अभी डोनाल्ड ट्रंप ‘प्रेसिडेंट इलेक्ट’ हैं। उनके पास दुनिया भर से बधाई संदेश आ रहे हैं। अलग-अलग देशों के राष्ट्राध्यक्ष उनसे फोन पर बातचीत कर रहे हैं। ट्रंप भी चुनावी बयानबाजी और तीखे बोल के विपरीत एक जिम्मेदार पद पर आसीन होने के अहसास के साथ इन बधाई संदेशों का उपयुक्त जवाब भी दे रहे हैं।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भी उन्हें फोन पर बधाई दी, जिसमें ट्रंप ने शरीफ की तारीफ की है। इसे लेकर पाकिस्तानी सरकार और मीडिया गदगद है। वे इस तारीफ को ट्रंप से मिले सर्टिफिकेट की तरह प्रचारित कर रहे हैं जबकि हरेक नया राष्ट्राध्यक्ष ऐसा करता है। पहली ही बात में देश का मुखिया शिकायत भरे लहजे में बात नहीं करता है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी शरीफ को अपने शपथ ग्रहण समारोह में बुलाया था। फिर उन्हें जन्मदिन की बधाई देने गए थे। इसलिए इस बात से यह अंदाजा नहीं लगाना चाहिए कि ट्रंप का पाकिस्तान के प्रति जो ‘स्टैंड’ था, उससे वे खिसक गए हैं।
कोई भी राष्ट्राध्यक्ष पहले अपने देश के हितों को देखता है, फिर सहयोगियों पर नजर डालता है। ट्रंप ने चुनावों में राष्ट्रवादी रवैया अख्तियार किया था। अमरीकियों को उनसे काफी उम्मीदें हैं। खासतौर पर रेडिकल इस्लाम के खिलाफ सख्ती बरतने की आस अमरीकियों को ट्रंप से है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि ट्रंप अमरीका की धाक कायम करने की कोशिश करेंगे।
आतंकवाद पर उनका रुख आक्रामक रहेगा। जहां तक पाकिस्तान के प्रति अमरीकी नीति का सवाल है तो लगता है कि ट्रंप रफ्ता-रफ्ता पाकिस्तान से वार्ता करके उसे आतंकवाद के मुद्दे पर ला खड़ा करेंगे, जहां पाकिस्तान पर कार्रवाई का दबाव डालना शुरू करेंगे। शरीफ की तारीफ कर देने भर से यह नहीं मान लेना चाहिए कि ट्रंप यू-टर्न लेने वाले हैं। उनके व्यक्तित्व से लगता है कि वे अपने इरादे जाहिर करके काम करेंगे। यदि ट्रंप नवाज शरीफ से भविष्य में वार्ता करें तो यह नहीं सोचना चाहिए कि वे भारत के खिलाफ जा रहे हैं या हमें कोई संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं।
जहां तक मैं कूटनीतिक अनुभव से समझ समझ सकता हूं, उसके हिसाब से ट्रंप की कोशिश रहेगी कि पाकिस्तान से संबंध नहीं टूटें और भारत के साथ संबंध आगे बढऩे में कोई अड़चन न आए। भारत- अमरीकी संबंधों में बड़ा मुद्दा आतंकवाद के खिलाफ सख्ती और पाकिस्तान पर आतंक को बढ़ावा न देने का दबाव रहा है, जिसमें ट्रंप नहीं झिझकेंगे। ट्रंप ने जो शिष्टता पाकिस्तान के प्रति बातचीत में दिखाई है, उसकी कूटनीति में काफी जगह होती है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं होता कि ‘पॉजिशन’ में फर्क आ गया है। ट्रंप के बर्ताव से लगता है कि वे पाकिस्तान के साथ संबंधों पर जल्दबाजी में कदम नहीं उठाएंगे।
उन्हें मालूम है कि अमरीका में माहौल आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले पाकिस्तान जैसे देशों के खिलाफ है। उन्हें चुनाव में भारतीयों ने भी परंपरागत राह से हटकर समर्थन दिया है। इसलिए ट्रंप पर नैतिक और रणनीतिक दबाव रहेगा कि वे भारत-अमरीका रिश्तों को नए सिरे से मजबूत करें। उनकी कोशिश भी रहेगी कि वे पाकिस्तान के साथ बहुत अच्छे संबंध न दिखाएं। पिछले 20 साल से अमरीका और भारत के संबंध गहरे हुए हैं। व्यापार से लेकर तकनीक और सामरिक साझेदारी बढी हैं। मेरा मानना है कि ट्रंप पाकिस्तानी ‘एस्टेब्लिशमेंट’ को राजी करेंगे कि वह भारत के खिलाफ आतंकवाद को ‘स्टेट पॉलिसी’ बनाने का रवैया छोड़ दे।
हालांकि अभी बहुत विश्लेषण करना जल्दबादी भी होगी क्योंकि ट्रंप सरकार के विदेश मंत्री तय होने हैं। अभी दूसरे मुल्कों में अमरीकी राजदूत भी नहीं बदले गए हैं। जीतने के बाद ट्रंप जहां-जहां लोगों को संबोधित कर रहे हैं, उसे देखने पर मैं समझ पाया हूं कि ट्रंप दिखा रहे हैं कि वे अपनी जगह कायम रहने वाले हैं। अभी उनकी सरकार में 4000 नई नियुक्तियां होने वाली हैं तभी उनकी नीति और रणनीति की एक मोटी तस्वीर साफ हो पाएगी।
हालांकि इसमें कोई दोराय नहीं है कि भारतीयों का अमरीकी प्रशासन में प्रतिनिधित्व बढ़ रहा है। डोनाल्ड ट्रंप भारत और अमरीका संबंधों को ओबामा के नजरिए तक सीमित नहीं रखेंगे। उन्हें अमरीका में भारतीयों के बढ़ते योगदान का अहसास है और इस चुनाव में यह साबित भी हुआ है। ट्रंप पर न सिर्फ अमरीकियों का दबाव रहेगा बल्कि उन बाहरी देशों की भी अपेक्षाएं होंगी, जिन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से ट्रंप का समर्थन किया था।
ट्रंप भले ही कोई क्रांतिकारी बदलाव न करें लेकिन परंपरा से हटकर वे कार्य जरूर करने की दिशा में बढ़ेंगे। भारतीय-अमरीकियों ने ट्रंप के प्रति काफी समर्थन और उत्साह दिखाया। पहले वे सिर्फ विचारधारा स्तर पर डेमोक्रेट्स की तरफ ही वोट करते आए थे पर इस बार ट्रंप के लिए दिलचस्पी दिखाई।
यानी रिपब्लिकन भी चाहेंगे कि भारतीय-अमरीकियों के हितों का खयाल रखा जाए ताकि भविष्य में यह उनका वोटबैंक बन सके। इसमें कोई दोराय नहीं है कि ट्रंप कार्यकाल में भारत-अमरीकी साझेदारी बढ़ेगी। एक शक एच वन-बी वीजा और मुक्त व्यापार को लेकर है पर ट्रंप जानते हैं कि वे ऐसी बड़ी सख्ती नहीं दिखाएंगे, जिससे इस साझेदारी को नुकसान हो।