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मारन पर मेहर क्यों?

Published: Jul 23, 2015 10:28:00 pm

11 जुलाई को मीडिया में खबरें आईं कि ऎसा “पुख्ता
सबूत” मुहैया कराया जाए, जिससे यह साबित हो सके कि

Home Ministry

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11 जुलाई को मीडिया में खबरें आईं कि ऎसा “पुख्ता सबूत” मुहैया कराया जाए, जिससे यह साबित हो सके कि सन टेलीविजन नेटवर्क का संचालन देश की सुरक्षा को प्रभावित करेगा।



बड़ी बात यह है कि गृह मंत्रालय से यह सबूत मारन भाइयों ने नहीं बल्कि खुद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने मांगा है। अब यह मामला मारन बनाम गृह मंत्रालय नहीं रहा बल्कि सूचना-प्रसारण मंत्रालय बनाम गृह मंत्रालय हो गया है।


यानी अब मारन भाइयों को अपनी दलील पेश करने की जरूरत ही नहीं रही। ऎसा लगता है कि उनकी वकालत का काम सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने ले लिया है। यह दिलचस्प द्वन्द्व पिछले माह 20 जून को मारन-सहयोगी मीडिया में एक रिपोर्ट छपने के बाद सामने आया। इस रिपोर्ट के मुताबिक अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने गृह मंत्रालय द्वारा कलानिधि मारन-प्रवर्तित सन टीवी नेटवर्क को सुरक्षा लाइसेंस देने से इनकार करने को “अवैध” (वैधानिक नहीं) बताया।
उल्लेखनीय है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इस बारे में उनसे राय मांगी थी। मजेदार बात यह देखिए कि अटॉर्नी जनरल ने 18 जून को अपनी राय पर हस्ताक्षर किए। इसका मतलब यह है कि मीडिया को उनकी राय संबंधित जानकारी 24 घंटे में ही मिल गई यानी 19 जून को क्योंकि तब ही तो यह रिपोर्ट 20 जून को प्रकाशित हो सकी। हो सकता है कि अटॉर्नी जनरल की राय से संबंधित जानकारी मीडिया को गृह मंत्रालय से पहले ही मिल गई। इसके करीब एक सप्ताह बाद मीडिया में 28 जून को रिपोर्ट आई कि गृह मंत्रालय ने अटॉर्नी जनरल की राय को मानने से इनकार कर दिया और वह अपने फैसले पर अडिग रहा।


यूं सामने आया मामला


सन टीवी नेटवर्क के सुरक्षा प्रमाणपत्र का मामला पिछले साल अगस्त में सामने आया। 20 अगस्त 2014 को एनडीए सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने मारन परिवार के मालिकाना हक वाले केबल नेटवर्क संचालित करने वाले “काल केबल्स” का यूपीए सरकार द्वारा दिया गया लाइसेंस रद्द कर दिया।


इसका कारण गृह मंत्रालय द्वारा सुरक्षा लाइसेंस नहीं मिलना बताया गया। काल केबल्स जो सन टीवी के चैनलों के वितरण का काम देखती है, अप्रेल 2003 से ही संचालित की जा रही है।


जरा सोचिए कि सुरक्षा संबंधी लाइसेंस प्राप्त किए बिना ही काल केबल्स नौ वर्षो तक कैसे संचालित होती रही और यह गड़बड़ी अगस्त 2014 में जाकर कैसे पकड़ में आई? यूपीए सरकार में हुए इस गड़बड़झाले वाले प्रश्न का उत्तर उस समय से संबंधित है जबकि दयानिधि मारन सरकार में दूरसंचार विभाग के 2004 से 2007 तक “स्वयंभू प्रधानमंत्री” बने हुए थे। वे 2009 से 2011 तक कपड़ा मंत्री भी रहे।


मारन के गलत कामों की जानकारी मद्रास हाईकोर्ट के 5 सितंबर 2014 के उस मामले पर दिए गए फैसले से उजागर होती है जिसमें काल केबल्स ने अपना परमिट रद्द करने को लेकर याचिका दायर की थी। फैसले में न्यायालय ने मुख्यरूप से कहा कि गृह मंत्रालय ने लाइसेंस रद्द करते हुए काल केबल्स को अवसर देने के मामले में उसकी उपेक्षा की है।


इस आशय से लगता है कि फैसला मारन के पक्ष में है। वास्तव में इस फैसले की हकीकत इसके बिल्कुल विपरीत है। अटॉर्नी जनरल की राय से लगता है कि उन्हें जो अवगत कराया गया या उन्होंने जो फैसला पढ़ा वह केवल फैसले की ऊपरी बात ही थी, जिससे यह प्रतीत होता है कि हाई कोर्ट ने गृह मंत्रालय के विरूद्ध फैसला दिया है। निस्संदेह न्यायाधीश रामसुब्रमण्यम का यह फैसला कानून के सभी पक्षों के मद्देनजर बहुत ही अच्छा फैसला है।


यदि उस फैसले को पढ़ा जाए तो स्पष्ट होगा कि न्यायाधीश ने मारन की भी भूमिका को लेकर किस तरह के सवाल खड़े किए हैं? इस बारे में अटॉर्नी जनरल ने कोई राय व्यक्त नहीं की। वास्तव में तो न्यायालय ने दयानिधि मारन की भूमिका को लेकर इतने कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया कि उन्हें इस फैसले के संदर्भ में अपने नाम को हटाने के लिए अपील तक दायर करनी पड़ी।


मैं अटॉर्नी जनरल से पूछना चाहता हूं कि क्या आपको इन सब के बारे में जानकारी थी? शायद आपको यह जानकारी नहीं थी क्योंकि आपने अपनी राय में साफ कहा है कि आपको याचिका के बारे केवल सूचित किया गया था।

कहां खोये रहे दस्तावेज


फैसले में सर्वप्रथम तो काल केबल्स को वास्तविक परमिट दिए जाने को गलत बताया गया। न्यायाधीश ने कहा कि सरकार इस मामले में काल केबल्स के खिलाफ कार्रवाई कर सकती थी।


कोर्ट ने दो शुरूआती तथ्यों को इंगित किया, शायद अटॉर्नी जनरल उस पर ध्यान नहीं दे पाए। पहला तो यह कि काल केबल्स को केवल अस्थायी लाइसेंस दिया गया, जिसकी शर्त थी कि वह सुरक्षा से संबंधित प्रमाणपत्र प्राप्त करेगी लेकिन उसने ऎसा नहीं किया और यह 2006 से केबल नेटवर्क संचालित करती रही।


दूसरा तथ्य तो और भी चौंकाने वाला है। काल केबल्स की वह फाइल जिसमें उसके अस्थायी लाइसेंस को जारी करने में, सुरक्षा संबंधी प्रमाणपत्र हासिल करने की शर्त का जिक्र था, गायब ही हो गई। यह फाइल गृह मंत्रालय तक पहुंची ही नहीं।


यह फाइल सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में सात साल यानी 2006 से 2013 तक पड़ी रही। इसका अर्थ यह हुआ कि यूपीए सरकार के 10 साल के कार्यकाल में से पांच साल तो मारन मंत्री रहे और इन्हीं 10 वर्षो में उनकी पार्टी यूपीए में सहयोगी भी रही।

इस दौरान सरकार काल केबल्स को सुरक्षा संबंधी प्रमाणपत्र नहीं दे सकी। जरा सोचिए क्यों? वह फाइल गृह मंत्रालय से छिपाई जाती रही। पहले इन प्रश्नों का उत्तर पता किया जाना चाहिए। अटॉर्नी जनरल जिनका मानना है कि यह फैसला मारन के पक्ष में है, ऎसा लगता है कि वे इन तथ्यों से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं।


2006 में इस कंपनी को किस तरह से लाइसेंस मिला और किस तरह से सात साल तक सुरक्षा प्रमाणपत्र हासिल करने के लिए गृह मंत्रालय तक फाइल पहुंचाई ही नहीं गई, इस पर न्यायालय ने कहा कि सरकार इस पर कार्रवाई कर सकती थी। इसीलिए अटॉर्नी जनरल साहब से मेरा सवाल है, क्या आप इस तथ्य को जानते थे और क्या अब भी आप मारन के खिलाफ कार्रवाई के लिए कोर्ट के फैसले का समर्थन नहीं करेंगे?

छिपाई प्रमाणपत्र की बात


टीवी नेटवर्क और केबल के संबंधित कानूनों को 2011 में संशोधित करते हुए दोनों ही प्रकार के व्यापार के लिए पंजीकरण से पूर्व सुरक्षा लाइसेंस प्राप्त करना अनिवार्य किया गया। लेकिन, जो इस व्यापार में पहले से ही हैं, उनके लिए यह सुविधा भी दी गई कि उन्हें जितने समय के लिए लाइसेंस प्राप्त है, उतने समय तक के लिए उन्हें पंजीकृत ही समझा जाएगा।


काल केबल्स जिसने 29 सितंबर 2016 तक के लिए अस्थायी लाइसेंस हासिल किया था, उसे कानून के नए प्रावधानों के तहत पंजीकृत ही माना जाए, इसके लिए आवेदन किया। 18 दिसंबर 2012 को दिए गए आवेदन में कहा गया कि कंपनी ने मंत्रालय से निर्धारित अनुमति प्राप्त की हुई है।


साथ में यह हलफनामा भी दिया गया कि कंपनी सरकार के कानून, नियमों, आदेशों और निर्देशों की अनुपालना भी कर रही है। काल केबल्स की यह अनुमति की बात केवल धोखाधड़ी ही थी क्योंकि सुरक्षा संबंधी प्रमाणपत्र हासिल करने की बात की अनुपालना नहीं की गई थी। इसके साथ ही वह हलफनामा भी झूठा ही था कि यह कंपनी कानून, नियमों और निर्देशों की अनुपालना कर रही है।

इसके बावजूद 19 जून 2012 को दस साल के लिए बिना किसी सुरक्षा संबंधी प्रमाणपत्र हासिल किए काल केबल्स को 30 सितंबर 2006 से पंजीकरण की मान्यता मिल गई।


उच्च न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर फैसले में कहा कि सुरक्षा संबंधी प्रमाणपत्र की आवश्यकता शुरूआत से ही नियमों में थी लेकिन काल केबल्स ने इस आवश्यकता को दरकिनार किया और इसके लिए गृह मंत्रालय के पास फाइल भेजी ही नहीं। कृपया बताएं अटॉर्नी जनरल साहब कि क्या आप न्यायालय द्वारा मारन के खिलाफ कार्रवाई के सुझाव को मानने की सिफारिश नहीं करेंगे?

सुरक्षा का खतरा


अटॉर्नी जनरल ने अपनी राय में यह तो लिखा है, कलानिधि मारन के घर पर सन टीवी की सेवाओं के लिए 300 टेलीफोन लाइन लगाने और इसके जरिए 443 करोड़ रूपए का आर्थिक लाभ उठाने के मामले पर दयानिधि मारन के खिलाफ सीबीआई जांच चल रही है।


लेकिन, उन्होंने इस मामले को आर्थिक अपराध कहकर खारिज भी कर दिया। यह केवल अटॉर्नी जनरल का या फिर केवल गृह मंत्रालय का ही दृष्टिकोण था? यदि नहीं, तो क्या आपको इस आशय की जानकारी है अटॉर्नी जनरल कि दूरसंचार विभाग खुद अवैधानिक टेलीफोन एक्सचेंजों को देश की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा मानता है।

यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि दयानिधि मारन के दूरसंचार विभाग के मंत्री बनने से ठीक एक साल पहले 26 अप्रेल 2003 को एक बैठक में इस आशय की चर्चा हुई थी कि अवैधानिक टेलीफोन एक्सचेंज किस तरह से देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। इस बैठक की अध्यक्षता दूरसंचार विभाग के सचिव ने की थी और इंटेलीजेंस एजेंसियों के साथ सेल्युलर ऑपरेटरों ने इसमें भाग लिया था। इसी बैठक के आधार पर 24 मई 2010 को टेलीकॉम अपीलेट ट्रिब्यूनल ने फैसला दिया, अवैधानिक दूरसंचार सेवाओं का संचालन देश की सुरक्षा के दृष्टिकोण बहुत ही गंभीर बात है।


इस गंभीर çंचंता वाले विषय के मद्देनजर ऎसी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए कड़े उपाय शुरू किए जाने चाहिए। अटॉर्नी जनरल साहब, क्या आपके ध्यान में ये सब बातें भी लाई गईं थीं।

काल केबल्स की वह फाइल जिसमें उसके अस्थायी लाइसेंस को जारी करने में, सुरक्षा संबंधी प्रमाणपत्र हासिल करने की शर्त का जिक्र था, गायब ही हो गई। फाइल गृह मंत्रालय पहुंची ही नहीं। इसीलिए अटॉर्नी जनरल साहब से मेरा सवाल है, क्या आप इस तथ्य को जानते थे और क्या अब भी आप मारन के खिलाफ कोर्ट के फैसले का समर्थन नहीं करेंगे?


टेलीकॉम विभाग के मंत्री द्वारा गुप्त टेलीफोन एक्सचेंज का संचालन क्या अवैधानिक नहीं है? क्या यह विषय तब भी और गंभीर नहीं हो जाता कि इस मामले को दबाया और छिपाया भी गया? यह मामला इसलिए भी बेहद गंभीर है कि दूरसंचार विभाग के मंत्री द्वारा इन तथ्यों को जानबूझकर छिपाया गया।


764 हाई स्पीड लाइन जो बिना किसी निगरानी के गुपचुप तरीके से लाखों दस्तावेज, ऑडियो, वीडियो अन्यत्र भेज सकती हैं, का संचालन ऎसे व्यक्ति द्वारा किया जाना जिसके मंत्रालय के 2003 के फैसले के मुताबिक जिस पर देश की सुरक्षा का जिम्मा है, क्या अपराध को और गंभीर नहीं बनाता है? क्या आपको भारतीय टेलीग्राफ नियम, 1951 की जानकारी नहीं थी?

इस तरह से निजी से आमजन और आमजन से निजी स्तर पर संचार सेवा चलाना देश की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकते हैं? मारन की 764 आईएसडीएन लाइनों ने यही किया। क्या अब भी आप यह नहीं कहेंगे कि इसमें देश के लिए खतरे जैसी कोई बात नहीं है। क्या अब भी आप इस मामले में राष्ट्रीय सुरक्षा का उल्लंघन हुआ या है या नहीं, इसकी जांच की सिफारिश नहीं करेंगे?

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