script

सरकार में नहीं आत्मबल

Published: Jul 30, 2015 12:04:00 am

आशंका है कि शेयर बाजार में “पार्टिसिपेटरी
नोट्स” के जरिये बड़ी मात्रा में काले धन का निवेश हो रहा है।

Supreme Court

Supreme Court

आशंका है कि शेयर बाजार में “पार्टिसिपेटरी नोट्स” के जरिये बड़ी मात्रा में काले धन का निवेश हो रहा है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित विशेष जांच दल ने इसकी रोकथाम के लिए इस निवेश में पारदर्शिता की सिफारिश की है। इसके बाद शेयर बाजार सोमवार को 500 अंक से ज्यादा लुढ़क गया।


बाजार को संभालने के लिए वित्त मंत्री अरूण जेटली को कहना पड़ा कि इस मामले में कोई जल्दबाजी नहीं की जाएगी। इससे बाजार संभले जरूर लेकिन यह संभावना कायम है कि पी नोट्स के जरिये निवेशकों की पहचान को लेकर नियम सख्त किए जाएंगे।


पर क्या सरकार में इतना आत्मबल है कि वह पी नोट्स पर अंकुश लगाने की दिशा में कुछ कदम उठा सके? अगर हां, तो क्या हो तरीका? ऎसे ही सवालों पर पढिए आज के स्पॉट लाइट में जानकारों की राय…

राजेश रपरिया वरिष्ठ पत्रकार


सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल की ओर से पार्टिसिपेटरी नोट्स (पी नोट्स) को लेकर की गई सिफारिशों के परिणामस्वरूप, बीते सोमवार को शेयर बाजार औंधे मुंह आ गिरा। इस जांच दल ने पी नोट्स को देश में अवैध पूंजी के लाने का माध्यम बताया और इसे नियंत्रित करने के लिए नियमों को कड़ा करने की बात कही।


विशेष जांच दल ने सेबी से कहा कि वह पी नोट्स के जरिये निवेश के असली हितग्राहियों को पहचानने के तरीके सुनिश्चित करे। इस संदर्भ में इस परिपत्र के हस्तांतरण पर भी अंकुश लगाए।


उल्लेखनीय है कि पी नोट्स के जरिये व्यक्तिगत निवेशक सेबी में पंजीकृत विदेशी संस्थागत निवेशकों के माध्यम से निवेश करते हैं और ऎसे में असली निवेशक का चेहरा सामने नहीं आ पाता है।


लेकिन, अब निवेशकों को डर लग रहा है कि भारत सरकार पी नोट्स के जरिए निवेश करने वालों का पूरा ब्यौरा मांगेगी।

काला धन और पी नोट


इसमें दो राय नही ंहै कि शेयर बाजार अवैध या कालेधन को व्याापार में लगाने का बड़ा ठिकाना बने हुए हैं। पहली एनडीए की सरकार ने ऎसे निवेशकों को लेकर नियमों में काफी ढील दी थी।


नतीजतन मॉरीशस रूट के माध्यम से भारी मात्रा में विदेशी निवेश देश के शेयर बाजार में आने लगा। तब भी यह आशंका व्यक्त की गई थी कि पी नोट्स काले धन को वापस लाने का बडा जरिया बनता जा रहा है।


उल्लेखनीय है कि 2007 में विदेशी संस्थागत निवेशकों के जरिए होने वाले निवेश पोर्टफोलियो में पी नोट्स की हिस्सेदारी 50 फीसदी तक पहुंच गई थी।


तब सेबी ने कुछ प्रतिबंध अक्टूबर 2007 में लगाए थे और इसके बाद ही दो-तीन दिनों में शेयर बाजार 9 फीसदी तक नीचे आ गया था। लेकिन, 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट के चलते पी नोट्स की तरफ से आंखे बंद कर ली गईं। अब विशेष जांच दल की सिफारिशों के भय के चलते, इस बार भी शेयर बाजार बीते सोमवार को दो फीसदी तक लुढ़क गया।


ऎसे में राजस्व सचिव शक्तिकांत ने आश्वस्त किया कि विशेष जांच दल की सिफारिशों पर कोई भी फैसला सेबी, रिजर्व बैंक व अन्य वित्तीय संस्थाओं के साथ विचार-विमर्श के बाद ही किया जाएगा। दूसरी ओर वित्त मंत्री अरूण जेटली को बयान देकर विदेशी निवेशकों को भरोसा देना पड़ा कि जल्दबादी में सरकार इन सिफारिशों पर कोई फैसला नहीं लेगी।

उन्होंने यह भी कहा कि सरकार क्या दृष्टिकोण अपनाती है, यह कहना जल्दबाजी होगी लेकिन सरकार ऎसा कोई कदम नहीं उठाएगी कि शेयर बाजार को तगड़ा झटका लगे और निवेश का माहौल बिगड़ जाए।


फिलहाल संभव नहीं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकास मॉडल विदेशी पूंजी की बैसाखी पर खड़ा है। विदेशी निवेशकों की नाराजगी सरकार मोल नहीं ले सकती। फिर, वर्तमान में विश्व स्तर पर निवेश का माहौल काफी अस्थिर बना हुआ है। चीन के शेयर बाजार में भी तेज घट-बढ़ हो रही है। अमरीकी फेडरल रिजर्व के मौद्रिक नीति की तलवार हमेशा भारत पर लटकी रहती है। ऎसे में देश से विदेशी पूंजी का निकास सरकार की अन्य महत्वाकांक्षी योजनाओं की चूलें हिला सकता है।


वहीं, केंद्र सरकार को भारी मात्रा में सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश करना है। तमाम बैंकों को पूंजी नियमों को पूरा करने के लिए सार्वजनिक निर्गम लाने हैं।


ऎसे में पी नोट्स संबंधी सिफारिशों को लागू करने से यदि शेयर बाजार गिरा तो ये सभी लक्ष्य पिछड़ जाएंगे और सरकारी घाटे पर भारी दबाव बन जाएगा। जिस पर भारत की रेटिंग टिकी हुई है और इसी आधार पर विदेशी निवेशक भारतीय पूंजी बाजार में निवेश करने का निर्णय लेते हैं। विदेशी निवेशकों की पूंजी देश में आने से विदेशी मुद्रा कोष पर काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।


विदेशी मुद्रा कोष जितना बड़ा होगा,उतना ही डॉलर के सापेक्ष रूपया स्थिरता रहेगा। भारत का कच्चा तेल, सोना, खाद्य तेल और इलेक्ट्रॉनिक सामानों के आयात का बिल कितना बड़ा है।


डॉलर के सापेक्ष रूपए के कमजोर होने से ये सारे आयात महंगे हो जाते हैं। जिसका खमियाजा आम आदमी को भुगतना पड़ता है। फिलहाल सरकार में इतना आत्मबल नहीं है कि वह एसआईटी की सिफारिशें माने। वह इन्हें ठंडे बस्ते में डाल देगी।

क्या हैं पी नोट्स


पार्टिसिपेटरी नोट जिसे सामान्यत: पी नोट्स कहा जाता है, शेयर बाजार में निवेश का ऎसा जरिया है जिसमें निवेशक सेबी में पंजीकरण करवाये बिना पूंजी बाजार में धन का निवेश करता है। आमतौर पर सेबी में पंजीकृत विदेशी ब्रोकरेज फम्र्स या घरेलू ब्रोकरेज फम्र्स की विदेशी इकाइयां विदेशी निवेशक को उसके निवेश के लिए पार्टिसिपेटरी नोट जारी करती हैं। ब्रोकर भारतीय पूंजी बाजार में शेयर और डेट में खरीदारी करते हैं और विदेशी निवेशक को पी नोट जारी करते हैं।

क्यों गर्माया मुद्दा


सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित कर देश में कालेधन की रोकथाम के लिए उपाय सुझाने को कहा हैै। इस एसआईटी ने अपनी सिफारिशों में सेबी से कहा है कि पी नोट्स के माध्यम से भारतीय शेयर बाजारों में निवेश करने वालों की पहचान की जानी चाहिए और निवेश हस्तांतरण पर पाबंदी लगाई जानी चाहिए।

वर्तमान व्यवस्था


सेबी वर्तमान में पी नोट जारी करने वाली फर्म से जानकारियां ले सकती है लेकिन कई मामलों में इस तरह के निवेश की अनेक बार बिक्री की जाती है। ऎसे में पहले पी नोट हासिल करने वाले का अंतिम स्तर पर पी नोट खरीदने वाले का संपर्क खत्म सा हो जाता है।


संदेह यही है कि इस तरह की सौदेबाजी में भारी मात्रा में काले धन को खपाया जाता है। पूर्व में भी भारतीय कंपनियों पर कंपनी में निवेश के लिए पी नोट जारी करने की आशंकाएं सामने आई हैं।

जरूरी है उचित नियमन


प्रो. सीपी गुप्ता
दिल्ली विवि, दिल्ली


पी-नोट्स को लेकर जो सबसे बड़ा मुद्दा है वो है – केवाईसी अर्थात “नो योर कस्टमर” का। कोई एक आम आदमी भी अगर बैंक में खाता खोलता है तो सरकार उससे तमाम पहचान पत्र, पता आदि मांगती है, तब जाकर वह व्यक्ति बैंक में खाता खोल सकता है। पर पी-नोट्स के माध्यम से हमारे स्टॉक मार्केट में आने वाली करोड़ों-अरबों की राशि के स्रोत के बारे में सरकार को कोई जानकारी नहीं होती! इसलिए यह चिंता का विषय तो है।


सरकार ने, सेबी ने अभी तक पी-नोट्स के माध्यम से होने वाले निवेश को नियमित, नियंत्रित करने और उसमें पारदर्शिता लाने की बहुत कोशिश की है लेकिन उसमे असफल रही।

फैसला आसान नहीं


आज हमारे स्टॉक मार्केट में लगभग 2.715 लाख करोड़ रूपए हैं जो पी-नोट्स के माध्यम से आया है। इसलिए अगर अब सरकार इसके संचालन के कोई सख्त नियम बनाएगी तो इसका बाजार पर नकारात्मक असर तो होगा ही। जो पैसा इसके माध्यम से आया हुआ है वो निकलेगा। नया पैसा निवेश होना बंद हो जाएगा। पर इसका नकारात्मक असर तो अल्पकालिक ही होना चाहिए। दीर्घकालिक असर, विशेषकर छोटे निवेशकों के लिए तो सकारात्मक ही होगा।


समझने की बात है कि आखिर पी-नोट्स से जो पैसा आता है, वह हमेशा के लिए तो आता नहीं है। वह उचित मौके पर शेयर बाजार से वापस निकाल लिए जाने के लिए ही निवेश किया जाता है।


समय आ गया है कि सरकार अब पी-नोट्स की पारदर्शिता के बारे में कुछ निश्चित नियम कायदे बनाए। शेयर बाजार के गिरने के डर से आखिर कब तक हम अपनी वित्तीय बाजार की दीर्घकालिक सेहत और देश की सुरक्षा जैसे सवालों की अनदेखी करते रहेंगे। लेकिन सरकार को इस दिशा में भी कदम उठाने होंगे कि जो निवेश अभी पी नोट्स से आता है वो कहीं हवाला से आना शुरू न हो जाए।


अगर “पी नोट्स” पर सख्ती की जाती है तो उससे घरेलू निवेशकों के लिए तो फायदा ही होगा। घरेलू निवेश का माहौल भी बेहतर होगा। पर यह काम चरणबद्ध तरीके से ही किया जाना चाहिए।
टीके अरूण, वरिष्ठ पत्रकार

पी-नोट्स को नियमित तो किया जाना चाहिए, पर यह अल्पकालिक प्रक्रिया नहीं हो सकती। अगर हड़बड़ी में पी-नोट्स पर सख्ती की जाती है तो इसका बाजार पर जो असर होगा उसको झेल पाने के लिए हमारी अर्थव्यवस्था तैयार नहीं है। पर अगर सरकार यह कहे कि दो साल के अंदर सभी निवेशक जरूरी कदम उठाएं जिससे कि उनकी पहचान सुनिश्चित हो सके। तब जरूर बाजार पर न्यूनतम असर होगा। इससे बाजार में पैनिक नहीं होगा। दो साल में जिसे जाना होगा, जाएगा। रूकने वाले को संभलने का मौका मिल जाएगा।सुनील पचीसिया, वाइस प्रेसीडेेंट, प्रतिभूति विनियोग लिमिटेड

ट्रेंडिंग वीडियो