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लाभ के लिए लामबंद

Published: Feb 12, 2016 09:45:00 pm

सांसदों को सरकारी खर्च पर विदेशों में सैर-सपाटे का अधिकार तभी मिल
सकता है जब पहले सभी भूखों को भोजन और मरीजों को दवाई उपलब्ध हो। जब हर
गांव सड़क से जुड़े और हर विद्यालय में अध्यापक मौजूद हो

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काश, हमारे जनप्रतिनिधि कभी ये समझने का प्रयास भी करते कि वे राजनीति में किसलिए आए हैं? जनता, समाज और देश का कल्याण करने के लिए या सिर्फ अपने उत्थान के लिए?

पार्षदों से लेकर सांसदों के बयानों और भाषणों पर गौर किया जाए तो एकबारगी लगेगा कि जन कल्याण की भावना इनके मन में कूट-कूट कर भरी है। लेकिन उनके आचरण पर गौर किया जाए तो सच्चाई खुद बयां हो जाती है। संसदीय समिति के सदस्यों ने सांसदों के वेतन-भत्ते दोगुने करने के सरकारी प्रस्ताव को तुरंत लागू करने की वकालत की है। खास बात ये कि इन सदस्यों में सभी दलों के सांसद शामिल हैं। संसदीय समिति के सदस्यों का सरकार के किसी भी प्रस्ताव को शीघ्र लागू कराने के लिए दबाव डालना गलत नहीं माना जा सकता। लेकिन अपने वेतन-भत्तों को लागू कराने के प्रस्ताव के अलावा दूसरे कितने प्रस्तावों के लिए वे ऐसा दबाव बनाते हैं। संसद में कितने विधेयक लंबित पड़े हैं लेकिन सांसद उनके लिए कभी चिंतित नजर क्यों नहीं आते? सांसदों की संख्या तो आठ सौ से कम है। इनमें पूर्व सांसदों को भी जोड़ लिया जाए तो संख्या दस हजार से अधिक नहीं बैठती होगी। जबकि जनहित से जुड़े अनेक ऐसे मामले हैं जिससे करोड़ों लोगों को लाभ मिल सकता है लेकिन सालों तक अटके पड़े रहते हैं।

जनहित के तमाम ऐसे मुद्दों पर सांसद या तो दलगत संकीर्णता में फंसकर रह जाते हैं या फिर ऐसे विषय उनकी प्राथमिकताओं में ही शुमार नहीं रहते। दस-बारह लाख मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद के मायने बहुत बड़े होते हैं। सांसद इतने मतदाताओं के साथ उन लोगों के प्रति भी जवाबदेह होता है जो मतदाता नहीं हैं। सांसद की प्राथमिकता उन वादों को पूरा करना क्यों नहीं होनी चाहिए जो चुनाव से पहले उसने किए थे?

जनता का सच्चा सेवक बनकर उनके दुख-दर्द दूर करने की ललक अधिकांश सांसद क्यों नहीं दिखाते? लेकिन जब बात वेतन-भत्तों अथवा सरकारी खर्च पर सैर-सपाटा करने की हो तो सब सांसद एक हो जाते हैं। विचारधारा की सीमाएं भी समाप्त हो जाती हैं और क्षेत्रीय सीमाएं भी। ये सही है कि सांसद भी एक इंसान होते हैं, उनके भी घर- परिवार होते हैं। उनका भरण-पोषण करना भी उनकी ही जिम्मेदारी होती है। उन्हें भी बेहतर जिंदगी जीने का हक है। लेकिन तब जब देश के दूसरे लोगों को दो वक्त की रोटी ढंग से नसीब हो सके। सांसदों को सरकारी खर्च पर विदेशों में सैर-सपाटे का अधिकार तभी मिल सकता है जब पहले सभी भूखों को भोजन और मरीजों को दवाई उपलब्ध हो। जब हर गांव सड़क से जुड़े और हर विद्यालय में अध्यापक मौजूद हो, तभी सांसद अपने वेतन-भत्ते दोगुने करने की मांग करने के हकदार माने जा सकते हैं। ‘जनसेवक’ का अर्थ ‘देने वाला’ माना जाए न कि ‘पाने वाला’।

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