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जुबानी कार्रवाई

आतंकवाद के खिलाफ जयपुर में एक और रस्मी अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन सम्पन्न हुआ। राष्ट्रपति से लेकर गृहमंत्री,

Feb 03, 2016 / 11:12 pm

मुकेश शर्मा

Terrorism

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आतंकवाद के खिलाफ जयपुर में एक और रस्मी अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन सम्पन्न हुआ। राष्ट्रपति से लेकर गृहमंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, विभिन्न देशों के नेताओं ने दो दिन तक विभिन्न सत्रों में दुनिया में आतंकवाद के पसरते पांव और बढ़ती हिंसा पर अपनी-अपनी चिंता जताई। प्रणब मुखर्जी बोले, आतंकवाद से इंसानियत को खतरा है।


 ज्यादातर वक्ता आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देशों को आड़े हाथों लेते तो दिखे लेकिन किसी के पास यह योजना नहीं थी कि ऐसे देशों पर आतंकवाद से दूर होने का दबाव कैसे बनाया जाए। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का कहना था कि रणनीति के साथ एक्शन भी दिखना चाहिए लेकिन एक्शन कब हो, कैसा हो, कौन-कौन करे, इस पर सहमति नहीं दिखी। फिर एक्शन कैसे होगा? हाल ही पेरिस से लेकर पठानकोट और अफगानिस्तान में हुए आतंकी हमले दुनिया के सामने हैं।


हर घटना के बाद नेता, सामरिक रणनीतिकार चीख-चीख कर कहते हैं कि अब सब्र टूट रहा है आतंकवाद को कुचल देंगे, उसके पोशकों को मुंहतोड़ जवाब देंगे लेकिन होता क्या है? चंद घंटों या दिनों में कहीं फिर आतंकी घटना अंजाम दे दी जाती है। पठानकोट को ही लें। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री और तमाम राजनेताओं ने जमकर भड़ास निकाली।


 शरीफ को फोन हुए, उनके घडि़याली आंसू देखे गए। कार्रवाई के लिए सबूत भेजे गए, इन सबूतों पर पड़ोसी की कार्रवाई पर विश्वास भी जताया गया लेकिन एक माह होने को आया हुआ कुछ नहीं। उल्टा पाकिस्तान ने यह कहकर डोजियर लौटा दिया कि और सबूत दीजिए, पहले भेजे पर्याप्त नहीं हैं।


यह तो वैसा ही है कि ‘सारी रात सिर पीटा, सुबह मुर्दा भाग गया।Ó आतंकवाद पर सम्मेलनों में जब तक वैश्विक समुदाय एक मत नहीं होगा, संयुक्त रणनीति नहीं बनेगी, संयुक्त कार्रवाई नहीं होगी तब तक आतंकवाद का खात्मा असंभव है। इस मुद्दे पर महाशक्तियां ही एक राय नहीं हैं। एक देश पर हमला होगा तो दूसरा साझा कार्रवाई से दूर होगा क्योंकि वहां आतंक को पैदा करने में उसका हाथ और हित दोनों होते हैं। सीरिया, लीबिया, अफगानिस्तान, इराक के उदाहरण सामने हैं।


 दो टूक कहें तो ऐसे सम्मेलनों में साझा एक्शन प्लान सामने आने चाहिए। आतंक से त्रस्त दुनिया अब वार्ताएं नहीं निर्णय चाहती हैं। कागजों में लिखा ही नहीं, एक्शन होता दिखना चाहिए। तभी दुनिया को रक्तपात से बचाया जा सकेगा। औरों की बात बाद में, पहले भारत तो दृढ़ निश्चय-निर्णय करे कि ऐसी परिस्थितिं में वह क्या करेगा? अभी के हालात में हम ही, कहते कुछ और करते कुछ हैं। देशवासी तो उम्मीद ही कर सकते हैं।

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