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मुंह पे रौनक

Published: Nov 23, 2015 11:18:00 pm

चचा गालिब का यह शेर हमारे दिल के बेहद करीब है। पता नहीं चाचाजान ने यह शेर अपनी माशूका को निहार

resurgent rajasthan

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चचा गालिब का यह शेर हमारे दिल के बेहद करीब है। पता नहीं चाचाजान ने यह शेर अपनी माशूका को निहार लिखा था या अपने सरपरस्त बादशाह को देख कर। लेकिन बात में बड़ा दम है। शेर मुलाहिजा फरमाइएगा- उनके आ जाने से आ जाती है मुंह पर रौनक, वे समझते कि बीमार का हाल अच्छा है। जवानी के दिनों में हमारे साथ यही हुआ। एक दिन हमें कोई बीस बार हाजत जाना पड़ा। शरीर का पानी निकल जाने से चेहरा सूख गया। हम बेहद बीमार से लगने लगे। ऐसे में हमने सहानुभूति कार्ड खेला।


सहानुभूति कार्ड तो आप समझते हैं ना। प्राय: उपचुनाव में राजनीतिक पार्टियां यह कार्ड खेलती हैं। मान लीजिए कि एक विधायक जी को अचानक यमराज ने बुला लिया तो पार्टी उनकी जगह उसकी दुखियारी दिखलाई देती बीवी या बेटी को उपचुनावों का टिकट देती है। इसे सहानुभूति कार्ड खेलना कहते हैं। बीमार पडऩे पर हमने अपनी कथित माशूका को अपने मित्र से संदेश भिजवाया कि हम बीमार हैं। उस नामाकूल ने कुछ ज्यादा ही सहानुभूति बटोरने के चक्कर में हमारी प्रेमिका के सामने रो- रोकर कहा कि हमारा तो टिकट बस कटने ही वाला है।


 अंतिम दर्शन करने हैं तो कर लो। बेचारी प्रेमिका बदहवास-सी हमसे मिलने आई तब हम तरबूज खा रहे थे। कुछ तरबूज के रस से और कुछ प्रेमिका के आने की खुशी में हमारा चेहरा चमकने लगा और माशूका हम पर झूठ बोलने का इल्जाम लगा कर गुस्से में सदा के लिए चली गई। कुछ-कुछ ऐसा ही राजधानी में हो रहा है। हमने अपनी साठ साल की जिन्दगी में राजधानी को इतना खूबसूरत, साफ, चमकदार, रौशन पहले कभी नहीं देखा था। सड़क ऐसी चिकनी कि बार-बार फिसलने का जी करे। रोशनी इतनी जानदार कि आसमान के सितारे भी शर्मा जाए।


ट्रैफिक इतना सुरक्षित कि आवारा गायों से टकराने का भय समाप्त हो गया। गमले इतने हवाई कि चाह कर भी उनमें लगे फूलों को हम छू न सकें। जितना चाक-चौबंद प्रशासन अब है, यह क्या आगे भी रहेगा। राजधानी के बाशिन्दे इन दिनों जितने सभ्य नजर आ रहे हैं वे भविष्य में भी रहेंगे।


क्या वे सड़क पर थूकना बंद कर देंगे? क्या माता-पिता अपने बच्चे को केला और बिस्कुट खिलाने के बाद कचरा सड़क पर फेंकना बंद कर देंगे? आपकी आप जाने पर हमने तो तय कर लिया है कि जितनी हमारी बस की बात है हम अपनी राजधानी को साफ रखेंगे। सड़क किनारे टांग उठा कर लघुशंका निवारण बंद कर देंगे। लेकिन क्या सरकारी हलकारे भी उतने ही चाक-चौबंद रहेंगे या फिर वही पुराने हाल वापस आ जाएंगे। देखें क्या होता है। – राही
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