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पाकिस्तान बन रहा बाधा

Published: Feb 10, 2016 11:01:00 pm

देश की सीमा पर कहीं घने जंगल है, कहीं अपार पानी तो कहीं दुर्गम पहाडिय़ां और रेगिस्तानी इलाका। सबसे

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देश की सीमा पर कहीं घने जंगल है, कहीं अपार पानी तो कहीं दुर्गम पहाडिय़ां और रेगिस्तानी इलाका। सबसे कठिन मोर्चा है सियाचिन ग्लेशियर। यहां पारा सर्दियों में तो शून्य से भी 60 डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाता है। ङ्क्षचताजनक आंकड़े ये हैं कि ऐसी बर्फीली सीमा पर 1984 से दिसंबर 2015 तक हमारे 869 सैनिक शहीद हो गए। इनमें से अधिकतर की शहादत दुश्मन की गोली से नहीं बल्कि बेरहम मौसमी मार से हुईं। पड़ोसी देश का भी यही हाल रहा। ऐसे में यह सवाल भी उठने लगा है कि ऐसे दुर्गम इलाकों को शांति क्षेत्र क्यों नहीं घोषित कर दिया जाता, जहां किसी भी देश की सैन्य गतिविधियां वर्जित हों। इस मामले में क्या हैं, परेशानियां और क्या हैं उम्मीदें? स्पॉटलाइट में पढि़ए ऐसे ही सवालों पर रक्षा विशेषज्ञों की राय…

मारुफ रजा रक्षा विशेषज्ञ

देश की सीमा की रक्षा के लिए सैनिकों को न केवल दुश्मन की संभावित घुसपैठ पर लगातार निगाह रखनी पड़ती है बल्कि मौसम के साथ भी लडऩा होता है। जंगली इलाकों में भी चौकसी काफी कठिन होती है और गुजरात या राजस्थान की ओर से लगती सीमा पर तापमान 50 डिग्री को छूने लगता है, धूल भरी आंधियां चलती हैं, तो कठिनाइयां और बढ़ जाती हैं। लेकिन, जम्मू-कश्मीर की ओर से लगती सीमा, अरुणाचल-सिक्किम की ओर नाथू ला दर्रा और खासतौर पर सिचाचिन की सीमा की परिस्थितियां बिल्कुल अलग है।

सीमाओं में है अंतर

सियाचिन जैसे इलाके में गर्मियो में सामान्य तापमान शून्य से 15 डिग्री सेल्सियस कम होता है। सर्दियों में तो यह शून्य से 60 डिग्री सेल्सियस नीचे तक पहुंच जाता है, तो त्वचा गलने लगती है। ऐसे में ठंडी हवा का सैकड़ों किलोमीटर की रफ्तार से चलना जीवन के खतरे को और भी बढ़ा देता है। जहां सांस लेना कठिन होता है। रक्तचाप की हालत ऐसी कि यदि समुद्रतल की 200-300 मीटर की ऊंचाई वाले इलाके में हों तो इंसान को सघन चिकित्सा इकाई में भर्ती कराना पड़े। लेकिन, देश का सैनिक सीमा की रक्षा के लिए डटा रहता है। आंकड़े बताते हैं कि 1984 लेकर दिसंबर 2015 तक मौसम की मार और अन्य कारणों के चलते 869 सैनिकों की मौतें हुई। इसमें से करीब 700 सैनिकों को तो हमने मौसम की मार से शुरुआती दो -तीन वर्षों में ही खो दिये थे। बाद में हमने इस इलाके में सैनिकों के लिए बहुत से कदम उठाये।


 अब घायल सैनिकों के लिए तत्काल हेलीकॉप्टर पहुंच जाते हैं। चिकित्सा के लिए समय पर डॉक्टरों को पहुंचाया जाता है। पहाड़ों पर पेट्रोलिंग करके जब सैनिक वापस आता है तो उसके लिए नमक डालकर गर्म पानी तैयार रहता है, ताकि वह ठंडे हो चुके शरीर को गर्म कर सके। हम अपने सैनिकों को पूरे प्रशिक्षण के साथ ग्लेशियर पर चौकसी के लिए भेजते हैं। इसके अलावा मौसम की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सैनिक या कमांडर को अधिकतम 90 दिन ही वहां पर चौकसी करने दी जाती है। इन हालात में सैनिकों को सजा के तौर पर वहां नहीं भेजा जाता बल्कि हमारे सैनिक आगे बढ़कर हाथ उठाकर वहां चौकसी के लिए जाना चाहते हैं।

हम क्यों उठाएं जोखिम

हमारे देश का रक्षा बजट करीब ढाई लाख करोड़ रुपए का है। इसमें से यदि सियाचिन ग्लेशियर जैसे इलाके में सालाना करीब 2000 करोड़ रुपए भी आता है तो इसे बहुत अधिक नहीं कहा जा सकता। अकसर कहा जाता है कि भारत-पाकिस्तान के बीच कोई सीमा नहीं हो तो कितना अच्छा होगा? यदि कोई यह कहे कि सियाचिन जैसे इलाके में जहां न केवल हिंदुस्तान बल्कि पाकिस्तान के सैनिक भी तो गोली की बजाय मौसम की मार से मारे जाते होंगे। तो, क्यों न इसे शांति क्षेत्र घोषित करके सैन्य गतिविधि रहित क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाए। निस्संदेह, यह सुझाव बहुत ही शानदार है और मन को भाने वाला भी है लेकिन प्रायोगिक तौर पर ऐसा कर पाना संभव नहीं है।


 फिर, सावधान कर दूं कि हम पाकिस्तान जैसे दुश्मन पर हम भरोसा नहीं कर सकते। कई बार हम ऐसा करके पछताते रहे हैं। अब कोई भी जोखिम लेना ठीक नहीं होगा। फिर कैसे भूल जाएं कि दूसरी तरफ चीन भी है। हम शायद ऐसा सोच भी लें लेकिन शर्त यही है कि इसके लिए कम से कम पाकिस्तान दुनिया के नक्शे पर न हो। हमने बड़ी मुश्किलों से सियाचिन की ऊंची चोटियों पर कब्जा जमाया है, हम करगिल की तरह इन्हें खोकर फिर हासिल कर लेने का जोखिम नहीं उठा सकते।


पुराना है झगड़ा
सियाचिन की समस्या काफी पुरानी है। वर्ष 1972 में शिमला समझौते में सियाचिन के एनजे-9842 नामक स्थान पर युद्ध विराम की सीमा तय हो गई। पाकिस्तान द्वारा मानचित्रों में इस हिस्से को दिखाने पर भारत ने 1985 में एनजे-9842 के उत्तरी हिस्से पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।

ये हैं मुसीबतें
सियाचिन में तैनाती के दौरान सैनिकों को नहाने को नहीं मिलता। पानी पीने के लिए बर्फ पिघलानी पड़ती है। सैनिकों के पास एक खास तरह की गोली होती है, जिसे पिघले पानी में डालकर उसे पीने लायक बनाया जाता है।

सबका हित
शां ति क्षेत्र बनाने की वकालत करने वालों का मानना है कि सियाचिन से पर सैन्य गतिविधियां बंद करना भारत-पाक और चीन तीनों के हित में है। लेकिन, इसके लिए आपस में भरोसा जगाना होगा हर किसी को डर है कि कोई भी चौकी से सैनिक हटाए तो दूसरा उस पर कब्जा कर लेगा। इसीलिए सैन्य गतिविधियां जारी हैं।

सीमा पर दुर्गम मोर्चे

सियाचिन ग्लेशियर सीमा
समुद्रतल से 18,875 फीट की ऊचांई पर स्थित। तापमान -50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है।

भारत-पाक सीमा, द्रास
जम्मू-कश्मीर के करगिल जिले में स्थित। वर्ष भर यहां तापमान लगभग इकाई के अंक में।

भारत-पाक सीमा, राजस्थान
रेतीला इलाका। कई क्षेत्रों का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। पानी की बेहद कमी रहती है।

भारत-चीन सीमा, अरुणाचल
अत्यधिक बारिश वाला इलाका। माउंटेन रेजीमेंट और वायुसेना मिलकर क्षेत्र की रक्षा करते हैं।

भारत-चीन सीमा, सिक्किम
सालभर तेज बारिश व बर्फबारी का दौर। सेना की नाथू ला दर्रा पर बराबर गश्त।

जम्मू-कश्मीर सीमा
ठंड व आतंकी गतिविधियां सेना के लिए परेशानियां खड़ी करने वाली।

भारत-चीन सीमा, उत्तराखंड
सर्दी में जीरो से नीचे तापमान और मानसून में अधिक बरसात। चीनी सैनिक सीमा रेखा का उलंघन करते रहते हैं।

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