विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र और
सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था का डंका पीटने वाले इस महादेश में आज सबसे अधिक चर्चा
के केन्द्र में कौन है- गाय। वह गाय जिसके लिए हमने अपनी दादी, अम्मा और पत्नी को
सबसे पहली रोटी बनाते देखा है। वह गाय जिसका दूध पीकर हम बड़े हुए हैं। वह गाय
जिसके घी को आज भी प्राथमिकता से खाते हैं।
वह गाय जिसका बछड़ा बैल के रूप में गरीब
किसान का सबसे बड़ा साथी है। वह गाय जिस पर इस देश के एक महान उपन्यासकार प्रेमचन्द
ने अपना सबसे बड़ा उपन्यास लिखा है- गोदान। वह गाय जिसके बैल की जोड़ी बरसों
कांग्रेस का चुनाव चिह्न रही। वह गाय जिसे बाद में श्रीमती गांधी ने खंडित कांग्रेस
का चुनाव चिह्न बनाया। वह गाय जिसे हम आज गली-गली में पॉलिथिन खाते देखते हैं। वह
गाय जिसे लोग सिर्फ दुहने के लिए दोनों वक्त घर में लाते हैं और बाद में खुला छोड़
देते हैं। वह गाय जो भीड़ भरे चौराहों पर मजे से बैठी जुगाली करती रहती है जिससे
टकरा कर कई स्कूटर सवारों के हाथ-पैर टूट जाते हैं।
वह गाय जब तक दूध देती है हम
उसे रखते हैं और बूढ़ी होने पर बेच देते हैं इस उम्मीद के साथ कि अब टल चुकी इस गाय
को खिलाने और जिलाने की जिम्मेदारी उस पर है जो इसे खरीद रहा है जिसे हम कबाड़ मान
चुके हैं। वह गाय जिसे बुढ़ापे में यह जानते हुए भी कुछ रूपयों के लिए घर से धक्का
देते हैं कि इसका अंजाम क्या होगा।
और इन सबके बाद हम ढोल बजा-बजा कर कहते हैं कि
गाय हमारी माता है। जो गाय के साथ होता देखते हैं कमोबेश वैसी बेकद्री के समाचार
हमें समाज की बूढ़ी मांओं के बारे में भी सुनने को मिलते हैं। कौन नहीं जानता कि
गाय एक पवित्र जानवर है। लेकिन क्या इसकी उतनी चिन्ता हम करते हैं जितनी करनी
चाहिए। आइए सरकारी गौशाला या किसी कांजी हाउस में चले। गाय की दुर्दशा देख कर आपका
दिल न पसीज जाए तो हमसे कहना। आज गाय का सबसे बड़ा दुरूपयोग चुनावों में हो रहा है,
दंगों में हो रहा है, अपने को पवित्रता का पुरोधा घोçष्ात कराने के लिए हो रहा है।
हम मानवता, नैतिकता, सच्चाई की राह ढूंढने के लिए वेद पुराण नहीं पढ़ते बल्कि
यह खोजने के लिए पढ़ते हैं कि ऋ çष्ा मुनि प्राचीन समय में क्या खाते थे। चुनाव
हैं, वोट लेने हैं इसलिए विकास को मारो गोली, गाय को मोहरा बनाओ। बेचारी गाय। बूढ़ी
गाय की कद्र तो पहले भी नहीं थी इसीलिए उपनिष्ाद काल में अपने पिता द्वारा बूढ़ी
गाय दान में देने पर नचिकेता ने प्रश्न उठाया था वह प्रश्न आज तक यूं का यूं खड़ा
है। कोई जवाब ही नहीं देता कि इन बूढ़ी गायों का क्या करें?
राही