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कहेंगे लोग  कि बेकल, कबीर जैसा था

Published: Dec 04, 2016 10:26:00 pm

रमशहूर शायर और अदबी जमात के बड़े नाम बेकल उत्साही नहीं रहे। अवध की मिट्टी से ताल्लुक रखने वाले

Shire Rmshur

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रमशहूर शायर और अदबी जमात के बड़े नाम बेकल उत्साही नहीं रहे। अवध की मिट्टी से ताल्लुक रखने वाले बेकल उत्साही की शायरी गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल देने वाली है। उनकी शायरी में मिट्टी की भीनी महक महसूस होती है और गांव-कस्बे की जिंदगी की जद्दोजहद भी। शायरी की दुनिया मेें बेकल उत्साही के नाम से चर्चित अवध के इस शायर के इस नामकरण से जुड़ा किस्सा बहुत कम ही लोगों को पता होगा। दरअसल, उनका बचपन का नाम मोहम्मद शफी खान था।


यह बात 1950 के दशक की है, जब युवा मोहम्मद शफी खान अपने परिवार वालों के साथ बाराबंकी जिले में मशहूर हाजी वारिस अली शाह की देवाशरीफ दरगाह में हाजरी लगाने गए थे। इस दौरान वहां शाह हाफिज प्यारी मियां ने कहा- ‘बेदम गया, बेकल आयाÓ। इस वाकये के बाद मोहम्मद शफी खान ने अपना नाम बदलकर बेकल वारसी रख लिया था। देश 1947 में आजाद हुआ और पहले प्रधानमंत्री बने पंडित जवाहरलाल नेहरू। वर्ष 1952 में गोंडा जिले में एक चुनावी सभा में पं. नेहरू को पहुंचना था। बेकल उत्साही पर किताब लिखने वाले उन्हीं के शहर के इकराम वारिस बताते हैं कि जब नेहरू मंच पर पहुंचे तो बेकल वारसी ने उनका स्वागत ‘किसान भारतÓ शीर्षक वाली एक ओजपूर्ण कविता से किया।

पंडित नेहरू बेकल वारसी के अंदाज-ए-बयां से काफी प्रभावित हुए। उन्होंने सभा में ही कहा, ‘ये हमारा उत्साही शायर हैÓ। इसके बाद मोहम्मद शफी खान का नाम बेकल वारसी से बदलकर बेकल उत्साही हो गया। साहित्य की दुनिया में वे आगे इसी नाम से मशहूर हुए। बेकल सूफी परंपरा के शायर थे। अपनी अवधी शायरी के लिए वे खासे मशहूर रहे। डीडी के शेरो-शायरी से जुड़े कार्यक्रम Óबज्मÓ व अन्य टीवी कार्यक्रमों में उन्होंने बतौर होस्ट की भूमिका भी निभाई थी।

 देशभर में साहित्य और कवि सम्मेलनों का हिस्सा बनने के साथ ही वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कवि सम्मेलनों में शिरकत करते रहे। बेकल उत्साही को राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्वकाल में राज्यसभा में मनोनीत भी किया गया था। वर्ष 1976 में साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री सम्मान प्रदान किया। एक शायरी तो खासी चर्चित है, जिसमें वे उम्मीद करते हैं कि उनके न रहने के बाद उन्हें कबीर के सिलसिले में गिना जाए। बेकल की शायरी का यह अंश इसे बताता है।

सुना है मोमिन न गालिब न मीर जैसा था,
हमारे गांव का शायर नजीर जैसा था।
छिड़ेगी दैरो-हरम में ये बहस मेरे बाद,
कहेंगे लोग कि बेकल कबीर जैसा था।

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