भारत ने पाकिस्तान से जम्मू-कश्मीर मसले पर रक्षात्मक रुख अपनाने की बजाय जैसे को तैसा वाली शैली में बात करना शुरू किया है। भारत ने जैसे ही यह कहना शुरू किया कि अब समूचे कश्मीर पर ही बात होगी जिसमें पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर भी शामिल होगा, पाकिस्तान बेहद बौखला गया है। वह कितना ही बौखलाए, भारत को अब इसी रणनीति पर काम करना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि हमने अंजुमन मिन्हाजे रसूल की कार्यसमिति की बैठक 1993 में श्रीनगर में की थी और पहली बार हमने प्रस्ताव पारित किया था कि जम्मू-कश्मीर का मतलब भारत का वह राज्य होगा, जिसमें न केवल पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर बल्कि चीन के कब्जे में चले गए कश्मीर के हिस्से पर भी बात होगी। इसके बाद फरवरी 1994 में भारतीय संसद ने भी लगभग इसी आशय का प्रस्ताव संसद की संयुक्त बैठक में पारित किया।
इसके बाद भारत ने कश्मीर के लोगों का विश्वास जीतने के लिए उसके घावों पर मरहम लगाने की यानी हीलिंग टच स्ट्टेजी अपनाई। यह बेहद जरूरी है कि भारत, जम्मू-कश्मीर में अमन-चैन कायम करे। हमारी मुलाकात पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लोगों से होती रही है। वे इस बात को जोर-शोर से कहते हैं कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में विकास की बात तो एक सपने की तरह है। वहां न सड़कें हैं, बिजली है और न ही कश्मीरियत को बचाए रखने की कोशिशें वहां पर की गई है। पीओके के लोगों की जीवनशैली ही बदल सी गई है। वे अपनी भाषा भूल गए हैं।
पेपरमेशी के पुश्तैनी काम को भुला बैठे हैं। वहां स्थानीय नेतृत्व पनप ही नहीं पाया है। इसके विपरीत भारतीय कश्मीर जिस तरह का विकास हुआ, वह काबिले तारीफ है। रेल है, सड़कें हैं, पढ़ाई की सुविधाएं हैं। वहां के लोग साफतौर पर कहते हैं कि उन्हें भारत में ही शामिल होना है। न केवल हमें यह समझना चाहिए बल्कि दुनिया को भी यह समझाने की जरूरत है कि पाकिस्तान के अपने अंदरूनी हालात जब-जब खराब होते हैं, वहां के हुक्मरान जनता का ध्यान भटकाने के लिए जम्मू-कश्मीर का राग अलापने लगते हैं।
कराची पाकिस्तान का प्रमुख शहर है लेकिन वहां पर सोलह घंटे का पावर कट चलता है। पाकिस्तान खुद आतंक की चपेट में है। जब वहां के लोगों पर आतंकी आफत आती है तो वह चंद आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करता है लेकिन जब भारतीय मलिट्री के ऑपरेशन में बुरहान वानी जैसा आतंकी ढेर होता है तो वह कालादिवस मनाता है। उसे शहीद के तौर पर पेश करता है। यह सारी हरकतें केवल पाकिस्तान के अंदरूनी हालात से लोगों को ध्यान दूसरी ओर लगाने के लिए ही की जाती हैं। जो पाकिस्तान अपने खुद के हालात ठीक नहीं कर सकता, वह कब्जे वाले कश्मीर के हालात को कैसे ठीक कर सकता है? यही वजह है कि वहां पर पाकिस्तान सरकार के खिलाफ आंदोलन और प्रदर्शन होते रहते हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पीओके का मुद्दा उठाकर बिल्कुल सही नीति अपनाई है। इसे केवल बातों की आक्रामकता तक सीमित नहीं रखना चाहिए बल्कि काम के स्तर पर करके दिखाना चाहिए। भारत की नीति दूसरे देशों की संप्रभुता और एकता के विरुद्ध बोलने की नहीं रही है लेकिन पूर्वी पाकिस्तान जो अब बांग्लादेश है, में हमने मुक्तिवाहिनी भेजी थी। श्रीलंका के मामले में हमने शांति सेना भेजी थी।
अफगानिस्तान नवनिर्माण के लिए हम योगदान देते रहे हैं। ऐसे में भारत को पीओके जो उसका ही अभिन्न अंग है, में सीमा पार जाकर कार्रवाई करनी चाहिए। आतंकी शिविर हैं तो उसे नष्ट करना चाहिए। याद दिला दूं कि साहबजादा याकूब अली खान ने कहा था, वो नेहरू बहुत ही तेज था जो कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले गया। भारत इसी वजह से जम्मू-कश्मीर को अपना अभिन्न अंग कहता है और पाकिस्तान अपने कब्जे वाले कश्मीर को आजाद कश्मीर कह पाता है।
अब जरूरत इस बात की है भारत को बिना किसी झिझक के कश्मीर को लेकर किसी भी मंच पर पूरे कश्मीर की बात करनी चाहिए। भारत को जताना चाहिए कि पाकिस्तान में उसके कब्जे वाला कश्मीर ही नहीं, खैबर पख्तून, एबटाबाद, क्वेटा आदि सुरक्षित जगह नहीं है।
भारत को जरूरत है, संसद में पारित प्रस्ताव पर सीधे तौर पर काम करने की। उसे केवल रूठे हुए भारतीय कश्मीरियों से बल्कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लोगों से भी बात करनी चाहिए। भारत की संसद में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की नुमाइंदगी बेहद जरूरी है। केंद्रीय बजट ही नहीं जम्मू-कश्मीर के बजट में भी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर किए जाने खर्च का जिक्र करना चाहिए। कश्मीरियों को नौकरियों में आरक्षण भी देना चाहिए।
अलगाववादियों को भी मनाना होगा। जब नगालैंड के अलगाववादियों से चर्चा हो सकती है, उल्फा नेताओं से बात हो सकती है तो पूरे कश्मीर के लोगों से भी होनी चाहिए। जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है इस बात को बेखौफ होकर दुनिया के सामने दर्शाना होगा। पाकिस्तान भी ऐसी ही भाषा समझ पाएगा।