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अब किसान जाग गया है

Published: May 14, 2015 10:27:00 pm

भूमि अधिग्रहण देश में हमेशा से विवादास्पद मुद्दा
रहा है। मौजूदा सरकार भी जब से नया भूमि अधिग्रहण विधेयक लेकर आई है तब से उसकी
जमकर आलोचना हो रही है

Medha Patkar

Medha Patkar

भूमि अधिग्रहण देश में हमेशा से विवादास्पद मुद्दा रहा है। मौजूदा सरकार भी जब से नया भूमि अधिग्रहण विधेयक लेकर आई है तब से उसकी जमकर आलोचना हो रही है। लोकसभा में तो इसे पारित करा लिया गया पर राज्यसभा में यह अटक गया। अब सरकार ने इस विधेयक पर रिपोर्ट पेश करने के लिए एक 30 सदस्यीय संयुक्त समिति का गठन किया है। बहरहाल, किसान विरोधी और कॉरपोरेट अनुकूल बताए जा रहे इस विधेयक पर जब राजस्थान पत्रिका ने समाजसेवी मेधा पाटकर से बात की तो उन्होंने कहा कि किसान उजाड़कर देश का विकास नहीं हो सकता। पेश है इस बातचीत के प्रमुख अंश…

भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का आप किस आधार पर विरोध कर रही हैं?
मेधा- जिस प्रारूप में आज यह विधेयक है और यदि यह लागू हो गया तो देश की पचास फीसदी जमीन कॉरपोरेट के हाथों में चली जाएगी और यह पचास फीसदी जमीन देश के गरीब किसानों की है, जिस पर केंद्र सरकार नजर गड़ाए हुए है। इस विधेयक में केंद्र सरकार ने ग्राम सभा की अनसुनी कर दी है। उसकी भागीदारी खत्म कर दी है। यही नहीं जमीन के फैसले में किसान की भागीदारी अस्सी फीसदी से कम कर दी है। इस अध्यादेश में पुनर्वास जैसे यक्ष प्रश्न को छुआ तक नहीं गया है। यह अध्यादेश केंद्र सरकार का जबरन जमीन हथियाने का एक बड़ा हथियार बन जाएगा। हम किसी भी सूरत में इस विधेयक को लागू नहीं होने देंगे।


केंद्र सरकार की दलील है कि भूमि अधिग्रहण विधेयक किसान विरोधी नहीं है। देश के किसानों को उचित मुआवजा दिया जाएगा?
मेधा- कैसा मुआवजा? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में ही नजर डालें तो वहां कितना मुआवजा दिया गया है? गुजरात की जमीनी सच्चाई क्या है? पिछले डेढ़ दशक के दौरान गुजरात में दस लाख विस्थापित आदिवासी, जो कि मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र से आए थे अब बड़ौदा, सूरत और अहमदाबाद की झुग्गियों में मजदूर बनकर जीवनयापन करने के लिए अभिशप्त हैं। गुजरात सरकार के मुआवजे का यह हश्र है।

केंद्र सरकार का कहना है कि भूमि अधिग्रहण बिल से न केवल किसानों का भला होगा बल्कि देश के विकास में तेजी आएगी?
मेधा- विकास में तेजी? कैसी तेजी? क्या किसानों को उजाड़कर विकास में तेजी लाना संभव है, जबकि हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है। इस विधेयक के लागू होने पर देश की शहरी आबादी चार गुना प्रभावित होगी जबकि ग्रामीण आबादी दो गुना। सार्वजनिक-निजी साझेदारी मॉडल की बात की जा रही है। इसमें तो जबरन भूमि लेने का प्रावधान है। दरअसल, सरकार किसानों से उनकी जमीन लेकर कारपोरेट घरानों को दे रही है।


केंद्र सरकार किसानों के अच्छे दिनों को लाने के प्रयास में जुटी है और आप उसका विरोध कर रही हैं?

मेधा – गुजरात से लेकर प. बंगाल तक और दक्षिण से लेकर उत्तर भारत के मैदानों तक किसान और देश की जनता बदहाल है। वह अपनी जीविका के संकट के खिलाफ संघर्ष कर रही है। केंद्र सरकार कब तक इन्हें अच्छे दिनों का सब्जबाग दिखाती रहेगी। सरकार देश के संसाधन और लोगों का जीवन देशी-विदेशी कंपनियों को बेचने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। आज देश का किसान अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।


क्या आप नहीं चाहतीं कि इस विधेयक से गरीब किसानों या आदिवासियों के जीवन स्तर में सुधार हो?
मेधा – हम चाहते हैं तभी तो लड़ाई लड़ रहे हैं। केंद्र सरकार उनका जीवन स्तर ऊपर नहीं उठाना चाहती है। वह तो बस उसे उसकी जमीन से बेदखल करना चाहती है ताकि उसकी जमीन पर कब्जा किया जा सके। हमारे जनप्रतिनिधियों को किसानों की स्थिति को ध्यान में रखकर कानून बनाने चाहिए। केंद्र सरकार देशभर के किसानों, मजदूरों, मछुआरों, आदिवासियों और मेहनत करने वालों के मुंह से उनका निवाला छीनने पर आमादा है। लेकिन अब यह वर्ग जाग गया है और भूमिहीनों की चिंता भी उसकी आवाज में शामिल है।

सरकार का कहना है कि देश में नेशनल हाइवे बनेंगे तो इससे अंतत: किसानों को ही लाभ होगा और रोजगार बढ़ेगा?
मेधा- क्या आपको मालूम है कि नए नेशनल हाइवे के निर्माण के दौरान उसके दोनों तरफ की एक-एक किलोमीटर की दूरी तक जमीन हथिया ली जाएगी और यह जमीन देशभर की कुल जमीन की 17 फीसदी होगी। यही नहीं अन्य विकास योजनाओं के नाम पर जमीन अधिग्रहित की जाएगी, उसका प्रतिशत लगभग तीस है। इस तरह देश की आधी जमीन तो सीधे कॉरपोरेट सेक्टर के पास चली जाएगी। क्या जमीन के इतने बड़े हिस्से पर निवास करने वाले लोगों को ये कॉरपोरेट रोजी-रोटी मुहैया करा पाएंगे?

बातचीत : अनिल अश्विनी शर्मा
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