भारत और रूस के बीच महत्वपूर्ण सामरिक समझौतों के साथ कई अन्य समझौते किए गए। यह निश्चित तौर पर सुखद आश्चर्य ही है। ऐसा इसलिए क्योंकि जिस तरह का माहौल बना हुआ है और दोनों देशों के बीच संबंधों को लेकर जिस तरह की खबरें आ रही थीं, उसमें तत्काल इस तरह के समझौतों की उम्मीद किसी को नहीं थी।
इस बात में कोई संदेह नहीं कि दोनों देशों के बीच समझौतों को लेकर लंबे समय से बातचीत चल रही थी लेकिन, सब कुछ इतनी जल्दी और सरलता से हो जाएगा, इसने बहुत चौंकाया। बहरहाल, इन समझौतों के बाद कहा जा सकता है कि देर आयद, दुरुस्त आयद।
सुरक्षा के मामले में भारत के सामने जिस तरह की सामरिक परिस्थिति बन रही हैं, उसे देखकर लगता है कि भारत सरकार सुरक्षा उपकरण की खरीद के मामले में बहुत ही तत्पर है। भारत सरकार को अहसास है कि वह न इस मौके को गंवा सकती है और न ही इसमें देरी कर सकती है।
भारत जानता है कि एस-400 ट्राइम्फ मिसाइल सिस्टम ऐसी अत्याधुनिक सुरक्षा प्रणाली है, जो 120-400 किलोमीटर दूर तक की मिसाइल को ट्रैक कर सकता है। इसके अलावा हेलीकॉप्टर के लिए सौदा हुआ है जिसमें कुछ तो भारत को मिलेंगे और कुछ दोनों देश संयुक्त रूप से उत्पादन करेंगे। यह भारत के लिए बहुत ही लाभकारी सौदा है। सामरिक लिहाज से ये सौदे न केवल भारतीय थलसेना बल्कि वायु और नौसेना को भी मजबूती प्रदान करेंगे।
रूस कहें या पूर्व सोवियत संघ भारत और उसके रिश्ते हमेशा से ही प्रगाढ़ रहे हैं। यदि ऐतिहासिकता के लिहाज से देखें तो आजादी के तत्काल बाद कुछ समय रिश्तों में गर्मजोशी नहीं थी। स्टालिन ने भारत को महत्ता न देकर पाकिस्तान को तरजीह दी थी लेकिन बाद में ख्रुश्चेव ने भारत के महत्व को समझा। वे भारत आए और भारतीय प्रधानमंत्री भी वहां गए, उसके बाद से भारत के संबंधों में बेहतरी आती गई।
हालांकि, ताशकंद समझौते में रूस ने भारत के प्रति विशेष झुकाव नहीं दिखाया लेकिन बाद में उसकी ओर से भारत को भरपूर सहयोग मिलता रहा। विशेषरूप से सामरिक लिहाज से तो भारत को रूस की सहायता मिलती ही रही। कभी-कभार संबंधों में कुछ शिथिलता जरूर देखने को मिली लेकिन 55-60 वर्षों में दोनों देशों के बीच विश्वास के संबंध बने रहे हैं। यही वजह रही कि भारत रूस को विशेष तरजीह देने वाला सहयोगी मानता रहा है।
भारत और रूस के बीच समझौतों की एक खास बात यह भी रही है कि इसमें किंतु-परंतु जैसी बातें नहीं होतीं। वह भारत के साथ समझौतों में बहुत शर्तें भी नहीं लादता। वह भारत को रक्षा सामग्री की आपूर्ति करता है तो साथ में तकनीक भी हस्तांतरित करता रहा है। इसके अलावा एक खास बात यह भी है कि अन्य देशों के मुकाबले वह भारत को उन्नत तकनीक वाला सामग्री देता रहा है। ऐसी स्थिति भारत के नए सहयोगी अमरीकी के साथ नहीं रही है। अमरीका भारत के साथ संबंधों के मामले में अपने सहयोगियों का ध्यान रखते हुए आगे बढ़ता रहा है जबकि रूस के साथ ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। रूस ने भारत को अपने सहयोगियों के मुकाबले बेहतर तकनीक वाले संसाधन मुहैया कराए हैं।
अब सवाल यह भी है कि इन समझौतों का भारत के साथ अमरीकी की बढ़ती दोस्ती पर क्या असर पड़ेगा? मेरा मानना है कि इस दोस्ती पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। जब द्विपक्षीय संबंध होते हैं तो उसमें अन्य देश के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता। अमरीका के साथ बढ़ती दोस्ती का न तो रूस पर कोई असर पड़ा और न ही अमरीका से आप ऐसी उम्मीद कर सकते हैं कि उसे कुछ बुरा लगने वाला है। हमारे संबंध अमरीका से साथ भी बेहतर रहने वाले हैं और रूस के साथ तो संबंधों में और प्रगाढ़ता ही आएगी।
जहां तक चीन की बात है तो वह भी एस-400 ट्राइम्फ मिसाइल प्रणाली का बड़ा खरीदार है। लेकिन, यह भी ध्यान दिला दूं कि चीन के साथ रूस की दोस्ती परिस्थितिजनक है। फिलहाल दोनों ने मतभेदों को दबा रखा है। रूस हमेशा से चीन के मुकाबले भारत को ही तरजीह देता रहा है। रूस के भारत के साथ सीमा या अन्य किसी मामले को लेकर मतभेद नहीं रहे हैं जबकि चीन के साथ रूस के मतभेद फिलहाल दबे हुए हों लेकिन देर-सबेर उनमें उबाल आने की आशंका बनी हुई है। यह बात भी उल्लेखनीय है कि रूस ने भारत को जब सुखोई विमान बेचे थे तो उसने यही विमान चीन को भी बेचे थे।
विशेषज्ञों की राय में चीन को बेचे गए सुखोई विमान भारत को मिले सुखोई विमानों के मुकाबले तकनीकी तौर पर कमजोर भी थे। दोनों देशों को एक ही प्रकार की सामग्री के निर्यात के लिहाज से भारत को चिंतित होने की कतई आवश्यकता भी नहीं है। अब, भारत के साथ शिथिल से पड़े संबंधों में फिर से गर्माहट आने लगी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सही कहा है कि दो नए दोस्तों से अच्छा है एक पुराना दोस्त। नए समझौते साबित कर रहे हैं कि यह बात रूस और भारत दोनों को ही समझ आ गई है।