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सफल रही पाक को घेरने की रणनीति

Published: Dec 04, 2016 10:28:00 pm

अफगानिस्तान लंबे समय से युद्धग्रस्त देश रहा है और इसके साथ आतंकवाद की मार भी झेल रहा है। अफगानिस्तान

Ashraf Ghani

Ashraf Ghani

अफगानिस्तान लंबे समय से युद्धग्रस्त देश रहा है और इसके साथ आतंकवाद की मार भी झेल रहा है। अफगानिस्तान के आर्थिक विकास, सुरक्षा और पुनर्गठन के लिए संयुक्त सहयोग की जरूरत महसूस करते हुए नवंबर 2011 में तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में भारत, पाकिस्तान, चीन, रूस, तुर्की, ईरान आदि सहित 14 देशों ने मिलकर एक संगठन बनाया था। सभी सदस्य देशों ने अफगानिस्तान को एशिया का दिल माना और चूंकि इस प्रक्रिया की शुरुआत इस्तांबुल में हुई इसलिए इस सहयोग संगठन का नाम ‘हार्ट ऑफ एशिया-इस्तांबुल प्रोसेसÓ रखा गया था। इस संगठन को ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान, अमरीका सहित 17 देशों का सहयोग व समर्थन भी हासिल है।

अफगानिस्तान के विकास और पुनर्गठन को लेकर इस बार भारत के अमृतसर में बैठक रखी गई। इस बैठक में 14 सदस्य देशों, 17 सहयोगी देशों के मंत्री और 12 संगठनों के सदस्यों ने भाग लिया। इस बैठक में मुख्य मुद्दा अफगानिस्तान का पुनर्गठन, आर्थिक विकास और सुरक्षा पर ही केंद्रित रहा। हालांकि, सभी जानते हैं कि यह तभी संभव हो सकता है, जबकि अफगानिस्तान और इसके आसपास के देश आतंक के साए से भी दूर रहें।

 शायद यही वजह रही कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने सम्मेलन में पाकिस्तान को जमकर खरी-खोटी सुनाई। सम्मेलन के माध्यम से गनी ने सीधे-सीधे पाकिस्तान और दुनिया को कड़ा संदेश भी दिया कि जब तक क्षेत्र में शांति नहीं होती हम 500 मिलियन डॉलर की पाकिस्तानी सहायता से अफगानिस्तान के विकास की उम्मीद नहीं कर सकते। उन्होंने सम्मेलन में मौजूद पाकिस्तान के प्रतिनिधि व विदेश मामलों में पाक प्रधानमंत्री के सलाहकार सरताज अजीज का नाम लेकर कहा कि बेहतर यही होता कि यह राशि आतंकवाद के खात्मे के लिए खर्च की जाती। उल्लेखनीय है कि अफगानिस्तान के पुनर्गठन और विकास के उद्देश्य से पाकिस्तान ने 500 मिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता की घोषणा की है। यह राशि अफगानिस्तान में आधारभूत सुविधाओं पर खर्च की जानी है।

उधर, उम्मीद के मुताबिक भारत ने भी इस सम्मेलन का लाभ उठाते हुए पाकिस्तान को घेरने की कोशिश की और उसे एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने बेनकाब किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा कि आतंकवाद को समाप्त किए बिना विकास की बात नहीं हो सकती। भला चुप्पी साधकर आतंकवाद से कोई कैसे लड़ेगा? इसके लिए सक्रियता तो दिखानी ही होगी। आतंकवाद और इससे पनप रहीं दूसरी समस्याओं को सुलझाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। इस सम्मेलन में भारत की ओर से अफगानिस्तान के साथ आपसी समझौतों पर भी हस्ताक्षर किए गए। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय वार्ता तो होनी ही थी।

 आवागमन के लिहाज से अफगानिस्तान और भारत के बीच पाकिस्तान एक दीवार बनकर खड़ा है। इसलिए दोनों देशों के बीच कारोबार के लिए हवाई रूट पर काम करने की बात हुई। इसके अलावा दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग और व्यापार के लिए ईरान के चाबहार एयरपोर्ट का इस्तेमाल करने पर सहमति हुई। हमें यह समझना चाहिए कि अफगानिस्तान इस्लामिक देश है और आतंक से लडऩे के मामले में वह भारत के लिए अहम सहयोगी देश साबित हो सकता है। यह आतंकवाद से लड़ऩे के मामले में भारत को ऑक्सीजन देता है। चीन और पाकिस्तान से लगती सीमा के कारण अफगानिस्तान भारत के लिए भू-रणनीतिक ही नहीं आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। सम्मेलन में इन सारी बातों के मध्य निगाह इस बात पर भी थी कि क्या भारत और पाकिस्तान के बीच भी किसी द्विपक्षीय वार्ता की शुरुआत हो सकती है।

 फिलहाल ऐसा नहीं हुआ। हालांकि, पाकिस्तान की ओर से इसका प्रयास किया गया और कहा गया कि भारत रास्ते खोले तो बातचीत संभव है लेकिन तनाव के माहौल के बीच भारत ने फिलहाल इस प्रयास को टाल दिया। दरअसल, पाकिस्तान को अंदर ही अंदर डर सता रहा था कि भारत हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन का इस्तेमाल पठानकोट, उरी व नगरोटा हमले को लेकर घेरने में इस्तेमाल करने वाला है। और, ऐसा हुआ भी। भारत, सम्मेलन को अफगानिस्तान में सुरक्षा के मुद्दे के नाम पर आतंकवाद के इर्द-गिर्द केंद्रित रखने में कामयाब रहा। इस बीच पाकिस्तान को अमरीका की ओर से 90 करोड़ डॉलर की सशर्त सहायता के लिए एक विधेयक वहां की प्रतिनिधि सभा ने पारित कर दिया।


 कभी-कभी यह बात बहुत अजीब भी लगती है कि एक तरफ भारत, आतंकवाद को पनाह देने वाले देश के रूप में पाक को घेरने की कवायद करता है और दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय समुदाय पाक को आर्थिक सहायता मुहैया कराता है। वास्तविकता यह भी है कि भले ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजर में पाकिस्तान आतंकवाद को पनाह देने वाला देश है लेकिन पाकिस्तान को विश्वास में लिए बिना आतंकवाद को समाप्त भी नहीं किया जा सकता। यही वजह है कि अमरीका या अन्य देश पाक को घेरने में भले ही भारत का साथ दे लेकिन वे पाकिस्तान को आर्थिक सहायता भी देते हैं।

प्रो.संजय भारद्वाज दक्षिण एशिया मामलों के जानकार
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