भारत में आतंककारी गतिविधियों को बढ़ावा देने के पीछे पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ होने के स्पष्ट संकेत सामने आ चुके हैं। उरी में रविवार सुबह हमारी सेना के कैंप पर पाकिस्तानी समर्थित फिदायीन हमले में हमारे कई जवान शहीद हो गए।
यह कई वर्षों के बाद हमारे सेना के ठिकाने पर बड़ा हमला है। यद्यपि चारों फिदायीनों को हमारे जवानों ने मार गिराया। लेकिन भारतीय सेना को इतने बड़े स्तर पर हुए नुकसान का दंड जरूर दिया जाना चाहिए। मौजूदा हालात में अब वक्त आ गया है जब पाकिस्तानी सेना के खिलाफ आतंकी हमलों के अनुरूप, भारत को सैन्य कार्रवाई करनी चाहिए। उरी में सैन्य शिविर में फिदायीन हमले के बाद हमारे जवानों की शहादत को अब सब्र की इंतहा कहा जाना चाहिए।
भारतीय सेना की अपनी ही सीमा में पाकिस्तान के छद्म युद्ध के खिलाफ लड़ाई की सोची-समझी रणनीति – जिससे न सिर्फ संघर्ष को कम किया जा सके बल्कि साथ ही आर्थिक तरक्की का माहौल भी स्थायी बना रहे- का कोई सुखद परिणाम नहीं निकलकर आया। नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम का बार-बार उल्लंघन और कश्मीर घाटी में पाकिस्तानी आतंकियों द्वारा हमले की घटनाओं से यह साफ हो गया है कि पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ बेरोकटोक छद्म युद्ध छेड़ रखा है।
इसलिए भविष्य में हमारे जवानों और संपत्ति के नुकसान को कम करने के लिए भारत की ओर से दिए जाने वाले जवाब की समीक्षा करने और उसे अपग्रेड करने की सख्त जरूरत है ताकि पाकिस्तान को हमारे खिलाफ छद्म युद्ध छेडऩे की कीमत चुकानी पड़े। खुद आंतरिक चुनौतियों का सामना करने के बावजूद पाकिस्तानी सेना व आईएसआई पिछले तीन दशक से भारत के खिलाफ एक तरह से अघोषित युद्ध में लगी हुई है।
पाकिस्तानी सेना यह मान बैठी है कि जब सत्ता संतुलन उसके पक्ष में नहीं हो तो आतंकवादियों का संतुलन उसके पक्ष में होना चाहिए। पाकिस्तान न केवल भारत में बल्कि अफगानिस्तान में स्थित भारतीय संपत्तियों को भी लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे चरमपंथी संगठनों के जरिए नुकसान पहुंचाने में लगा है।
इस साल जनवरी में पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले के बाद हमारे द्वारा पाकिस्तान को ठोस सबूत देने के बावजूद उसका सबूतों को नकारने की मुद्रा में रहने से अब भारत धैर्य जवाब देने लगा है। पाकिस्तानी सेना का भारत के खिलाफ सबसे सस्ता और अधिकाधिक फायदा देने वाला विकल्प ही यही है कि वह भारतीय सेना की कई टुकडिय़ों और बड़ी तादाद में सीआरपीएफ के जवानों को संघर्ष में फंसाए रखे।
जाहिर है भारत के लिए यह नुकसानदेह है क्योंकि न सिर्फ हमें रक्षा बजट में बढ़ोतरी करनी पड़ती है बल्कि इससे हमारी आर्थिक तरक्की भी धीमी होती है। भारत को सबसे पहले तो पाकिस्तानी सेना को लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हि•ाबुल मुजाहिदीन के आतंकवादियों को भारत भेजने के लिए सबक सिखाना होगा। भारतीय सेना और एयरफोर्स द्वारा एलओसी पर बड़ी तादाद में तैनात पाकिस्तानी सैनिकों को चोट पहुंचानी होगी।
भारतीय सीमा में किसी भी आतंकी गतिविधि में पाकिस्तानी सेना और आईएसआई का हाथ मिलने पर उसकी सेना पर फौरन नपी-तुली कार्रवाई होनी चाहिए। इसके लिए पाकिस्तानी बंकरों को तबाह करने के लिए तोपों का इस्तेमाल करते हुए ताबड़तोड़ फायरिंग करनी चाहिए। जिस भी पाकिस्तानी पोस्ट के जरिए घुसपैठ होती दिखे, उस पर तोपों से फायरिंग होनी चाहिए। साथ ही पाकिस्तान जिन आतंकवादी संगठनों के सरगनाओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहा है, उनके खिलाफ हमें ही गुप्त (कोवर्ट) हमलों के जरिए न्याय हासिल करना होगा।
आईएसआई भारत में छिपे हमले करती आ रही है, इसलिए हमें भी वहां बैठे आतंकवादी सरगनाओं का इसी शैली में खात्मा करना होगा। इसके अलावा हमारी एकदम सटीक और बहुत पुख्ता इंटेलीजेंस होनी चाहिए, जिस पर कार्रवाई हो सके। हमें पाकिस्तानी सरकार से संवाद भी करना होगा ताकि दोनों देशों के बीच विवादास्पद मुद्दों का हल ढूंढा जा सके और वहां सरकार में सेना की दखल कम की जा सके। लोगों में मेलमिलाप, वीजा प्रक्रिया में आसानी और व्यापार बढ़ाने सरीखे कदम भी साथ-साथ चलने चाहिए।
भारत जिन देशों से हथियार खरीद करता है, उनके द्वारा पाकिस्तान को हथियार-उपकरण बेचने पर पाबंदी सुनिश्चित करनी होगी। भारत को ज्यादा से ज्यादा अमरीकी कांग्रेस सदस्यों को ये कह कर अपने पक्ष में करना होगा कि पाक, भारत-अमरीका संबंधों को नुकसान पहुंचा रहा है।
अमरीकी आर्थिक सहायता से पाक सेना मजबूत होती है, उसे कम से कम कराने पर जोर देना होगा। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अब वह वक्त भी आ गया है, जब भारत को पाकिस्तान के खिलाफ सख्ती बरतने के लिए ‘सिंधु नदी जल बंटवारे’ पर पुनर्विचार करे, लेकिन इस कदम की शायद ही आवश्यकता पड़े। इन कदमों से निश्चित ही पाकिस्तान सेना घुटने टेकने पर मजबूर होगी।