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विकास में बाधक

विकास की इस राह में जो भी बाधक बनने का
प्रयास करे उसे सजा दी जाए। भाजपा सरकार के पास अवसर है यह साबित करने का कि उसके
लिए कोई अछूत नहीं है

May 22, 2015 / 10:48 pm

शंकर शर्मा

Muslim

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योग्यता के मुकाबले धर्म अगर नौकरी मिलने का आधार बन जाए तो इसे क्या माना जाए? मुंबई की हीरा निर्यात कंपनी ने एक युवा एमबीए स्नातक को इसलिए नौकरी देने से इनकार कर दिया क्योंकि वह मुसलमान था। कम्पनी ने इस युवक को आवेदन के 15 मिनट के भीतर नौकरी देने से इनकार करते हुए बड़ी बेशर्मी से यह भी कहा कि उसकी नीति गैर-मुस्लिमों को ही नौकरी देने की है। एक तरफ देश जहां विकासशील राष्ट्रों के साथ हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा कर रहा हो, विकास के नित नए आयाम छू रहा हो ऎसे में धर्म के आधार पर नौकरी देने की बात हैरत में डालती है।

मुंबई की जिस कंपनी ने इस तरह का आचरण किया है उसके खिलाफ मामला दर्ज कर लेना ही पर्याप्त नहीं है। किसी भी निजी कंपनी को योग्यता के अभाव में किसी को चयनित नहीं करने का अधिकार तो हो सकता है लेकिन महज धर्म के आधार पर चयन करने या नहीं करने का अधिकार किसी को नहीं हो सकता।

कम से कम भारत जैसे देश में, जिसकी विविधताएं ही उसकी ताकत हैं। भारत के कुछ सौ सालों के इतिहास को छोड़ दिया जाए तो शताब्दियों से भारतीय परम्परा राम और रहीम की रही है। कबीर, रहीम, रसखान और सूरदास हमारी उस संस्कृति की पहचान रहे हैं जिसे गंगा-जमुनी संस्कृति के नाम से पुकारा और पहचाना जाता रहा है। केन्द्र और महाराष्ट्र में आज भारतीय जनता पार्टी की सरकार है जो सवा सौ करोड़ देशवासियों को साथ लेकर चलने की बात करती है तो इस तरह की सोच रखने वाले लोगों के खिलाफ उसे सख्ती से पेश आना चाहिए।

तहकीकात इस बात की भी होनी चाहिए कि क्या इस हीरा कंपनी ने इससे पहले कभी किसी मुसलमान को नौकरी पर रखा या नहीं? या फिर महाराष्ट्र में भाजपा सरकार आने के बाद ऎसा नियम बना लिया। मोदी सरकार को लोकसभा चुनाव में जबर्दस्त समर्थन हासिल हुआ यानी सबका साथ मिला तो उसे अब सबका विकास करके दिखाना भी होगा। विकास की इस राह में जो भी बाधक बनने का प्रयास करे उसे उसकी सजा दी जाए।

भारतीय जनता पार्टी सरकार के पास अवसर है यह साबित करने का कि उसके लिए कोई अछूत नहीं है। ऎसा करके पार्टी उसके बारे में वष्ाोü से बनी आ रही अवधारणा को भी तोड़ सकती है और अल्पसंख्यकों में भी विश्वास कायम कर सकती है। सत्ता में आना एक बात है लेकिन कुर्सी पर बैठकर सबका विश्वास जीतना दूसरी बात।

मुंबई की घटना की तो कड़ाई से जांच हो ही, साथ ही ऎसे उपाय भी किए जाएं ताकि भविष्य में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई किसी की भी कम्पनी ऎसा करने का दुस्साहस नहीं कर सके। नौकरी हो, राजनीति हो अथवा खेल, हर क्षेत्र में योग्यता को ही प्राथमिकता मिलनी चाहिए। देश तभी अपेक्षित विकास कर सकेगा।


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