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मातमपुर्सी

Published: Apr 26, 2015 10:48:00 pm

सांसदों को
सेंट्रल हॉल में गप्पबाजी के लिए तो समय मिल जाता है लेकिन किसानों की समस्याओं
पर बोलने सुनने के लिए समय नहीं मिल पाता

Farmers Gajendra Singh

Farmers Gajendra Singh

इस देश का दुर्भाग्य यही है कि जीते-जी इंसान की कद्र भले ना होती हो लेकिन मरने के बाद उसे कभी भगवान, तो कभी शहीद का दर्जा दे दिया जाता है। जैसा इन दिनों आप पार्टी की किसान रैली में फांसी लगाने वाले दौसा के किसान गजेन्द्र सिंह के साथ हो रहा है। गजेन्द्र जब फांसी लगा रहा था तो न आप पार्टी के नेताओं ने उसकी चिंता की और न पुलिस अथवा मीडिया ने। नेता भाषण देने में व्यस्त थे तो मीडिया उनको कवर करने में और पुलिस नेताओं की सुरक्षा में।

ऎसे में गजेन्द्र की परवाह करने वाला था कौन? गजेन्द्र ने फांसी क्या लगाई, बन गया हीरो। जिस गजेन्द्र को उसके आस-पास के लोग अच्छी तरह नहीं जानते होंगे उसे आज पूरा देश जानने लग गया। केन्द्र से लेकर दिल्ली तक और राजस्थान से लेकर यूपी सरकार उसे सहायता राशि दे रही है। दिल्ली सरकार तो किसानों को दिए जाने वाले मुआवजे की योजना का नाम ही गजेन्द्र के नाम पर रखने जा रही है।

गजेन्द्र के परिवार के सदस्य को सरकारी नौकरी देने के प्रस्ताव भी फाइलों में चल निकले हैं। इस सब दिखावे को क्या माना जाए? क्या यह नहीं कि राजनेताओं को जिंदा आदमी की तकलीफ नजर नहीं आती लेकिन वही मर जाए तो उसकी मौत को भुनाने की होड़ शुरू हो जाती है, संवेदना के नाम पर । मामला दिल्ली के जंतर-मंतर का था, मीडिया का जमावड़ा भी था और खबर जंगल में आग की तरह फैल गई, अन्यथा देश में गजेन्द्र जैसे कितने किसान आए दिन आत्महत्याएं करते रहते हैं लेकिन उनकी सुध लेने की फुर्सत किसे?

पिछले एक दशक में पूरे देश में हजारों किसान आत्महत्या कर चुके हैं लेकिन उनकी समस्या आज भी जस की तस है। किसानों के हमदर्द बनने वाले राजनेताओं का दूसरा चेहरा संसद में तब नजर आता है, जब किसानों के मुद्दों पर चर्चा के दौरान सदन में कोरम तक पूरा नहीं हो पाता है। यानी 545 की लोकसभा में 55 सांसद भी सदन में मौजूद नहीं होते।

इन सांसदों को सेंट्रल हॉल में गप्पबाजी के लिए तो समय मिल जाता है लेकिन किसानों की समस्याओं पर बोलने या सुनने के लिए एक घंटे का समय नहीं मिल पाता। इसे वोट बैंक की राजनीति के अलावा और क्या माना जाए? दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल अब गजेन्द्र को शहीद का दर्जा देने और उसके परिवार के सदस्य को नौकरी देने को भी तैयार हैं। ये वही केजरीवाल हैं जिन्होंने गजेन्द्र के आत्महत्या करने के बाद भी अपना भाषण नहीं रोका था। बाद में घडियाली आंसू बहाने का मतलब सिर्फ और सिर्फ राजनीति है। आम आदमी की बात करने वाले हर नेता का असली चेहरा एक जैसा है। जनता की मजबूरी इनमें से ही एक को चुनने की है।


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