कितने ही रेल बजट बने और पूरे हो गए। यात्रियों की सुविधाओं का पिटारा खोलने का दावा हर बजट में किया गया। हर बजट का सत्ता पक्ष ने परम्परा के तहत स्वागत किया तो विपक्ष ने हताश और निराश कर देने वाला करार दिया। सालों से ये रीत निभाई जा रही है और आगे भी निभाई जाती रहेगी लेकिन असल में यात्रियों की चिंता है किसे? चिंता होती तो क्या रेल यात्री आए दिन यूं लुटने को मजबूर होते? स्टेशन और ट्रेन में मिलने वाले नाश्ते-खाने की दरों के बारे में आरटीआई से मिली जानकारी आंखें खोलने वाली है। रेल मंत्री की भी और जन सुविधाओं की बढ़ोतरी के लम्बे-चौड़े दावे करने वाले अधिकारियों की भी। जनता की आंखें तो पहले से ही खुली हैं लेकिन वो लाचारी जताने के अलावा कुछ कर नहीं सकती।
आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार ट्रेन में 45 रुपए वाली शाकाहारी थाली के 90 रुपए और 15 रुपए वाली जनता थाली के 30 रुपए वसूल किए जाते हैं। रेलवे बोर्ड के दिशा-निर्देशों के अनुसार ट्रेन में मिलने वाले खाने-पीने की रेट लिस्ट चस्पा होना जरूरी है लेकिन किसी ट्रेन में ये नहीं मिलती। यात्री करें तो क्या करें? और जाएं तो कहां जाएं? ट्रेन में मौजूद टीटी इससे पल्ला झाड़ लेते हैं और अधिकारियों के पास शिकायत सुनने का समय नहीं होता।
लम्बी दूरी के ट्रेन यात्रियों के समक्ष महंगी दरों पर खाना खरीदने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं होता। ऐसा नहीं कि रेल अधिकारियों और दूसरे कर्मचारियों को रेलवे बोर्ड के दिशा-निर्देशों की जानकारी नहीं होती हो। लेकिन यात्रियों की शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं देता। सरकार बुलेट ट्रेन चलाए इससे किसी को ऐतराज नहीं लेकिन पहले आम रेल यात्री को सामान्य सुविधाएं तो मुहैया हों। ट्रेन में खान-पान के अलावा सुरक्षा व्यवस्था ऐसे मुद्दे हैं जिसे लेकर यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। हर रेल बजट में यात्री सुविधाओं के नाम पर लम्बी-चौड़ी घोषणाएं करके तालियां बटोरी जाती हैं लेकिन जमीन पर नजर उतना आता नहीं। इस साल का रेल बजट आने को है।
हर बार की तरह इस बार भी घोषणाओं की बरसात तय है। लेकिन आम यात्री तो यही चाहता है कि अब तक हो चुकी घोषणाओं पर ही अमल हो जाए तो उसका कल्याण हो सकता है। रेल बजट हो अथवा आम बजट, नई घोषणाओं से पहले पुरानी घोषणाओं के क्रियान्वयन में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई भी होनी चाहिए। अच्छा तो ये हो कि रेल मंत्री और रेलवे बोर्ड के बड़े अधिकारी बिना ढोल पीटे यदा-कदा गोपनीय तरीके से आम यात्रियों की तरह रेल में सफर भी करें। तब उन्हें घोषणाओं और जमीनी हकीकत के बीच का अंतर समझ में आएगा और तभी आम रेल यात्री को अपने दिन बहुरने की उम्मीद जागेगी।