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 अब ‘बजट हलुवा’ जनवरी में… (डॉ. अश्विनी महाजन )

Published: Aug 22, 2016 10:21:00 pm

केंद्रीय बजट वित्त वर्ष समाप्ति से पूर्व ही पारित हो जाए, इसके लिए
वित्त मंत्री ने इसे जनवरी के आखिरी सप्ताह में ही पेश करने के संकेत दिए
हैं

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वित्त मंत्री अरुण जेटली की ओर से इस आशय के संकेत मिल रहे हैं कि केंद्रीय बजट पेश करने के निर्धारित महीने में बदलाव किया जा सकता है। दरअसल, उपनिवेशकाल के दौरान ऐसी परंपरा थी कि जब वहां पर बजट पेश हो जाता तो भारत में उसके बाद ही शाम को बजट पेश किया जाता था।

स्वतंत्र भारत में फरवरी के आखिरी कार्यदिवस पर बजट पेश करने की शुरुआत हुई। लेकिन, समय में किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया। यह ब्रिटिश काल की यह परंपरा 1999 तक बनी रही। वर्ष 2000 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में ब्रिटिश काल की इस परिपाटी को समाप्त करने का फैसला किया। तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने सुबह 11 बजे बजट पेश करने की शुरुआत की।

अब केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली चाहते हैं कि केंद्रीय बजट फरवरी के आखिरी कार्यदिवस की बजाय जनवरी के अंतिम सप्ताह में पेश किया जाए। भारत में बजट तैयारियां सितंबर से शुरू होती हैं और इसकी छपाई के साथ ही वित्त मंत्री हलवा बांटते हैं, यानी इस बार जनवरी में ही हलवा बांटने की तैयारी है।

किसी भी बजट में आगामी वित्त वर्ष के बजट अनुमान प्रस्तुत किए जाते हैं। इसका अर्थ है कि आने वाले वित्त वर्ष के दौरान सरकार के लिए राजस्व कैसे जुटाया जाएगा और किन मदों पर कितना खर्च किया जाएगा, इसका लेखा-जोखा बजट में बतलाया जाता है। इसके अलावा पिछले वर्ष के वास्तविक आंकड़े और चालू वर्ष के वर्ष के संशोधित अनुमान भी पेश किए जाते हैं। चूंकि भारत में वित्त वर्ष की शुरुआत पहली अप्रेल से होती है इसलिए ऐसा समझा जाता है कि फरवरी तक बजट के पर्याप्त अनुमान लग जाते हैं।

इससे आगामी बजट बनाने में सरकार को काफी सुविधा होती है। भारत में बजट पेश करने के बाद संसद स्थगित हो जाती है और फिर कुछ समय पश्चात बजट सत्र की फिर से शुरुआत होती है तो बजट पर संसद में बहस होती है। काफी बहस और आवश्यक रद्दोबदल के बाद बजट मई और जून तक पारित हो पाता है। यद्यपि इससे पूर्व पहली अप्रेल से ही बजट प्रावधान लागू हो जाते हैं।

फिलहाल केंद्र सरकार की ओर से यह तर्क दिया जा रहा है कि जनवरी में केंद्रीय बजट पेश करने से उसे तैयारियों के लिए बेहतर समय मिल सकेगा। कई बार उसे वित्त वर्ष में एक-दो महीने के लिए लेखानुदान की भी आवश्यकता होती है। सरकार चाहती है कि वित्त वर्ष समाप्ति यानी 31 मार्च से पूर्व ही वह सारी तैयारियां आसानी से कर सके। इन सारी परिस्थतियों अलावा सरकार यह तर्क भी दे रही है कि जनवरी में बजट पेश करने के लाभ आम करदाता को भी मिल सकेगा। वह वित्त वर्ष के संदर्भ में कर अदायगी के लिए बेहतर तरीके से योजना बना सकेगा।

बजट बनाना पहले की अपेक्षा और अधिक जटिल हो गया है। इसमें केवल राजस्व और सार्वजनिक व्यय का लेखा-जोखा ही नहीं होता आगामी वर्ष के लिए सरकार की आर्थिक नीति की घोषणा भी होती है। जो योजनाएं चल रही हैं, उनकी मद में कितना खर्च हुआ और कितना नहीं हुआ, इसका उचित विश्लेषण भी करना होता है।

इन्ही सब के संदर्भ में बजट अनुमानों को बदलना पड़ता है। यदि सरकार ने जनवरी के आखिरी सप्ताह में बजट पेश किया तो उसे नीतिगत बदलाव और आवश्यक कानूनी संशोधनों के लिए और अधिक समय मिल सकेगा। जितनी जल्दी बजट पेश किया जाएगा उतनी जल्दी ही संसद द्वारा बजट का अनुमोदन भी पहले ही किया जा सकेगा।

यदि सरसरी नजर से देखें तो बजट को एक महीने पहले पेश करने से कुछ सुविधा तो जरूर होगी। अलबत्ता, ऐसे कर्मचारी और नौकरशाह जो बजट बनाने की प्रक्रिया में जुटते हैं, उन्हें बजट बनाने में कुछ जल्दी ही जुटना होगा। जहां तक इस बार के बजट का सवाल है तो यह सही है कि सरकार ने गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) को लागू करने के मामले में आधी घाटी पार कर ली है। लेकिन, अब भी बहुत से कानूनी बदलाव उसे करने पड़ सकते हैं।

सरकार का इरादा है कि वह पहली अप्रेल के साथ ही इसे लागू कर दे और कुछ समय के बाद ही इसमें कोई परिवर्तन करने को बाध्य न होना पड़े। इन सारी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सरकार एक महीने पहले ही बजट पेश करना चाहती है। लेकिन, एक सवाल यह भी है कि क्या घड़ी की सुइयां कुछ मिनट आगे कर लेने से क्या किसी स्थान पर सही समय पर पहुंचा जा सकता है?

इस बात से कभी कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि हकीकत में सभी को पता होता है कि समय से कितना आगे चल रहे हैं। ऐसा लगता है कि सरकार खुद को और आम करदाता की सुविधा के तर्क के नाम पर सिर्फ मनोवैज्ञानिक लाभ ही देना चाहती है। इसीलिए मुझे लगता है कि एक महीने पहले बजट पेश करने का विशेष लाभ तब ही होगा, जबकि सरकार काम की गति को तीव्र करेगी। यूं कामकाज की जो गति है, उसमें एक माह पूर्व बजट पेश करने से कोई हानि भी नहीं है।
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