पाक अधिकृत कश्मीर से विस्थापित होकर आए लोगों को केंद्र सरकार दो हजार करोड़ का पैकेज देने की तैयारी कर रही है। यह पैकेज प्रभावित लोगों तक पहुंचाया जाना है। पैकेज में रखी गई राशि से किस तरह से इन लोगों को लाभान्वित किया जाएगा यह अभी तय होना बाकी है, लेकिन सरकार के इस कदम को उसकी नई कूटनीति का हिस्सा समझा जाना चाहिए।
विभाजन की त्रासदी के गहरे जख्म इन विस्थापितों पर आज तक हैं। जाहिर है कि इन्हें जो भी मदद दी जाएगी उनसे इनके घावों पर महरम लगाने का काम होगा। विभाजन के उस दौर पर हम नजर डालें तो सबको पता है कि पाकिस्तान से संपूर्ण कश्मीर पर कब्जा करने की पूरी कोशिश की थी। वर्ष 1947 में पाकिस्तान के पख्तून कबाइलियों ने जम्मू-कश्मीर पर हमला बोल दिया था। इसके बाद जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरिसिंह ने भारत सरकार के साथ समझौता किया जिसके तहत भारत सरकार से सैन्य सहायता मांगी गई और इसके बदले में जम्मू-कश्मीर को भारत में मिलाने की बात कही गई। भारत ने इस समझौते पर दस्तखत कर दिए।
पाकिस्तान से हुई लड़ाई के बाद कश्मीर 2 हिस्सों में बंट गया। कश्मीर का जो हिस्सा भारत से लगा हुआ था, वह जम्मू-कश्मीर नाम से भारत का एक सूबा हो गया, वहीं कश्मीर का जो हिस्सा पाकिस्तान और अफगानिस्तान से सटा हुआ था, वह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर कहलाया। वैसे तो भारत शुरू से ही पाक अधिकृत कश्मीर को भारत का हिस्सा बताता रहा है। संपूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा होना चाहिए यह बात रस्मी तौर पर तो कई बार कही गई, लेकिन पहली बार ऐसा हुआ है जब केंद्र सरकार ने बुनियादी तौर पर पाक अधिकृत कश्मीर पर भी अपना हक जताया है।
ऐसे में अपना दावा मजबूत करने के लिए वह पाक अधिकृत कश्मीर से आए विस्थापितों की मदद भी कर रही है। यूं कहा जाना चाहिए कि इस दिशा में अब तेजी से कोशिशें हो रही हैं। दूसरी ओर पाकिस्तान की मंशा है कि वह समूचे कश्मीर को ही अपना हिस्सा बना ले। पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के पिछले दिनों दिए गए बयान ने भी इस मंशा को जाहिर कर दिया है।
इसी मंशा को पूरी करने के लिए पाकिस्तान दोनों तरफ के कश्मीरियों में पाकिस्तान के प्रति हमदर्दी बढ़ाने की कोशिशें करने में लंबे समय से जुटा हुआ है। घाटी में अलगाववाद और आतंकी घटनाएं भी पाक की इसी कुटिल चाल का हिस्सा है। दूसरी ओर पाक अधिकृत कश्मीर के इलाके की बात करें तो वहां के नागरिकों पर पाक की ओर से किए गए अत्याचार किसी से छिपे नहीं है। रही बात विकास की वहां शायद ही नजर आए। सिंध और बलूचिस्तान में भी लोग आजाद होने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
जहां तक मैं समझता हूं, भारत सरकार ने पीओके से आए विस्थापितों को राहत पैकेज देकर एक तरह से पीओके में प्रताडि़त लोगों की आवाज बनने का काम किया है। ऐसे में विस्थापितों की मदद करना समचमुच अच्छी पहल कहा जाना चाहिए। हम इन प्रयासों ने पीओके से पाकिस्तान का कब्जा हटा पाएंगे-इस बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगा। दो-तीन हजार करोड़ के राहत पैकेज से कोई फर्क भी नहीं पडऩे वाला। लेकिन एक बात यह जरूर कही जाएगी कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मजबूती से यह बात कहने की स्थिति में होंगे कि पूर्ववर्ती सरकारों ने पीओके और वहां से विस्थापित होकर आए लोगों के लिए कुछ खास नहीं किया।
आज हम यह महसूस कर रहे हैं कि पीओके में लोगों को सियासी हक भी पूरे नहीं मिल पाए हैं। पाकिस्तान ने वहां के लोगों को सेना के दम पर दबा रखा है। जो पैकेज पीओके के विस्थापितों के लिए घोषित किया गया है उसे सही लोगों तक पहुंचाना भी बड़ा काम होगा। जिन्हें मदद चाहिए उनकी पहचान करना और हकदारों को संबंधित सहायता पहुंचाना आसान काम नहीं है। सरकार को इस काम में पारदर्शिता बरतनी होगी। पश्चिमी पाकिस्तान और ज्यादातर पीओके से आए शरणार्थी जम्मू, कठुआ और राजौरी जिलों के अलग-अलग हिस्सों में बसे हैं।
इन्हें इतने साल बाद भी लोकतांत्रिक हकों से वंचित रहना पड़ रहा है। बहरहाल, भारत पीओके को लेकर विश्व समुदाय में अपनी बात पहुंचाने मे सफल होता दिख रहा है। साथ ही यह घाटी में पाक प्रायोजित आतंकवाद और अलगाववाद को भी जवाब देने की कोशिश है। दरअसल, अब यह विशुद्ध रूप से राजनीतिक मसला भी हो गया है जिसके जरिए केंद्र सरकार कश्मीर को लेकर अपनी नीति स्पष्ट करने में जुटी है। यह बात भी कहनी होगी कि जंग किसी समस्या का हल नहीं है और शिमला समझौते के तहत दोनों देश इस बाद पर सहमत भी हुए हैं।
फिलहाल, कश्मीर और पीओके में जो हालात हैं उसे देखकर लगता नहीं कि भारत के प्रयासों का कुछ खास असर हो पाएगा। लेकिन भारत के लिए यह माहौल बनाने का यह सही वक्त है कि वह कश्मीर के मसले को ज्यादा समय तक लटकाए नहंीं रखना चाहता। पाकिस्तान, हमारे इन प्रयासों से अलग-थलग पडऩे लगेगा तो भारत को स्वत: ही मजबूती मिलेगी।