद अपने देश में हजारों सालों से चल रहा है वह आधुनिक युग में फलफूल रहा है। हमने महान् सम्राटों की नाकाबिल औलादों को राजा बनते देखा है। अब नेताओं के पुत्रों को मंत्री बनता देख रहे हैं। क्या एक भी राजनीतिक दल है जो कह सके कि वह इस बीमारी से मुक्त है। हां कुंआरे नेता जरूर गाल बजा सकते हैं।
राही