सुबह साढ़े पांच बजे का
किस्सा है। अपनी मीठी नींद के आगोश से निकल कर हम डॉक्टर की सलाह और घराली की डांट
का सम्मान करने के लिए घूमने निकले थे। साथ में “जैकी” भी था। घर से थोड़ी ही दूर
बच्चों की स्कूल के सामने पहुंचे थे कि थोड़ा आगे एक लक्जरी कार आकर रूकी। कार में
बोतलें खड़खड़ाने की आवाज आई। हम चौंके और देखते-देखते कार वाले ने दारू की बोतलें,
बीयर के केन, चार-पांच गिलास, पानी की बोतलें और सिगरेट की कुछ डिब्बियां बीच सड़क
पर गिरा दी और कार लेकर चल दिया।
उसकी इस हरकत पर हम तो चुप रहे लेकिन जैकी भोंकता
हुआ उसकी तरफ बढ़ा तो उसने एक बोतल उठा कर मारी। फुर्तीला जैकी एक तरफ हो गया लेकिन
बोतल के टुकड़े सारी सड़क पर फैल गए। जबकि इस ब्ा्रह्मबेला में लोग मंदिर के लिए
निकलते हैं, वह बिगड़ैल अमीरजादा यह “पुण्य” करके चलता बना। जैकी कुछ दूर कार के
पीछे दौड़ा लेकिन थक हार कर वापस आ गया। हम क्या करते। अपने पैरों से वह सारा कचरा
सड़क के किनारे सरका कर आगे चल दिए। घूमते वक्त हम सोच रहे थे कि निश्चित रूप से वह
शराबी युवक उन लोगों में होगा जिसने अपनी शहरी जमीन बेच कर फटाफट धन प्राप्त किया
है।
वह खानदानी तो हो ही नहीं सकता था। दरअसल इस बाजारू अर्थव्यवस्था ने
करोड़पति तो लाखों पैदा कर दिए पर उन्हें सभ्य नहीं बना पाई। वह शराबी एक टुच्ची
मनोवृत्ति का नमूना था। जो महंगी शराब तो पीता था लेकिन किसी महंगी जगह बैठना उसकी
आदत में नहीं थी। कहावत भी है कि सुअर के लिए चाहे मखमल के मुलायम गद्दे बिछा दो
लेकिन वह कीचड़ में ही जाकर लिथड़ना पसन्द करता है।
निस्संदेह नए युग का वह होनहार
अपने पैसे के घमण्ड में चूर था तभी तो उसमें इतनी भी इंसानियत नहीं थी कि अपने रात
भर किए काले कारनामों के सबूतों को किसी कचरापात्र के हवाले कर सके। वह और उसके
मतलबी दोस्त सारी रात घर से बाहर दारू पीते रहे होंगे और सुबह-सुबह वह फ्रेश होकर
अपनी बूढ़ी मां या तेज तर्रार बीवी के सामने शरीफ की तरह जाना चाहता था।
यह तो
हमारे शहर में गंगाजी नहीं हैं वरना हो सकता है कि वह अपने ताजा पाप धोकर ही घर
जाता। आप पूछेंगे कि उस वक्त हम कुछ बोले क्यों नहीं? अब मुंह अंधेरे एक नशेड़ी से
उलझने की हमारी हिम्मत नहीं हुई। हम से अच्छा तो हमारा जैकी था जो कम से कम भोंका
तो सही। हम तो आदमी होकर भी चुप रहे।
राही