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सत्ता के मद में उड़ते नेता

पायलट किसी विशिष्ट व्यक्ति के लिए उड़ान में देरी नहीं
कर सकता। वह यह परवाह नहीं करता कि कौन विमान में चढ़ रहा है और कौन छूटा।

Jul 03, 2015 / 10:37 pm

शंकर शर्मा

Aircraft,

Aircraft,

पिछले दिनों मुंबई से अमरीका जाने वाले विमान ने और लेह से उड़ने वाले विमान ने देरी से उड़ान भरी। लेह से उड़ान भरने वाले विमान से तो केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजीजु और उनके सहयोगियों को जगह देने के लिए तीन लोगों को विमान से उतारा भी गया। अमरीका जाने वाले विमान की देरी के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को जिम्मेदार माना गया लेकिन उन्होंने इस आरोप से साफ इनकार किया है।

रिजीजु ने घटना पर खेद और लोगों को उतारे जाने पर अपनी अनभिज्ञता व्यक्त कर दी है। सवाल यह है कि क्या विमान की उड़ान में देरी के लिए सत्ता का अभिमान जिम्मेदार है? इस देरी के लिए पायलट कितने जिम्मेदार ठहराये जा सकते हैं? ऎसे ही सवालों पर जानकारों की राय आज के स्पॉटलाइट में…

बीके चतुर्वेदी पूर्व सदस्य, योजना आयोग
इस तरह का वीआईपी कल्चर सिर्फ भारत में ही है और किसी देश में ऎसा नहीं होता। इस वीआईपी कल्चर की वजह है हमारे देश में सामंती मानसिकता की जकड़न का अभी मजबूत होना। इस मानसिकता में यह मान लिया जाता है कि आम आदमी के अधिकारों का वीआईपी की तुलना में कोई मोल नहीं है और उनकी उपेक्षा की जा सकती है। दुनिया के दूसरे हिस्सों में ऎसा किया जाना संभव नहीं है।

विकसित देशों में ऎसा तभी संभव है, जबकि आप अपने लिए व्यावसायिक रूप से विशेष इंतजाम करें। सार्वजनिक साधनों और सुविधा की कीमत पर तो ऎसा करना बिल्कुल संभव नहीं है। दूसरे देशों में कई एयरपोर्ट पर विशेष सुविधा के लिए लाउंज बना दिये जाते हैं, जिसमें आप भुगतान कर उस सुविधा का लाभ उठा सकते हैं, जैसे आपको अपनी टिकट और कस्टम आदि क्लियरेस के लिए लाइन में नहीं लगना पड़ेगा, अधिकारी आपकी लाउंट सीट पर आकर ही सारी औपचारिकतांए पूरी कर जाएंगे। पर इस सुविधा का लाभ हर वह सरकारी या निजी आदमी उठा सकता है, जो कि इसके लिए भुगतान करे।

हल खोजा जा सकता था
किरेन रिजीजु मामलें में भी समस्या का हल व्यावसायिक स्तर पर खोजा जा सकता था। अगर विमान के यात्रियों से कहा जाता कि अगर आपमें से कोई अपनी टिकट तीन या चार गुनी कीमत पर बेचने को तैयार हो, तो वह बेच सकता है। संभव है कई यात्री तैयार हो जाते। पर जब डंडे के बल पर कोई चीज हासिल करने की मानसिकता बनी हुई हो तो दूसरे उपायों के बारे में कौन सोचता है। यह वीआईपी कल्चर हमारे देश के लिए अभिशाप बना हुआ है।

सिर्फ हवाई जहाज लेट होने की बात नहीं है। यह हमारे जीवन में हर जगह रचा-बसा है। आप किसी लाइन में खड़े हुए हों, पर आप के देखते-देखते देर से आने वाले किसी दूसरे आदमी सबसे आगे खड़ा कर दिया जाता है। आप कहीं जाने के लिए घर से निकले हों, पर पता चलता है कि आधा घंटे के लिए पूरा मार्ग ही वीवीआईपी मूवमेंट के लिए रोक दिया गया है। बुनियादी संरचना विकास या योजना के स्तर पर इस समस्या का हल नहीं ढूंढ़ा जा सकता।

ये तो रवैया का मसला है
इस समस्या का हल तो यही है जनता में जागरूकता अभियान चलाया जाए। मीडिया इस मुद्दे को सक्रियता से उठाए। इसके खिलाफ जनमत तैयार करे। लोग खुशी से किसी देशी-विदेशी सम्मानित व्यक्ति के लिए जगह दें तब तो समझा जा सकता है, पर इस तरह से जोर-जबरदस्ती करना तो मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है, लोकतंत्र का मजाक बनाना है।

संस्कृति है जिम्मेदार
प्रो. जी रघुराम, आईआईएम, अहमदाबाद
यद्यपि इन दो प्रकरणों के बारे में मुझे ठीक जानकारी नहीं है, कि क्या हुआ था और कौन इसके लिए जिम्मेदार है, पर अगर ये सब सच है यह अच्छे संकेत नहीं हैं। यह कल्चर भारत को आगे नहीं बढ़ने देगा। भारत में यह पहली बार नहीं हुआ है। कई बार सीधे-सीधे इस तरह से वीवीआईपी को प्राथमिकता देने के लिए विमान या ट्रेनें लेट किए जाते हैं तो कई बार अप्रत्यक्ष रूप से, जबकि पूरे ट्रैफिक को ही रोक दिया जाता है अथवा वीवीआईपी विमान की लैंडिंग के लिए दूसरे विमानों को लेट किया जाता है।

बचने के उपाय तो हैं
थोड़ी सी प्लानिंग, दूरदर्शिता और कुछेक उपायों से इससे बचा जा सकता है। उदाहरण के लिए अमरीका में राष्ट्रपति के विमान के लिए अलग से एयरपोर्ट बनाया गया है। इसलिए उसके कारण किसी और फ्लाइट में बाधा पहुंचने की आशंका ही नहीं होती। इसी तरह से प्लेन में दो सीटें आरक्षित रखी जा सकती हैं, जो कि अंतिम समय में रिलीज की जाएं। इसी तरह से कुछ अन्य ऎसे उपाय सोचे जाने चाहिए। इसके लिए सबसे पहला कदम होगा कि, वीआईपी संस्कृति को खत्म करने की दिशा में नीतिगत संकल्प लें। फिर बचने के उपाय खुद ब खुद नजर आने लगेंगे।

पायलट किसी की प्रतीक्षा नहीं करते
स्पॉटलाइट डेस्क
एयर इंडिया विमानों की उड़ानों में देरी के संदर्भ में विमानन सेवाओं से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि विमानों की उड़ान के संदर्भ में फ्लाइट डयूटी टाइम लिमिटेशन (एफडीटीएल) बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। यह पायलट और सहयोगी पायलट के लिए अलग और अन्य स्टाफ के अलग होता है। विदेशी व घरेलू उड़ानों ही नहीं विमानों की भी अलग-अलग किस्मों के आधार पर एफडीटीएल भी अलग-अलग होती हैं।

तकनीकी मामला होगा
कई बार तकनीकी दिक्कतें के कारण कहा जाता है कि विमान की उड़ान में देरी का कारण तकनीकी था। व्यावसायिक विमानन सेवा से संबद्ध लोगों के मुताबिक अमरीका की उड़ान वाले विमान की देरी के मामले में लगता है कि यह मामला तकनीकी ही रहा होगा। यह सभी की जानकारी मेंं होना चाहिए कि विमान के अंदर बैठने के बाद कोई कितना भी बड़ा वीवीआईपी हो, विमान का पायलट उसके साथ कोई व्यवहार नहीं करता। लोगों से हाथ मिलाने भी नहीं आता।

विमान के कॉकपिट में जब पायलट और सहयोगी पायलट आकर बैठ जाते हैं, तभी यात्रियों को विमान में बैठने के लिए कहा जाता है। पायलट किसी के लिए भी उड़ान में देर नहीं कर सकता। उड़ान के संदर्भ में इन नियमों का सख्ती से पालन होता है कि यदि विमान में कोई तकनीकी खराबी है तो पायलट को विमान उड़ाने लायक स्थिति में लाने से पहले बुलाया नहीं जाएगा।

बेहद गंभीर पेशा है यह

विमान का पायलट होना बहुत ही गंभीर किस्म का पेशा है। इसमें केवल छह महीने के लिए ही लाइसेंस मिलता है और कड़े परीक्षणों को पास करने पर ही लाइसेंस का नवीकरण किया जाता है। पायलट या सहयोगी पायलट से उड़ान में देरी या अन्य किसी चूक की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी जाती। पायलट किसी अति विशिष्ट व्यक्ति के लिए विमान उड़ाने में देरी करेगा, उससे यह उम्मीद करना बेमानी है।

वह यह परवाह नहीं करता कि कौन व्यक्ति विमान में चढ़ रहा है और कौन छूट रहा है। व्यावसायिक पायलट किसी भी सूरत में उड़ान के लिए देर नहीं कर सकता। केवल तकनीकी कारण हो सकते हैं देरी के लिए। वीजा गलत ले आने या किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के देरी से आने के कारण विमान की उड़ान में देरी शायद ही किसी पायलट ने की होगी। जहां तक गृह राज्य मंत्री किरण रिजीजु के लिए यात्रियों को उतारने का सवाल है तो इस बारे में पूरी जानकारी नहीं है कि जिन्हें उतारा गया उन्हें किस प्रकार का प्रस्ताव दिया गया। बिना किसी अतिरिक्त सुविधा के प्रस्ताव और सहमति के ऎसा होना कठिन ही है।

प्यादे से फरजी भयो…
शिवकुमार शर्मा, पूर्व न्यायाधीश
सत्ता प्राप्त करने के बाद व्यक्ति में अहंकार आना स्वाभाविक है। भाष्ाणों में चाहे खुद को जनता का सेवक बताते रहें लेकिन मंत्री, व्यवहार में क्या-क्या कर गुजरते हैं इसके दो उदाहरण पिछले दिनों सामने आए हैं। एयर इण्डिया की इन्टरनेशनल फ्लाइट से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस को मुम्बई से अमरीका जाना था। उनके साथ उनके प्रधान सचिव को भी यात्रा करनी थी। प्रधान सचिव जल्दबाजी में यात्रा से सम्बंधित आवश्यक कागजात घर पर भूल आए।

प्रधान सचिव की इस असावधानी को सहज में लेते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने अपनी “पावर” का अनुचित उपयोग करते हुए प्लेन को एक घंटा पचास मिनट से भी अधिक समय तक रोके रखा। विमान में बैठे हुए 250 यात्री परेशान होते रहे लेकिन मुख्यमंत्री पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। जब प्रधान सचिव परदेसी कागजात लेकर एयर पोर्ट पहुंचे उसके बाद ही फलाइट टेक ऑफ हुई।

वीवीआईपी कल्चर का दूसरा उदाहरण लेह एयर पोर्ट पर देखने को मिला। केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू तथा उनकी टीम के दो सदस्यों को स्थान उपलब्ध कराने के लिए विमान में बैठे हुए भारतीय वायु सेना के अधिकारी, उसकी पत्नी तथा बच्चे को विमान से उतार दिया गया। यह प्लेन भी एयर इण्डिया का था। आश्चर्य की बात यह है कि भारतीय वायुसेना के अधिकारी व उसके परिवार के सदस्यों को बोर्डिग पास इश्यू हो चुका था और उसके बाद ही वे प्लेन में बैठे थे। इस बार भी प्लेन पचास मिनट से भी अधिक समय तक रोके रखा गया।

बचाव के सब तर्क बेकार

मंत्रियों की ओर से बचाव में कुछ भी तर्क दिए जाएं लेकिन जिस प्रकार का अभिमान इन दो नेताओं द्वारा दिखाया गया है उससे यह तो प्रतीत नहीं होता कि वे भारत के प्रधान सेवक की रीति-नीति का अनुसरण कर रहे हैं। ऎसा तो अंग्रेजों के समय होता था। भारतीय प्रजातंत्र के ये नये राजा जिस प्रकार अपनी सत्ता का भोंडा प्रदर्शन कर रहे हैं उससे तो दूर-दूर तक सेवा की झलक नहीं मिलती है। जनता को इससे कुछ लेना-देना नहीं है कि कौन मंत्री सत्ता का आनन्द ले रहा है तथा कौन सत्ता मद में चूर है। जनता तो यह भी नहीं चाहती कि मंत्री उसकी सेवा करें लेकिन कम से कम सत्ता का आनन्द लेते हुए मंत्री ऎसा कार्य तो न करें जिससे जनता को परेशानी हो।

…बदल जाती है चाल

“प्यादे से फरजी भयो टेढ़ो-टेढ़ो जाय।” जो प्यादे से वजीर बन जाता है उसकी तो चाल ही बदल जाती है। ठीक है मंत्री महोदय अपनी चाल बदल लें लेकिन उस चाल से आम जनता के लिए अवरोध पैदा न करें। सत्ता में एक नशा होता है। दल कोई भी हो जब सत्ता पर काबिज होता है तो उसके मंत्री, नेता, कार्यकर्ता सभी अहंकारी हो जाते हैं। सत्ता का घर वही होता है सिर्फ दरवाजों के ताले बदल जाते हैं। विष्ा वही रहता है सिर्फ बोतलें और प्याले बदल जाते हैं। बदली हुई सत्ता पर ये पक्तियां अक्षरश: लागू होती हैं- बदले रिवाज पण्डित पहले वाले बदले/ पूजाघर के भगवानों ने आले बदले/ जल वही रहा दुर्गन्धभरा मटमैला सा/ बदला बहाव, पोखर बदले, नाले बदले/ हम कीटों के हिस्से तो मरना ही आया/ क्या हुआ अगर ये मकड़ी के जाले बदले।


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