व्यंग्य राही की कलम से
जाते-जाते फिरंगी हमें एक-दो नहीं कई चीज ‘गिफ्ट’ में दे गए थे। सबसे पहली तो ‘घूस’। जिसे ‘रिश्वत’ कहते हैं। हमने महाभारत, रामायण, पुराण इत्यादि थोड़े-बहुत बांचे हैं लेकिन ‘रिश्वत’ देने जैसे कोई कृत्य नजर में नहीं आए। यह काम अंग्रेजों के आने के बाद पनपा और आज खूब पैर पसार चुका है। इसके साथ ही अंग्रेजों ने हमें गिफ्ट में दी- चमचागिरी व फूट डालो और राज करो की बेमिसाल नीति।
एक और जबरदस्त नायाब तोहफा दिया- मेमसाब यानी साहब की घरवाली।एक तो साहबों ने ही नाक में दम कर रखा है उसके साथ ‘करेला और नीम चढ़ा’ मुहावरे को साकार करती हुई ये नकचढ़ी ‘मेमसाब’। ‘मेमसाब’ की पहचान इनकी आदतों से की जा सकती है। बेवजह की दंभी, हद दर्जे की लालची, अपने को विश्वसुन्दरी समझने वाली और हर बात पर नाक-भौं सिकोडऩे वाली हो तो समझ जाइए कि यह किसी आला अफसर की बीवी है जो सारे विभाग में मेमसाब के नाम से विख्यात है।
जरा साहब के ‘ड्राइवर’ या ‘चपरासी’ के संग चाय पीजिए और बात ही बातों में उनसे भेद खुलवा लीजिए। जो रोचक किस्से आपको सुनने को मिलेंगे, कसम से, उनके सामने तो ‘लाफ्टर शो’ भी फीका नजर आएगा।
इन मेमसाब को माथे चढ़ाने का काम विभाग के ही कुछ चालाक कारकून करते हैं। वे मेमसाब को मार्केटिंग के लिए ले जाते हैं, उनकी नकचढ़ी औलादों के नखरे उठाते हैं, मेमसाब को दुनिया की सबसे खूबसूरत सुन्दरी बताते हैं और बदले में मेमसाब के माध्यम से अपना काम निकलवा लेते हैं। एक बड़े साहब का ड्राइवर हमारा यार था। बड़ा स्वाभिमानी।
एक दिन मेमसाब ने उसे बेवजह झिड़क दिया। एक दिन भरी बरसात में उसने अपनी गााड़ी गंदे पानी के बीच खड़ी करके कहा- मेमसाब गाड़ी गर्म हो गई। और खुद उतर कर दूर जा खड़ा हुआ। नकचढ़ी मेमसाब को कीचड़ भरे पानी में उतरना पड़ा। सारी शान पल भर में कचरा हो गई।