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दिल भी मिलें

Published: Mar 25, 2015 11:52:00 pm

चीन के राष्ट्रपति भारत यात्रा पर आए थे तो
दोनों देशों के रिश्तों के बीच जमी बर्फ पिघलने की उम्मीद बंधी थी।

पिछले साल चीन के राष्ट्रपति भारत यात्रा पर आए थे तो दोनों देशों के रिश्तों के बीच जमी बर्फ पिघलने की उम्मीद बंधी थी। चीनी राष्ट्रपति भारत के प्रधानमंत्री के साथ अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे झूले पर बैठकर बतियाए तो दोनों देशों के करोड़ों लोगों को “हिन्दी-चीनी भाई-भाई” का नारा फिर गूंजने की आस जगी थी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी दो महीने बाद चीन की यात्रा पर जा रहे हैं। जाहिर है ऎसे माहौल में दोस्ती और परवान चढ़नी चाहिए और दुनिया को नजर आनी भी चाहिए। लेकिन हाल ही सीमा विवाद पर चीन के साथ दिल्ली में हुई दो दिवसीय बातचीत में सकारात्मक कुछ नहीं नजर आया।

दोनों तरफ से भविष्य में सीमा विवाद हल होने के साथ ही रिश्तों में और गर्माहट आने की सोच जरूर दर्शाई गई। दोनों देशों के बीच का सीमा विवाद इतना पुराना और जटिल है कि एक-दो बैठकों में इसका हल निकल भी नहीं सकता लेकिन सकारात्मकता की ओर थोड़ा भी नहीं बढ़ना निराशा जरूर पैदा करता है।


भारत और चीन के बीच चार हजार किलोमीटर लम्बी सीमा पर रह-रहकर विवाद उठते रहेे हैं। दोनों तरफ से छिटपुट झड़पें भी सामने आती हैं। भारतीय सीमा में घुसकर कभी चौकी तो कभी सड़क बनाने की चीन की कुटिल चालें भी माहौल को सामान्य बनाने में बाधक रही हैं।

सन् 1962 में दोनों देशों के बीच हुए युद्ध को पांच दशक से अधिक समय बीत चुका है लेकिन अनेक दौर चलने के बावजूद बात आगे नहीं बढ़ पा रही। अरूणाचल प्रदेश और वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर चीन के हठ में बदलाव नहीं आना भी रिश्तों की प्रगाढ़ता में बाधक बन रहा है।

विदेश मंत्री सुष्ामा स्वराज पिछले माह चीन जाकर आई हैं और मई में प्रधानमंत्री चीन दौरे पर जा रहे हैं।


सीमा विवाद का हल निकलना जटिल कार्य हो सकता है लेकिन व्यापार समेत दूसरे अन्य क्षेत्रों में तो हम सम्बंध मजबूत बना सकते हैं। व्यापार साझेदारी में भारत-चीन बड़े सहयोगी बनकर उभरे जरूर हैं लेकिन इसका फायदा चीन ही अधिक उठा रहा है।

चीनी कंपनियां भारतीय बाजारों में आसानी से पहुंच बना लेती हैं लेकिन भारतीय कंपनियों को चीन के बाजारों तक पहुंचने में तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

दोनों देश सीमा विवाद भी सुलझाना चाहते हैं और व्यापार भी बढ़ाना चाहते हैं तो पूर्वाग्रहों को छोड़कर नई सोच के साथ मंच साझा करना होगा। अतीत की कड़वाहटों को नहीं छोड़ा तो दोनों देशों के नेताओं की यात्राएं भी होती रहेंगी और बातचीत भी लेकिन उसका नतीजा निकलने वाला नहीं।

दोनों देशों को साथ चलना है तो हाथ के साथ-साथ दिल भी मिलाने होंगे। अत: जिस दिन दिल मिल गए उसी दिन से दोनों देश और उसके करोड़ों वाशिंदों को सुकून का अहसास होगा।

दोनों तरफ से सेना पर खर्च होने वाले अरबों रूपए विकास के कामों में लगें तो जमीनी तस्वीर बदलते देर नहीं लगेगी।

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