आए दिन उजागर होने वाली भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की खबरों के बीच ‘रेल टिकट पर 14 लाख वरिष्ठ नागरिकों
आए दिन उजागर होने वाली भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की खबरों के बीच ‘रेल टिकट पर 14 लाख वरिष्ठ नागरिकों का रियायत नहीं लेनाÓ जैसी खबर दिल को सुकून देने वाली है। खासकर उस दौर में जब इंसान के लिए ‘पैसाÓ ही सब कुछ बनता जा रहा हो। बीते वित्त वर्ष में साढ़े चार करोड़ वरिष्ठ नागरिक रेलयात्रियों में से 14 लाख का रियायत नहीं लेना भले ही बड़ा आंकड़ा ना हो लेकिन दूसरों के लिए प्रेरणादायी तो बन सकता है।
विशेषकर उन लोगों के लिए जो रियायत लिए बिना भी काम चला सकते हैं। लाखों लोगों ने स्वेच्छा से गैस सब्सिडी छोड़कर ये तो साबित किया ही है कि उनमें देश के लिए कुछ करने की भावना मौजूद है। देश में चाहे अरबों-खरबों के घोटाले हो रहे हों, करोड़ों रुपए रिश्वत ली-दी जा रही हो लेकिन लोग फिर भी त्याग को तत्पर हैं। अकेले रेलवे विभाग सालाना 30 हजार करोड़ रुपए की सब्सिडी देता है। स्वेच्छा से सब्सिडी छोडऩे वालों से सरकार का बोझ हल्का तो होगा ही यह धन रेल के विकास पर खर्च हो सकता है।
अनेक दूसरे विभाग भी रियायत के बोझ तले दबे हैं। सबसे ज्यादा बोझ सांसदों-विधायकों को मिलने वाली रियायतों का है। सस्ते मकान, मुफ्त पानी-बिजली, टेलीफोन, मुफ्त हवाई-रेल यात्रा। संसद-विधानसभाओं की कैंटीन में नाम मात्र के शुल्क पर भोजन। एक बार सांसद-विधायक रह लिए तो जिंदगी भर की पेंशन और मुफ्त इलाज। होना तो ये चाहिए कि देश को चला रहे हमारे जनप्रतिनिधि अपनी रियायतें छोड़कर जनता को संदेश दें।
उल्टे हमारे जनप्रतिनिधि तो अपने वेतन-भत्ते बढ़वाने के फेर में ही लगे रहते हैं और चाहते हैं कि सारा त्याग आम जनता ही करे। आज के दौर में लालबहादुर शास्त्री और नानाजी देशमुख सरीखे नेता तो मिलते नहीं। जो भी मिलता है, सब हड़प जाने की फिराक में ही नजर आता है। रियायतें छोडऩे वाले व्यक्ति चाहें वरिष्ठ हो या युवा, उनको प्रोत्साहित किया ही जाना चाहिए ताकि दूसरों को भी प्रेरणा मिल सके।