एस. गुरुमूर्ति खोजी पत्रकार, कॉरपोरेट सलाहकार
फ्रांसीसी गुप्तचर सेवा ने एक बेल्जियाई नागरिक अब्देल-हामिद अबाउद को पेरिस हमले का मास्टरमाइंड करार दिया है। इस कांड में उसकी भूमिका काफी बड़ी है। सात में से चार हमलावर, जो इस कांड में मारे गए; फ्रांस के ही हैं। पांचवां, जो संभवत: एक सीरियाई था, वह शरणार्थी के भेष में ग्रीस पहुंचा और कई हफ्तों बाद उसने पेरिस में इस बमबारी को अंजाम दे दिया। एक मिस्रवासी भी शायद इसमें शामिल था और एक महिला भी। असंबद्ध लोगों के इस प्रकार इकट्ठा होने से कुछ मूलभूत सवाल उठते हैं, जो मामले की जड़ तक पहुंचने के लिए आवश्यक हैं। क्या, और कौन नहीं, बल्कि वास्तविक मुद्दा यह है कि किसने यह विसंगत समूह बनाया।
अपने ही लोगों के खिलाफ नफरत क्यों?
सीरियाई फ्रांस को निशाना बना सकते हैं, क्योंकि उसने उनके देश पर बमबारी की थी। परंतु कोई बेल्जियाई नागरिक क्यों इसमें शामिल हुआ होगा, जबकि फ्रांस ने बेल्जियम को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था। चार फ्रांसीसियों का सीरिया या इराक से क्या संबंध था; जन्म का, भाषाई अथवा सांस्कृतिक? वे खुद अपने देश में क्यों निशाना बनाएंगे? अपने लोगों को क्यों मारेंगे? उनकी नफरत की इंतहा का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि अपनी मातृभूमि को नुकसान पहुंचाने के लिए उन्होंने खुद के चिथड़े तक उड़वा लिए। अपने ही देश, संस्कृति और लोगों के खिलाफ इतनी नफरत क्यों? हमलावर समूह में एक बेल्जियाई, सीरियाई और एक महिला सहित फ्रांसीसियों का शामिल होना, इससे अधिक बेजोड़ समूह नहीं बन सकता था। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि जिस एक विचारधारा ने इन सबको एक साथ ला खड़ा किया, वह सिर्फ इस्लाम ही हो सकती है। इस्लाम का वह कौन-सा सूत्र है, यह बहस का विषय हो सकता है। परन्तु उनके उकसावे की वजह इस्लाम की ही कोई कड़ी है यह निर्विवाद है।
जुटे 25 हजार जिहादी
‘द इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया’ (आईएसआईएस) ने गर्व के साथ दावा किया है कि उन्होंने पेरिस में जिहाद छेड़ा। आईएस ही एकमात्र हमलावर है। यहां क्या और कौन महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि वास्तविक मुद्दा यह है कि यह बेजोड़ गुट बनाया किसने? अबू-बकर-अल बगदादी की अगुवाई में चल रहे आतंकी संगठन आईएस का उद्देश्य पैगम्बर मुहम्मद के वंशज मुस्लिम जगत को इस्लामिक स्टेट के ‘बैनर’ तले एक छत्र के नीचे लाकर उन पर शासन करना है। जून 2014 में मुहम्मद पैगम्बर की वंशावली का पता लगाने का दावा करते हुए आईएस ने बगदादी को ‘खलीफा’ की पदवी दी। इस्लामिक कानून के अनुसार सारे मुस्लिमों को खलीफा के प्रति वफादारी निभानी होती है।
अल बगदादी ने 2014 में रेडियो पर दिए एक संदेश में सारे मुसलमानों से अपील की थी कि वे इस्लामिक देशों मेें आएं और जेहाद का अपना सर्वोच्च कर्तव्य निभाएं। उसकी इस ‘आवाज’ पर नौ माह के अल्प समय में मार्च 2015 में सौ देशों से करीब बाईस हजार जिहादी अपने बूते सीरिया और इराक पहुंच गए। मई तक उनकी संख्या 25,000 तक पहुंच गई।
समर्थन में 60 गुट
हाल ही जिहाद का निशाना बने फ्रांस का उदाहरण लीजिए। करीब 520 फ्रांसीसी (जिसमें 116 महिलाएं हैं) सीरिया और इराक में जिहाद में शामिल हैं। इनमें से 137 करीब मारे जा चुके हैं। इस्लामिक आतंकी अड्डे और आतंकी दिनोंदिन खतरनाक रूप से बढ़ रहे हैं। नवम्बर 2014 में यूएई ने 83 इस्लामिक आतंकी गुटों की पहचान की थी। एक अध्ययन के अनुसार नवम्बर 2014 तक तीस देशों में करीब 60 जिहादी गुटों ने आईएस का समर्थन किया है। ‘खलीफा’ बगदादी क्षेत्र, जनसंख्या और राजस्व के लिहाज़ से इराक और सीरिया के एक बड़े हिस्से का नियंत्रण करता है। गत सितम्बर में मीडिया में रिपोर्ट थी कि रूसी गुप्तचर एजेंसी ने अमरीकी एजेंसी सीआईए और इंटरपोल को सूचना दी थी कि 87,000 जिहादी अमरीका और यूरोप में घूम रहे हैं; लेकिन उन्होंने यह मानने से इनकार कर दिया, क्योंकि वर्तमान राजनीतिक माहौल में यह व्यावहारिक नहीं है। इसके ठीक 60 दिन बाद पेरिस कांड हो गया।
क्या यह अचरज की बात है कि बगदादी की एक आवाज मात्र पर दुनिया भर में घूम रहे जिहादी आईएस की अगुवाई में जिहाद में शामिल हो जाएं। आईएस ने पहले से तैयार जिहादियों को खुला छोड़ दिया न कि नए जिहादी तैयार किए। इन जिहादियों को किसने उकसाया? इस सब ने दुनिया को फिर से 14 वीं सदी में पहुंचा दिया, जब जि़हाद एक इस्लामिक परम्परा हुआ करती थी। इतिहास फिर दोहराया जा रहा है।
इब्न तमैय्याह
भारत में ब्रिटिश राज के इतिहासकार चाल्र्स एलेन ने ‘द गॉड्स टेरेरिस्ट : वहाबी कल्ट एंड हिडन रूट्स ऑफ मॉर्डन जिहाद’ किताब में वहाबीवाद (आधुनिक इस्लामिक आतंकवाद की मार्गदर्शक विचारधारा) का जिक्र किया है। वहाबीवाद 18वीं सदी में आया पर इसके बीज सदियों पहले ही बो दिए गए थे। 14वीं सदी का इस्लामिक विद्वान जिसने जिहाद की विचारधारा को पुनस्र्थापित किया, वह है इब्न तमैय्याह। पैगम्बर मुहम्मद के जमाने में जिहाद का मतलब मुस्लिमों का वह आंदोलन था, जिससेपूरी दुनिया में इस्लाम का प्रचार और उसकी शक्ति को मानने के लिए संघर्ष छेड़ा जाए।
जिहाद यथार्थ हो गया
परन्तु जब इस्लाम एक बहु-प्रजातीय वैश्विक धर्म बन गया। जिहाद का किताबी मतलब यथार्थ हो गया। यथार्थवादियों ने पैगम्बर मुहम्मद के बहुदेववादियों के खिलाफ सैन्य अभियान की समाप्ति पर हदीथ में दिए उस बयान का हवाला देना शुरू कर दिया कि छोटा ‘जिहाद कबीर’ समाप्त हो गया है, अब बड़ा ‘जिहाद अकबर’ शुरू हो चुका है। इस वक्तव्य की इस्लाम में यह व्याख्या की जाती है कि बाहरी और भौतिक जिहाद खत्म हो चुका है और अब ज्यादा महत्वपूर्ण आंतरिक व नैतिक संघर्ष की बारी है। परन्तु मंगोलों द्वारा इस्लामिक भूमि को तबाह किए जाने के बाद इब्न तमैय्याह ने माना कि बड़े जिहाद ने इस्लाम को कमजोर कर दिया है। वह जिहाद की शाब्दिक और उदार विचारधारा के खिलाफ खड़ा हो गया।
…और सबसे बड़ा कर्म
कुरआन के अध्याय 2 की आयत 193 व अध्याय 8 की आयत 39 का हवाला देते हुए तमैय्याह ने तर्क दिया है कि पैगम्बर द्वारा हदीथ में जिहाद का विभाजन सही नहीं था, क्योंकि यह कुरआन में अल्लाह के शब्दों के विपरीत है। उसने घोषणा की, किसी भी मुसलमान के लिए इस्लाम के दुश्मनों के खिलाफ अदृश्य जिहाद सबसे बड़ा कर्म है। तमैय्याह ने इस्लाम को चार श्रेणियों में विभाजित किया – 1 ईसाई, 2 वे मुस्लिम जो इस्लाम को फिर से कबूले जाने तक गैर ईश्वरवादी आदतों में फंस गए थे। 3 वे मुस्लिम जो अपने धर्म के रीति रिवाजों का पालन नहीं कर रहे थे। 4. वे, जिन्होंने मुसलमान होने का दावा करते हुए भी इस्लाम को नकार दिया। उसने कहा, पहले दो के साथ शांति की कोई गुंजाइश नहीं है और अगले दो को तरस खाकर मार देना चाहिए।
अल-वहाब
तमैय्याह की अवधारणा उसके समय में नकार दी गई। उसे पाखंडी करार दे दिया गया। जेल तक में डाल दिया गया। परन्तु तमैय्याह की अवधारणा अवलम्बियों को लगातार आकर्षित करती रही। इसका सबसे प्रसिद्ध अनुयायी गुट था – इब्न अब्द अल वहाब, जो कि 18 वीं सदी में बनाया गया। जो आज वहाबी के नाम से जाना जाता है। चार सदी बाद 14वीं सदी में इसे नकार दिया गया। एलेन के अनुसार, अल-वहाब को मदीना में मुहम्मद हयात की निगरानी में ट्रेनिंग दी गई और इसके पिता भारत के सिंध प्रांत से थे। दोनों इब्न के अनुयायी थे। तमैय्याह अपने शागिर्दों को उगवादी जिहाद को अपनी मज़हबी कर्तव्य मानने को उकसाता था। जब अल-वहाब मदीना में ट्रेनिंग ले रहा था तो दिल्ली का शाह वलीलुल्लाह भी मदीना में था और तमैय्याह के पास हदीथ पढ़ रहा था। दोनों नौजवान अपने-अपने देश वापस चले गए। दिल्ली में वलीलुल्लाह ने इस्लाम के प्रारंभिक सिद्धांतों की ओर लौटने की अपील की। उसने हिन्दुस्तान में मुस्लिम शासन कायम करने की कोशिश की। उसने अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली को भारत बुलाकर हिन्दू मराठाओं को मार गिराने और औरंगजेब का सुनहरा दौर लौटाने की बात कही। परन्तु अहमद शाह की मात हुई ओर उत्तर भारत में मराठाओं का राज हुआ। अल वहाब वलीलुल्लाह से भी आगे निकला, एलेन के अनुसार, वह एक अचुनौतीपूर्ण मुकाबले वाला बेदिल इस्लाम लागू करने में समर्थ रहा। मुहम्मद गजनी के बाद ऐसा नहीं देखा गया, जिसने इस्लाम का हवाला देकर ग्यारहवीं सदी में भारत में बारह बार लूटपाट करके तबाही मचा दी थी।
कुरआन हदीथ की हो एक ही व्याख्या
अलवहाब की किताब ‘कॉल टू यूनिटी’, जो बाद में चार अंकों में प्रकाशित हुई; में वहाबी सिद्धान्त को समझाया गया है- इसके अनुसार कुरआन व हदीथ की एक ही व्याख्या होनी चाहिए न कि अलग। यह बताते हुए कि इस्लाम का जन्म जिहाद से ही हुआ है; सच्चे मुसलमानों को प्यार करना और काफिरों से नफरत करना ही वहाबी तरीका है।
हथियारों से लैस जिहाद
1744 में इस्लामिक इतिहास में एक मोड़ यह आया कि जब अल वहाब मुहम्मद एक प्रसिद्ध लड़ाके इब्न सऊद के साथ मिल गया तो एक ताकतवर अनीजा प्रजाति पैदा हुई। इन्होंने एक-दूसरे को पहचान दी। सऊद को धर्मनिरपेक्ष नेता (इमिर) माना गया तथा अल-वहाब को धार्मिक प्रमुख (इमाम) माना गया। सऊदी अरब के शासक सऊद के वंशज हैं। तमैय्याह ने काफी पहले सऊदी अरब को अल-वहाब का अनुकरण करने के लिए धन्यवाद दिया था। तमैय्याह के मुताबिक वहाब का इस्लाम इसका ताजातरीन अभियान है। दुनियाभर के जिहादी इस ओर आकर्षित हो रहे हैं। इन्हें पैसा और समर्थन दोनों मिल रहा है।
40 देशों से फंडिंग
रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने कहा है कि उन्होंने जी-20 के नेताओं को बताया है कि किस तरह जी-20 राष्ट्रों सहित 40 देशों से आईएस को पैसा मिल रहा है। अब भी कुछ उदारवादियों को लगता है कि उग्रवादी कुछ मुट्ठी भर राह भटके लोग हैं। हजारों को कम नहीं कह सकते। ये चलती-फिरती भर्ती की गई सेना है,जिसकी भर्ती वहाबी इस्लाम द्वारा की गई है। तमैय्याह-वहाबी विचारधारा ने कई मुस्लिमों को तैयार कर जिहादियों को खुले में छोड़ दिया है। अन्य इस्लामिक विचारधारा के लोग भले ही कम हों या ज्यादा, सीरिया, इराक, मिस्र, अफगाानिस्तान या कहीं और अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वहाबी इस्लाम पर राज करने को उतारू हैं। इब्न तमैय्याह मौजूदा इस्लामिक आतंकवाद की जड़ है। क्या अबाउद फिर पेरिस का मास्टरमाइंड है? नहीं।
मास्टरमाइंड इब्न तमैय्याह है, जिसने जिहाद को फिर से हथियार दिए, जिसने गत शुक्रवार को पेरिस हमला किया। पिछले कुछ दशकों में इसने कई निर्दोषों को जिहाद की भेंट चढ़ाया है। इस्लाम को बचाने का कोई भी संघर्ष इब्न तमैय्याह और अलवहाब को नकार कर शुरू किया जाना चाहिए। यह आज के आतंक और नफरत की नई परिभाषा है। हर शांतिप्रिय मुसलमान के पास इन्हें नकारने के वाजिब कारण हैं। जैसे इब्न तमैय्याह को पैगम्बर की उपेक्षा के लिए और अलवहाब को तमैय्याह का साथ देने के लिए, क्या इस्लामिक दुनिया विशेषकर सऊदी अरब उन्हें इस्लाम से भटका हुआ घोषित करेगा? यह इस्लाम में एक स्वस्थ बहस का विषय है। शांतिप्रिय मुसलमानों को इस पर विचार करना चाहिए।
नोट : जब तक दुनिया का ध्यान जिहाद के नाम पर आतंक फैलाने के लिए किसी न किसी गुट पर लगाा रहेगा, इसके सही कारण का पता नहीं लगाया जा सकेगा। एक गुट कमजोर होगा तो दूसरा सिर उठा लेगा, जैसे अलकायदा कमजोर पड़ा तो आईएस आ खड़ा हुआ।