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ओपिनियन

अब चीन की बारी!

मोदी को जानकारी थी कि चीन संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा
परिषद में हमारी स्थायी सदस्यता का समर्थक नहीं रहा है। उसके हमारे पड़ोसी देश
पाकिस्तान से भी अच्छे संबंध हैं।

May 19, 2015 / 10:41 pm

शंकर शर्मा

Modi

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कविता पाठक, टिप्पणीकार
हाल ही में हिमालय से सटी एशिया की दो महाशक्तियां सीमा विवाद जैसे मुद्दों को लेकर आमने-सामने थीं। छिटपुट गोलीबारी की घटनाओं की बात छोड़ दें तो दोनों ही देश वर्षो से एक दूसरे पर अपनी जमीनों को हड़प लेने का आरोप लगाते हुए सीमा पर युद्धपूर्ण स्थितियों को झेल रहे थे। इस बीच दोनों के बीच संदेह और अविश्वास का पनपना लाजिमी ही था। लेकिन, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जबर्दस्त प्रयासों के बाद चीन के साथ संबंध बेहतर होने की शुरूआत हुई है।

प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा की शुरूआत के पहले दिन ही हालांकि चीन सरकार के आधिकारिक टेलीविजन चैनल सीसीटीवी ने जम्मू-कश्मीर और अरूणाचल प्रदेश को भारतीय मानचित्र से हटाते हुए भारतीय मानचित्र दर्शाकर विवाद को बढ़ाने की कोशिश की। पूर्व में गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर चीन की चार बार सफल यात्रा कर चुके मोदी ने इस बार जब प्रधानमंत्री के तौर पर इस देश की धरती पर कदम रखा तो उन्हें विश्वास था कि उनके मैत्री पूर्ण भाव से वे दुनिया की सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश के लोगों का दिल जीत लेंगे। काफी हद तक अपने इस मिशन में वे कामयाब भी हुए। चीन के प्रधानमंत्री ली केक्यिांग के साथ खींची गई सेल्फी को जब उन्होंने सोशल नेटवर्किग साइट पर पोस्ट किया तो चीन की सोशल नेटवर्किग साइट पर 40 हजार से ज्यादा बार शेयर किया गया।

दिया ई-वीजा का तोहफा
मामला यहीं पर नहीं थमा, मोदी ने चीन के लोगों को ई-वीजा सुविधा की घोषणा कर सभी को स्तंभित कर दिया। इस घोषणा के स्वागत से हुए व्यापक शोर से पूर्व इसी मामले के संदर्भ में सुरक्षा को लेकर उठी चिंताओं की ओर ध्यान नहीं गया। अलबत्ता, विदेश सचिव एस. जयशंकर ने कहा कि इस मामले पर अभी तक फैसला नहीं हुआ है। गृह मंत्रालय और सुरक्षा एजेंसियों ने इस सुविधा के दुरूपयोग की आशंका जताई थी। अपेक्षा के मुताबिक भारत में इस मामले पर तीखी प्रतिक्रिया होनी स्वाभाविक है। कांग्रेस के प्रवक्ता आरपीएन सिंह ने तो कह ही दिया है कि कूटनीति देन-लेन के आधार पर की जाती है। ऎसे में चीन के नागरिकों को ई-वीजा की सुविधा देना समझ में नहीं आता है। खासतौर पर तब जबकि चीन हमारे साथ विवादित मामलों में पीछे हटने को जरा सा भी तैयार नहीं है। वह जम्मू-कश्मीर और अरूणाचल प्रदेश के नागरिकों को स्टेपल वीजा दे रहा है।

दोनों देशों के बीच रिश्तों में यह गर्माहट किसी कमजोरी की वजह से नहीं आई है। ऎसा नहीं है कि चीन की अर्थव्यवस्था भारत की अर्थव्यवस्था के मुकाबले पांच गुना बड़ी है इसलिए मोदी चीन में अपने समकक्ष को तुष्ट करने की कोशिश कर रहे थे। हकीकत यह है कि मोदी अंदर ही अंदर इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि वे चीन के नागरिकों के लिए क्या दे रहे हैं? चीन 77 वां देश होगा जिसे ई-वीजा की सुविधा दी जा सकेगी और देश में इस सुविधा के मद्देनजर सुरक्षा को लेकर पर्याप्त इंतजाम हैं।

यात्रा की शुरूआत से पहले ही मोदी को जानकारी थी कि उनके सामने क्या चुनौतियां हैं और क्या लक्ष्य हैं जिन्हें हासिल करना है। चीन संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भारत स्थायी सदस्यता के समर्थन में नहीं रहा है, हमारे दूसरे पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ उसके नजदीकी रिश्ते भी हैं और चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा पिछले साल बढ़कर 48 अरब डॉलर के स्तर पर आ गया था। भारतीय दवा उद्योग, कृषि, सूचना प्रौद्योगिकी सहित विभिन्न प्रकार के व्यापार संबंधी कार्य के लिए चीन के बाजार अब तक नहीं खुले हैं। इसी तरह न्युक्लियर सप्लायर ग्रुप में भारतीय सदस्यता को लेकर भी बाधाएं हैं।

1962 के युद्ध का साया
बीते दिनों के नारे “हिंदी चीनी भाई-भाई” तत्काल बाद ही 1962 के युद्ध ने दुनिया की दो पुरानी सभ्यताओं के संबंधों को तहस-नहस कर डाला था। इसी की छाया आज भी दोनों देशों के बीच आर्थिक और राजनीतिक मुद्दो पर बातचीत पर मंडराती रहती है और यही दोनों के बीच अविश्वास की जन्मदाता भी है। भारत 38 हजार किलोमीटर के सीमा क्षेत्र पर अपना दावा करता है जबकि चीन 90 हजार किलोमीटर क्षेत्र पर अपना दावा करता है।

दोनों देशों के बीच संबंधों के मामले में इस विवाद को निपटाना सबसे बड़ी चुनौती है। ये वे मुद्दे हैं, जिन्हें मोदी ने बिना किसी लाग-लपेट के उठाया। हमारे रूस और अमरीका के साथ मजबूत रिश्तों के अलावा जापान व कोरिया के साथ मधुर संंबंध व आर्थिक व निवेश के समझौतों को उजागर करते हुए मोदी ने चीन की यह यात्रा की। वे अपनी स्थिति को मजबूती के साथ रखते हुए दिखाई देते हैं।

मोदी और ली ने दोनों देशों के बीच 90 मिनट की बैठक में सीमा विवाद, व्यापार, आतंकवाद, निवेश, वातावरण परिवर्तन, बाजार के खुलेपन और संयुक्त राष्ट्र के सुधार आदि विभिन्न मुद्दों सहित अनेक विषयों पर बात की। मोदी ने सीधे बात रखते हुए कहा कि भारत और चीन दोनों के ही पिछले कुछ दशकों से काफी जटिल संबंध रहे हैं लेकिन दोनों देशों का यह ऎतिहासिक उत्तरदायित्व है कि वे अपने संबंधों को एक दूसरे की ताकत के स्त्रोत बनाएं और बेहतर दुनिया बनाएं। यह सही है कि चीन की महत्वाकांक्षा यदि वैश्विक शक्ति बनने की है तो उसे भारत के साथ मजबूत संबंध करने आवश्यक हैं। जो न केवल बड़ा बाजार है बल्कि यहां निवेश की अपार संभावनाएं हैं।

व्यापार घाटे की भी चिंता
जहां तक भारत का सवाल है तो वह चीन की ओर से बड़े बदलाव का इच्छुक है। इस बात को मजबूती से उठाते हुए भारत के प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि दोनों देशों को एक दूसरे के हितों के प्रति संवेदशील होने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि तनाव उत्पन्न करने वाले मुद्दों खासतौर पर वीजा नीतियों और सीमा के आर-पार बहने वाली नदियों के मामले में सृजनात्मक हल तलाशने की भी आवश्यकता है। मोदी ने चीन के अपने समकक्ष को वास्तविक नियंत्रण रेखा को फिर से स्पष्ट करने की शुरूआत का प्रस्ताव भी दिया।

उन्होंने कहा, “हम अपनी स्थितियों को बिना किसी पूर्वाग्रह के स्पष्ट कर सकते हैं। यदि हमें किसी सामान्य से अधिक साझेदारियों की तरफ आगे बढ़ना है तो हमें अपने संदेहों और हिचकिचाहट को दूर करना होगा। अविश्वास को संबंधो से दूर करना होगा।” अपनी विशिष्ट शैली में मोदी ने पाकिस्तान का नाम लिये बिना ही अपने समकक्ष को स्पष्ट रूप से कहा कि भारत और चीन दोनों ही बढ़ते अतिवाद और आतंकवाद से जूझ रहे हैं जिसके सूत्रधार इसी क्षेत्र में हैं। मोदी की इस यात्रा से हमें क्या मिला तो इस बारे में संक्षिप्त में यही कहा जा सकता है कि हमें सैन्य मामलों में लगातार बातचीत का अवसर मिल गया है।

हम व्यापार घाटा पाटने के साथ सीमा विवाद को सुलझाने की दिशा में आगे बढ़ सके हैं। बीजिंग के अलावा चीन में अन्यत्र जैसा मोदी का स्वागत हुआ वैसा शायद ही किसी अन्य देश के प्रमुख नेता का हुआ हो। दोनों नेताओं के अनौपचारिक रिश्ते और बढ़ते सबंध इस बात का प्रमाण हैं कि भारतीय नेता की यात्रा कितनी महत्वपूर्ण रही।

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब आठ महीने पहले भारत आए थे तो उस समय करीब 20 अरब डॉलर के निवेश समझौते किए गए थे। हालांकि इन समझौतों का क्रियान्वयन कुछ मंद जरूर रहा है लेकिन इस बार भी करीब 20 अरब डॉलर के समझौतों का मतलब कुछ अन्य है। इसका सीधा अर्थ भारतीय कंपनियों को भी चीन के बाजार में प्रवेश और व्यापार का बराबर से मौका मिले। रेलवे, शिक्षा, स्मार्ट शहर बनाने और दूतावास कार्यालयों की संख्या बढ़ाने को लेकर समझौते हुए। चीन और भारतीय उद्यमियों के बीच 10 अरब डॉलर के निवेश संबंधी समझौते भी किए गए।

भारत होगा मजबूत सहयोगी
फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि चीन की यात्रा के दौरान मोदी का प्रदर्शन कमाल का रहा और इसके प्रभाव का जहां तक सवाल है तो उसे स्पष्ट होने में अभी समय लगने वाला है। जैसा कि कहा जाता है कि बेहतर शुरूआत का अर्थ आधा काम हो जाना होता है। विश्वविद्यालय में और मीडिया के साथ बातचीत में मोदी ने विवादित विषयों को और अधिक स्पष्ट तरीके से उठाया। उन्होंने अपनी रणनीति और प्रस्तावों को साफगोई के साथ बताया। भारत के अमरीका और जापान के साथ संंबंधों के मद्देनजर चीनी नेतृत्व को चिंता रही है कि विवाद के मुद्दों के बीच किसी तीसरे पक्ष की सहायता नहीं ली जाए। मोदी ने अपनी बात को पूरी सजगता के साथ रखा।

अब खाका खींचा जा चुका है। मोदी ने निजी तौर पर आग्रह किया है दोस्ताना संबंधो को बढ़ाने का और ई-वीजा के मामले में बड़ा दिल दिखाते हुए उन्होंने संदेश दिया है कि भारत चीन का मजबूत सहयोगी हो सकता है। अब चीन की बारी है। अब देखना यह दिलचस्प होगा कि मोदी का जादू तब कितना काम करेगा जबकि भारत संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद मे स्थायी सदस्यता के लिए चीन से समर्थन मांगेगा, जम्मू-कश्मीर और अरूणाचल प्रदेश की सीमाओं पर होने वाले विवादों को समाप्त करने की बात करेगा और वीजा संबंधी अन्य मसलों पर उससे बात करेगा।

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