देेश के सबसे बड़े प्रदेश के ताकतवर मंत्री यदि प्रधानमंत्री पर गंभीर आरोप लगाए तो इसे क्या माना जाए? नेताओं की आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति का साधारण हिस्सा या कुछ और? उत्तर प्रदेश के मंत्री आजम खान यूं तो विवादास्पद बयान देने के लिए जाने जाते रहे हैं।
भाजपा और संघ परिवार पर उनके बयान कोई नई बात नहीं है। लेकिन इस बार उन्होंने देश के प्रधानमंत्री पर जो आरोप जड़ा है वह ऐसा नहीं, जिसे हवा में उड़ाया जा सके। आजम ने साफ शब्दों में कहा कि पिछले साल दिसम्बर में लाहौर में हुई मोदी-शरीफ मुलाकात के दौरान दाऊद इब्राहिम भी मौजूद था और मोदी से उसकी मुलाकात भी हुई। भारत के मोस्ट वांटेड आतंककारी के बारे में यदि पाकिस्तान में भारतीय प्रधानमंत्री से खुफिया तौर पर मिलने के आरोप लगें तो यह देश में ही नहीं दुनिया भर के लिए चर्चित मामला बन सकता है।
उस सूरत में जबकि आजम खान इस मुलाकात के सबूत होने का दावा कर रहे हैं। आजम खान के आरोपों का सरकार के स्तर पर तुरंत खंडन कर दिया गया। अब गेंद आजम के पाले में है। वे देश के समक्ष वे सबूत पेश करें जो मोदी-शरीफ की मुलाकात के दौरान दाऊद इब्राहिम के मौजूद रहने की पुष्टि करते हों।दाऊद कोई छोटा-मोटा अपराधी नहीं जो आजम के आरोपों को सामान्य आरोपों की तरह मानकर दरकिनार कर दिया जाए।
वह देश का वो दुश्मन है जिसके हाथ सैकड़ों भारतीयों के खून से सने हैं। मुम्बई सीरियल धमाकों से लेकर पिछले दो दशक में हुए अनेक आतंककारी हमलों में दाऊद की भूमिका के सबूत भारत पाकिस्तान को सौंपता रहा है। भारत का मानना है कि दाऊद पाकिस्तान में ही छिपा है और इसके पीछे पाकिस्तानी सरकार और सेना का वरदहस्त उसे हासिल है।
भारत, अमरीका और यूरोपीय देशों समेत संयुक्त राष्ट्र संघ में भी ये मामला जोर-शोर से उठ चुका है। ऐसे में आजम का बयान खास मायने रखता है। आजम के बयान को सरकार आधारहीन बता चुकी है। देश चाहता है कि आजम खान अपने सबूत पेश करें। उन्होंने जो आरोप लगाए हैं वे एक भाजपा नेता के खिलाफ नहीं बल्कि देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ हैं। आजम खान के आरोप भाजपा, समाजवादी पार्टी, कांग्रेस अथवा दूसरे राजनीतिक दलों की अंदरूनी राजनीति का मामला भर नहीं है। साम्प्रदायिक दंगों को लेकर राजनीतिक दलों का नजरिया भले अलग-अलग रहता आया हो लेकिन दाऊद समूचे देश का दुश्मन है और उसे उसी रूप में लेने की जरूरत है।
महज राजनीतिक सुर्खियां बटोरने के लिए ऐसे आरोप लगाना राजनीतिक दलों ही नहीं समूचे देश के लिए घातक होगा, जिससे बचने की जरूरत है। अब यदि आजम सबूत पेश नहीं कर पाएं तो उन पर आपराधिक कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने किसी आम व्यक्ति पर नहीं देश के प्रधानमंत्री पद पर आसीन व्यक्ति पर हमला बोला है। वे सबूत पेश नहीं कर पाएं तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर उन पर मुकदमा चलाना चाहिए ताकि दूसरा राजनेता ऐसे संगीन आरोप लगाने का दुस्साहस न कर सके।