पूरी दुनिया को दिख रहा है कि पाकिस्तान आतंकवाद को न सिर्फ समर्थन दे रहा है बल्कि आतंककारियों को पाल-पोस भी रहा है। नहीं दिख रहा तो उनको जो आतंकवाद को कुचलने की बातें तो करते हैं लेकिन बयानों से आगे नहीं बढ़ते। कभी बढ़े भी तो तब जब आतंकवाद गिरेबां तक आ पहुंचे। अमृतसर के ‘हार्ट ऑफ एशिया’ में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति एकदम सटीक बोले। उनका मानना था कि पाकिस्तान की मदद बिना तालिबान एक दिन भी नहीं टिक सकता है।
जमीनी हकीकत है भी यही। लेकिन ये बात न अमरीका के समझ में आ रही है और न उसके मित्र राष्ट्रों के। चीन के तो समझ में आ भी नहीं सकती। इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को पकडऩे और मौत की सजा देने की बात अधिक पुरानी नहीं है। अमरीका को सद्दाम नहीं सुहाता था, सो उसने सद्दाम के साथ-साथ इराक को भी तबाह कर डाला। बहाना बनाया कि इराक ने रासायनिक हथियारों का निर्माण कर रखा है। कुवैत पर इराकी हमले की आड़ में अमरीका ने इराक पर धावा तो बोला, लेकिन रासायनिक हथियारों को सामने नहीं ला पाया। उसे तो सद्दाम से बदला लेना था, सो ले लिया।
अमरीका पर आतंककारी हमला हुआ तो अलकायदा के ओसामा बिन लादेन के पीछे पड़े अमरीका ने उसे खत्म करके ही दम लिया। लेकिन बात दुनिया में दूसरी जगह फैल रहे आतंकवाद की हो तो अमरीका बयानों से आगे खिसक ही नहीं पाता।
पाकिस्तान में छिपे बैठे आतंककारी दाऊद इब्राहिम के बारे में भारत अमरीका को तमाम सबूत दे चुका है लेकिन बात आगे बढ़ नहीं रही। ये बात सही है कि भारत को अपनी लड़ाई स्वयं ही लडऩी होगी। लेकिन यही लड़ाई मिलकर लड़ी जाए तो समस्या के खात्मे में आसानी हो सकती है। अमरीका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने की बात कही है। भविष्य बताएगा कि ट्रंप अपने वादे पर खरे उतरते हैं या फिर दूसरे राष्ट्रपतियों की तरह वे भी बयानों से आगे नहीं बढ़ पाएंगे।