महामना को आज देश के सबसे बड़े पुरस्कार
से सम्मानित किया जाएगा। मालवीय जी देश के ऎसे “रत्न” हैं जिन्होंने सिर्फ अपने युग
को ही आलोकित नहीं किया था वरन् बीएचयू के रूप में ऎसा “रत्न” दिया जो सदियों तक
देश-दुनिया को आलोकित करता रहेगा। पढिए भारत के इसी महापुरूष की आभा को समेटने की
कोशिश करता यह स्पॉटलाइट :
भीष्म नारायण सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष,
महामना
मालवीय मिशन तथा पूर्व राज्यपाल
मालवीय जी महामना अर्थात महान मनुष्य थे। ये बात
कही तो जाती है पर समझी बहुत कम जाती है। अफ्रीका से लौटने के बाद गांधी जी जब पहली
बार मालवीय जी से मिले तो वे उनकी सरलता से बहुत प्रभावित हुए थे। गांधी जी ने कहा
था कि मालवीय जी गंगा की तरह निर्मल हैं। मालवीय जी जिससे एक बार मिल लेते थे वो
उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था। सिर्फ दान के पैसे से किसी विश्वविद्यालय की
स्थापना कर देना, वह भी 1916 में, ऎसा कोई दूूसरा उदाहरण दुनिया में नहीं मिलता है।
उनके व्यक्तित्व शब्दों में समेटना एक चुनौती है। वे बड़े वकील, पत्रकार,
शिक्षाविद्, समाज सुधारक, राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता सेनानी थे। मालवीय जी चार बार
कांग्रेस अध्यक्ष रहे। पहली बार 1909 में तथा अंतिम बार 1932 में।
सोच के तीन
केंद्रीय तत्व
मेरा जन्म तो बिहार का है पर मेरे बाबू जी ने मुझे पटना विवि में
पढ़ाने के बजाय बनारस विवि में ही पढ़ाया। बाबू जी को मालवीय जी की यह सोच बहुत
पसंद थी कि ज्ञान और विज्ञान का विकास तो भारतीय तौर-तरीके से ही होना चाहिए।
मालवीय जी की सोच में तीन केंद्रीय तत्व थे। सादा जीवन और उच्च विचार।
चरित्र की
उदारता तथा ईमानदारी। उनकी इस सोच की छाप पूरे विवि में देखी जा सकती थी। 1916 में
भी बनारस विवि में सिर्फ कला के विषय नहीं पढ़ाए जाते थे। विवि में विज्ञान और
इंजीनियरिंग भी प्रमुख विषयों के रूप में शामिल किए गए। उनकी उदारता का एक उदाहरण
काफी होगा।
एक बार मालवीय जी आरा गए। वहां बाबू जगजीवन राम जी भी पढ़ते थे। जिस
शिक्षण संस्था में मालवीय जी का स्वागत किया गया, वहां पर स्वागत भाषण बाबू जगजीवन
राम ने पढ़ा था। मालवीय जी, जगजीवन राम से बहुत प्रभावित हुए और कहा कि यह छात्र तो
बनारस हिंदू विवि में होना चाहिए। इस तरह से एक गरीब और दलित छात्र को भी मालवीय जी
ने उस समय इतना मान दिया था। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा पर भी हमेशा जोर दिया।
बनारस विवि में भी महिलाओं के लिए अलग छात्रावास बनाया गया।
मालवीय जी हमेशा
सफेद कपड़े पहनते थे। उनका कहना था कि सफेद कपड़ों पर हल्का सा दाग भी दिखता है।
इसी तरह चरित्र में भी तनिक सी भी कलुषता और बेईमानी के लिए जगह नहीं होनी चाहिए।
मालवीय जी को हिंदू विचारधारा से जोड़ने वालों को उनका वह भाषण पढ़ना चाहिए जो
उन्होंने बनारस हिंदू विवि बिल पारित होने के दिन दिया था। हिंदी को भारतीय
सार्वजनिक जीवन के केंद्र में लाने में भी उनका योगदान सबसे अधिक रहा
है।
ऎसे दूरदृष्टा, जिन्होंने सिर्फ राष्ट्रहित सोचा
प्रो.
कमलशील बनारस हिंदू विश्वविद्यालय
मदन मोहन मालवीय भारत निर्माताओं में शुमार
रहे। वे कांग्रेस पार्टी के चार बार अध्यक्ष रहे। उन्होंने बनारस हिंदू
विश्वविद्यालय की स्थापना करवाई। इसके पीछे उनकी सोच थी कि लोग राष्ट्रवादी रहें,
अपनी संस्कृति का उन्हें अच्छा ज्ञान हो। बतौर नेता वे कर्मठ, ईमानदार स्वच्छ छवि
वाले थे। उस दौर में सनातन धर्म की बात कर उन्होंने सभी का ध्यान आकर्षित किया।
उनकी इस अवधारणा में सभी सार्वभौमिक मूल्य थे।
उन्होंने दलितों का मंदिरों में
प्रवेश कराने के लिए कार्य किया। वे नहीं चाहते थे कि हिंदू धर्म की पहचान
संकीर्णता से हो। वे हिंदू धर्म को संहिताबद्ध नहीं करना चाहते थे। उन्होंने
सांस्कृतिक अवधारणा को तवज्जो दी। पर कई दफा लोग उनके बारे में ठीक से जाने बिना ही
हिंदूवादी कहकर आलोचना करते हैं। उनके बहुआयामी व्यक्तित्व का अध्ययन ही नहीं किया
गया है।
वे दूरदृष्टि वाले नेता थे। उन्होंने उस जमाने में देश की औद्योगिक
विकास की नीति पर ऎतिहासिक भाषण दिया और बताया कि राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए
विकास कैसे किया जा सकता है। श्रमिकों के हित और सुरक्षा पर उन्होंने ध्यान आकर्षित
किया। देश की शिक्षा प्रणाली कैसी हो, इस पर उनका जोर रहा। जापानी शिक्षा पद्धति से
वे प्रभावित थे। ब्रिटिश शासन भी उनकी तार्किक बहस से घबराता था। चौरा-चोरी कांड
में अपने लोगों को छुड़वाने में अहम भूमिका निभाई। आधुनिकता कैसी हो, इस पर भी उनका
अलग दृष्टिकोण था।
श्रेष्ठतम विभूति थे
प्रो. विमल प्रसाद
अग्रवाल शिक्षाविद्
भारत ने जो श्रेष्ठतम विभूतियां देखी हैं उनमें मालवीय जी
एक हैं। शिक्षा के प्रति उनका समर्पण व योगदान अतुलनीय है। शिक्षा के प्रसार के लिए
धन संचय करने में उन्होंने कभी संकोच नहीं किया। यहां तक कि जब हैदराबाद निजाम ने
कहा कि मेरे पास ये जूतियां हैं, ले जाओ, तो उन्होंने चौराहे पर जाकर वो जूतियां ही
नीलाम करना शुरू कर दीं। हैदाराबाद निजाम को जब यह पता चला तो फिर उन्होंने उनसे
माफी मांगी और उनकी भरपूर सहायता की। वे दूरदर्शी इतने थे कि उस समय भी विवि में
साइंस और इंजीनियरिंग विभाग खोले। साथ टिहरी पर बांध बनाने के विरोध में भी
उन्होंने अंग्रेजों से एक लिखित समझौता किया था।
जब मैं देश लौटा तो सबसे
पहले लोकमान्य तिलक जी से भेंट हुई। उनका व्यक्तित्व हिमालय की तरह ऊंचा था। मेरे
लिए उनकी ऊंचाई मापना असंभव था, मैं लौट आया। फिर मैं देशबंधु गोखले जी से मिला। वे
समुद्र की तरह गहरे थे। मेरे लिए उनकी गहराई में उतरना कठिन था और वहां से भी लौट
आया। अंत में मैं महामना मालवीय जी के पास पहुंचा, वे गंगा की पवित्र धारा के समान
नजर आए। मुझे यह महसूस हुआ कि मैं इस पवित्र धारा में स्नान कर सकता
हूं। महात्मा गांधी
मालवीय जी के निकट बैठने पर मुझे हमेशा वैसी ही पावनता का
अहसास होता था जैसा कि पवित्र गंगा में एक डुबकी लगाने से होता है।जय प्रकाश
नारायण